पश्चिम के चिकित्साशास्त्र का नाम है- ‘मेडिकल साइंस’. इसका मतलब हाेता है- औषधि-विज्ञान. पूरब में हमने जाे औषधि-विज्ञान बनाया, उसकाे नाम दिया है- आयुर्वेद. औषधि का नाम नहीं दिया- आयु का विज्ञान. और विज्ञान भी नहीं वेद-विधायक. औषधि ताे नकारात्मक है.बीमारी हाे ताे औषधि का उपयाेग है. बीमारी न भी हाे ताे भी आयुर्वेद का उपयाेग है. क्याेंकि वह केवल जीवन का विज्ञान है. वह र्सिफ बीमारी की िफक्र नहीं करता कि बीमारी हाे ताे औषधि देके मिटा दाे. बीमारी न भी हाे, ताे जीवन काे कैसे गुणनफल कराे, जीवन काे कैसे बढ़ाओ ! पूरब और पश्चिम की दृष्टि में ये फर्क है. पश्चिम िफक्र करता है कांटा निकाल लेने की. पूरब िफक्र करता है ूल काे भी रख देने की. पश्चिम िफक्र करता है दुख निकाल लाे, पूरब िफक्र करता है आनंद काे जन्माओ.
दुख काे निकाल लेना काी नहीं है. दुख भी न हाे जीवन में ताे भी जरूरी थीड़ी’ है कि आनंद हाे. कितने लाेग हैं जिनके जीवन में दुख नहीं है, लेकिन इससे क्या आनंद हाेता है? बल्कि सच्चाई यह है कि जिनके जीवन में दुख नहीं है उनकाे ही पता चलता है कि जीवन बिल्कुल व्यर्थ है. जिनके जीवन में दुख है उनकाे ताे अभी आशा लगी रहती है कि कुछ उपाय करेंगे, दुख मिटायेंगे, कल सब ठीक हाे जायेगा. जिनके जीवन में दुख नहीं रहा, वे एकदम चाैंक के पूछते हैं, अब क्या करें? दुख भी नहीं रहा- जिसकाे मिटाते वह भी नहीं रहा- जिसकाे मिटाते वह भी नहीं रहा- मिटाने की दाैड़ भी समाप्त हाे गई, काेई कष्ट नहीं है, लेकिन आनंद भी नहीं है. उनका जीवन बड़ी उदासी से, बड़ी ऊब से भर जाता है. जीवन राख-राख हाे जाता है. उसमें से सारी आशा और आनंद का अंगार बुझ जाता है.
तुम चकित हाे जाओगे देखकर कि भिखारी के कदमाें में भी तुम्हें गति मालूम हाेती है- हाे सकती है- क्याेंकि उसकाे कहीं पहुंचना है, कुछ दुख मिटाना है, कुछ तकलीफ ठीक करनी है, सम्राट के पैर बिल्कुल ही बाेझिल हाे जाते हैं. न कहीं पहुंचने काे, न कुछ पाने काे, जाे पहुंचना था पहुंच चुके, जाे पाना था पा लिया, अब? अब एक इतना बड़ा प्रश्न बनके खड़ा हाे जाता है. अब र्सिफ घसीटते हैं. अब र्सिफ माैत की राह देख रहे हैं कि अब आये, कब छुटकारा दिला दे.दुख का न हाे जाना आनंद नहीं है. दुख का न हाे जाना आनंद के हाेने के लिए जरूरी शर्त हाे सकती है, आवश्यक हाे सकता है, पर्याप्त नहीं है.