पुणे में हाईकोर्ट की एक बेंच होना न्यायोचित !

बेंच के लिए कार्यसमिति का गठन, प्रक्रिया पूरी करने 10 दिन का समय बार एसोसिएशन की बैठक में निर्णय

    19-Jul-2025
Total Views |
bfbf
शिवाजीनगर, 18 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
मुंबई उच्च न्यायालय की एक पीठ पुणे में हो, यह एक लंबे समय से चली आ रही और न्यायिक मांग है. अब इसके लिए निर्णायक कदम उठाए जा रहे हैं. वकीलों के एक शीर्ष संगठन, पुणे बार एसोसिएशन की पहल पर, वरिष्ठ वकील एड. एस. के. जैन की अध्यक्षता में एक पीठ कार्य समिति का गठन किया गया है. इस समिति में पुणे के पांच बार काउंसिल सदस्य और पुणे जिले के सभी तालुका बार एसोसिएशन के अध्यक्ष शामिल हैं. पुणे बार एसोसिएशन ने इस कार्य समिति को आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए 10 दिन का समय दिया है. साथ ही, कार्य समिति बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश से मुलाकात करेगी और मांग करेगी कि पुणे में एक बेंच स्थापित करने के प्रस्ताव को तुरंत मंजूरी दी जाए और राज्य सरकार को प्रस्तुत किया जाए. बुधवार (16 जुलाई) को शिवाजीनगर कोर्ट में वकीलों की एक बैठक हुई. इसमें समिति के गठन को मंजूरी दी गई. इस बैठक में एड. एस. के. जैन, एड. सुधाकर आव्हाड, एड. राजेंद्र उमाप, एड. अहमद पठान, पुणे बार के अध्यक्ष एड. हेमंत झंजाड़, उपाध्यक्ष एड. समीर भुंडे, एड. सुरेखा भोसले, एड. पृथ्वीराज थोरात, एड. भाग्यश्री गूजर, एड. इंद्रजीत भोइटे, एड. केदार शितोले, एड. माधवी पवार, एड. श्रीकांत चोंडे और अन्य वकील बड़ी संख्या में उपस्थित थे. एक्शन कमेटी के अध्यक्ष एड. एस. के. जैन ने कहा, हमने उचित मांग के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल से भी मुलाकात की है. साथ ही, पुणे शहर और जिले के सभी विधायकों को इस मुद्दे से अवगत करा दिया गया है. हमारी मांग है कि वे पुणे को एक बेंच बनाने पर जोर दें. हम बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर हमारी भूमिका को विस्तार से बता रहे हैं और बता रहे हैं कि पुणे में एक बेंच होना क्यों जशरी है. हमारी जानकारी है कि, सुप्रीम कोर्ट के फ!सले के अनुसार, हाईकोर्ट ने बेंच पर फ!सला लेने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है. हम बार काउंसिल के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश से मांग करेंगे कि वे जल्द से जल्द इस पर सुनवाई करें.
 
जनसंख्या, यात्रा और कानूनी प्रतिभा जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण

सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मुद्दे पर निर्णय लेने का अधिकार केवल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को है. तदनुसार, उन्होंने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया. लेकिन, उन्होंने अभी तक सुनवाई नहीं की है. जनसंख्या, यात्रा और कानूनी प्रतिभा यह तीन महत्वपूर्ण मुद्दे इससे जुड़े हैं. पुणे ने अतीत में भारत को तीन मुख्य न्यायाधीश दिए हैं. शहर और जिले की जनसंख्या तथा मुंबई तक आने जाने का खर्चा यह भी विचारणीय मुद्दे है. आज भी, बॉम्बे उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले वरिष्ठ वकीलों के कार्यालय पुणे में हैं. पुणे में विभिन्न वेिशविद्यालय, शैक्षणिक सुविधाएं और पुणे का सड़क, रेल और हवाई संपर्क अच्छा है. इसलिए, पुणे के दावे पर पहले विचार किया जाना चाहिए. किसी कारणवश पुणे में बॉम्बे उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करना संभव न हो, तो प्रारंभ में बॉम्बे उच्च न्यायालय की सर्किट पीठ स्थापित की जा सकती है और भविष्य में विकास के आधार पर इसे बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ में परिवर्तित किया जा सकता है.
- एड. एस. के. जैन, अध्यक्ष, एक्शन कमेटी

bfbf 
आर्थिक, मानसिक त्रासदी कम होनी चाहिए

यह प्रस्ताव 1978 का है. उसके बाद, औरंगाबाद और नागपुर खंडपीठों का गठन किया गया. इसकी तुलना में पुणे को जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है. उम्मीद थी कि पीठ की स्थापना में आम मुकदमों और नागरिकों का ध्यान रखा जाएगा, क्योंकि न्याय प्राथमिकता का विषय है. मुख्य न्यायाधीश कहते हैं कि सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए. न्यायदान में भी यही अपेक्षित है. हजारों पक्षकार और सैकड़ों वकील अदालती काम के लिए मुंबई जाते हैं. एक पक्षकार का पुणे से मुंबई अदालती काम के लिए जाना, उसका यात्रा खर्च, खाना-पीना, वहां की भागदौड, यह सब पीठ की स्थापना से कम हो जाएगा. यह आर्थिक और मानसिक रूप से भी कष्टदायक है. समय की बचत भी जशरी है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, पुणे में एक खंडपीठ का होना जशरी है. कोल्हापुर की मांग पर विचार जरुर हो लेकिन, पुणे को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि पहला प्रस्ताव पुणे का है.
- एड. प्रताप परदेशी, वरिष्ठ अधिवक्ता
 
bfbf
 
महानगरीय शहर होने से पुणे में खंडपीठ जरुरी

 पुणे के लिए 1978 में प्रस्ताव पारित किया गया है. विधानमंडल का प्रस्ताव महत्वपूर्ण है, लेकिन उसे नजरअंदाज कर दिया गया है. पुणे हर लिहाज से सुविधाजनक है. क्योंकि, पुणे एक महानगरीय शहर है. यहां से देशभर में कनेक्टिविटी है. यदि पुणे में एक उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित की जाती है, तो यह सोलापुर के पक्षकारों के लिए भी सुविधाजनक होगा. पुणे पश्चिमी महाराष्ट्र की राजधानी है. पुणे में विभागीय कार्यालय है, यहां से पांच जिले जुड़े हुए हैं. सभी न्यायाधिकरण, केंद्र और राज्य सरकारों के सभी महत्वपूर्ण कार्यालय पुणे में हैं. उच्च न्यायालय का अधिकांश काम पुणे से होता है. यदि पुणे में एक पीठ स्थापित की जाती है, तो वहां कार्यभार कम हो जाएगा. यदि इस कार्यभार को कम करने की इच्छा है, तो इसे पुणे को देना न्यायोचित है.
- एड. हर्षद निंबालकर, वरिष्ठ अधिवक्ता पुणे
 
bfbf
 
योग्यता के आधार पर शीर्ष पर

मुंबई उच्च न्यायालय में, मुंबई उपनगरों और मुंबई के अलावा, पश्चिमी महाराष्ट्र में दायर 70 प्रतिशत मामले अकेले पुणे जिले से हैं. लंबित मामलों के अनुपात को देखते हुए, पुणे योग्यता के आधार पर शीर्ष पर है. मुंबई में आने-जाने में पूरा एक दिन लगता है. न्यूनतम वित्तीय खर्च 5,000 रुपये है. कई सरकारी अधिकारियों को भी सरकारी काम, हलफनामा दाखिल करने और मुकदमे दायर करने के लिए मुंबई जाना पड़ता है. उनका भी लगभग इतना ही खर्च होता है. यदि पुणे में एक पीठ स्थापित की जाती है, तो वे काम भी जल्दी पूरे हो सकते हैं. सभी के लिए यह सुविधाजनक होगा. देश के प्रसिद्ध शहरों में, पुणे भारत में शीर्ष स्थान पर है. इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, आने वाले समय में पुणे में खंडपीठ का होना एक बड़ी आवश्यकता है.
- एड. हेमंत झंझाड़, अध्यक्ष, पुणे बार एसोसिएशन  
 
 
bfbf