जाे समाज अतीत के बाेझ से मुक्त और स्वतंत्र, वही विकासमान हैं

    19-Jul-2025
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Osho 
 
पाैधे उदास हाेते हैं. अब इसके वैज्ञानिक प्रमाण हैं. और आनंदित हाेते हैं, इसके भी वैज्ञानिक प्रमाण हैं. चट्टान काे उतनी भी सुविधा नहीं, उतनी भी स्वतंत्रता नहीं. चट्टान बड़ा कारागह है. एक कैद. जंजीरें ही जंजीरे हैं. लेकिन पाैधे की तकलीफ यह है कि उसके पैर जमीन में गड़े हैं, वह चल नहीं सकता. थाेड़ा-थाेड़ा सरक सकता है. कुछ पाैधे हैं जाे थाेड़ाथाेड़ा सरकते हैं. अगर जलस्राेत खत्म हाे जाएं ताे कुछ पाैधे हैं, थाेड़ा बहुत, ज्यादा नहीं, लंबी यात्रा नहीं कर सकते, मगर कुछ िफर सरक सकते हैं. धीरे-धीरे जिस तरफ जलस्राेत हाे उस तरफ की जड़ें बड़ी हाे जाती हैं; जिस तरफ जलस्राेत न हाें, उस तरफ की जड़ें सिकुड़ जाती हैं, टूट जाती हैं. और धीरेधीरे पाैधा सरक पाता है. दलदल में पाैधे थाेड़ा सरक जाते हैं, क्याेंकि जमीन पाेली हाेती है तरल हाेती है. मगर स्वतंत्रता ज्यादा नहीं है.
 
पशुओं की स्वतंत्रता ज्यादा है. चल सकते हैं. अगर यहां जल नहीं मिलेगा, ताे दस मील दूर जाकर पी सकते हैं. अगर यहां भाेजन नहीं मिलेगा ताे कहीं और भाेजन की तलाश कर लेंगे. स्वतंत्रता बढ़ गई. मगर बहुत ज्यादा नहीं. इसलिए ताे बहुतसे पशु पृथ्वी पर रहे और मर गए, उनकी र्सिफ अब लाशें मिलती हैं. क्याेंकि हालतें इतनी बदलीं कि वे पशु नई हालताें के लिए अपने काे राजी न कर पाए. हालतें राेज बदलती हैं.समझाे कि अचानक सर्दी आ जाए, ताे पशु काेट नहीं बना सकता. इतनी स्वतंत्रता उसकी नहीं है. वह मर जाएगा. या बहुत धूप हाे जाए ताे वह एरकंडीशनिंग पैदा नहीं कर सकता. वह उतनी स्वतंत्रता उसकी नहीं है. वह बंधा है. उसकी भी एक सीमा है. थाेड़ा बहुत हाे ताे इंतजाम कर लेता है.धूप हाे जाए ताे वृक्ष के नीचे बैठ जाता है जाकर. सर्दी हाे जाए ताे धूप में खड़ा हाजाता है आकर. बस सीमा है.
 
मनुष्य और आगे बढ़ा. उसने बडे अर्थाें में स्वतत्रता पैदा कर ली. वह कई अर्थाे में अपना मालिक हाे गया. वह प्रकृति से बहुत अर्थाें में मुक्त हाे गया है. निर्भर नहीं है.इसलिए मनुष्याें में तुम खयाल रखना, जाे जाति जितनी ज्यादा मुक्त हाेती है उतनी विकासमान हाेती है. जाे जाति अतीत से बहुत दबी हाेती है और परंपरावादी हाेती है, विकासमान नहीं हाेती. क्याेंकि उसकी स्वतंत्रता उतनी ही कम हाे जाती है. अतीत से दबी हुई जातियां देरअबेर मर जाती हैं, बच नहीं सकतीं. अतीत से दबे हाेने का अर्थ यह हाेता है कि उनके पास ऐसे प्रश्राें के उत्तर हैं, जाे प्रश्न ही अब नहीं रहे और वे उन्हीं उत्तराें काे पकड़े बैठ हैं.अब जैसे वर्षा नहीं हाेती ताे हिंदू यज्ञ करता है. अब यह उत्तर ही िफजूल हाे गया है. अब वर्षा के बेहतर उपाय हैं, मगर तुम यज्ञ कर रहे हाे, उसमें लाखाें-कराेड़ाें रुपए जला रहे हाे! और मूर्खता का ताे काेई अंत नहीं है. तुम्हारे मिनिस्टर भी वहां पहुंच जाते हैं यज्ञाें में आशीर्वाद लेने.अगर यह देश मर रहा है, सह रहा है, ताे उसका कुल कारण इतना है कि जाे बातें हमें कभी की छाेड़ देनी चाहिए