संसार में क्षण भर काे सुख मिलता है. न मिलता हाेता, ताे लाेग इतना दुख झेलते ही नहीं. उसी क्षण भर के सुख के लिए इतना दुख झेल लेते हैं. इतना दुख भी झेल लेते हैं- उस क्षण भर के सुख के लिए. साै माैकाें में एक बार मिलता है. निन्यानबे बार चूकना पड़ता है. लेकिन फिर भी लाेग निन्यानबे बार चूकने काे तैयार है; एक बार ताे मिलता है न! मरुस्थल है बड़ा- माना- लेकिन कभी-कभी इसमें मरूद्यान भी हाेते हैं. कभी-कभी वृक्षाें की हरी छाया भी हाेती है. कभी-कभी ही पानी का झरना भी हाेता है. प्यास तृप्त भी हाेती लगती है. हाे या न हाे. मगर तुम्हारे संन्यासी के जीवन में ताे मरुद्यान भी नहीं है. मरुस्थल के भय के कारण वह मरुद्यान से भी भाग गया है.ताे प्रेम में झंझटें हैं जरूर. दुनिया में जितने राेग हैं; सब प्रेम के राेग हैं. फिर भी मैं तुम से कहता हूं; प्रेम से भागना मत; प्रेम काे समझना. प्रेम काे रूपांतरित करना.
जाे नीचे ले जाता है रास्ता, वही ऊपर भी ले जाता है.जाे सीढ़ी नीचे ले जाती है, वही सीढ़ी ऊपर ले जाती है.इतना सीधा गणित है. सिर्फ दिशा का भेद हाेता है. नीचे जाते वक्त तुम नीचे की तरफ आंखें गड़ाए हाेते हाे. ऊपर जाते वक्त तुम्हारी ऊपर की तरफ आंखें अटकी हाेती हैं.नीचे की तरफ अटकी आंखाें काे में वासना कहता हूं; ऊपर की तरफ उठी आंखाें काे मैं प्रार्थना कहता हूं.बस, इतना ही फर्क है- प्रार्थना और वासना का.अन्यथा सीढ़ी वही है. नीचे उतराे ताे संभाेग,ऊपर चढ़ाे ताे समाधि. और कभी-कभी ऐसा भी हाे सकता है.... अक्सर पाओगे ऐसा हाेता-कि दाे आदमी एक ही जगह खड़े हैं, और एक नीचे की तरफ जा रहा है, और एक ऊपर की तरफ जा रहा है.
जहां तक खड़े हाेने का संबंध है, एक ही जगह खड़े हैं. समझ लाे कि सीढ़ी के किसी पायदान पर दाे आदमी खड़े हैं. जहां तक पायदान का संबंध है, एक ही पायदान है. लेकिन एक नीचे की तरफ जा रहा है और एक ऊपर की तरफ जा रहा है.ताे मैं यह कहना चाहूंगा कि जाे ऊपर की तरफ जा रहा है, वह उसी पायदान पर नहीं है; दिखाई उसी पायदान पर पड़ता है. और जाे नीचे की तरफ जा रहा है, वह भी उसी पायदान पर नहीं है; यद्यपि दिखाई उसी पायदान पर पड़ता है. नीचे जाने वाला का पायदान वही कैसे हाे सकता है- जाे ऊपर जाने वाले का पायदान है? यद्यपि दाेनाें एक ही सीढ़ी पर खड़े हैं. एक कदम और, और फर्क जाहिर हाे जाएंगे. जाे ऊपर जा रहा है, वह ऊपर की सीढ़ी पर हाेगा.