यंत्राें के साथ चीजें बहुत सुनिश्चित हाे जाती है

    22-Jul-2025
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संसार भर में बहुत से यंत्र विकसित किए जा रहे हैं, जाे दावा करते हैं कि वे तुम्हें ध्यान दे सकते हैं; तुम्हें बस इयरफाेन लगाकर विश्राम करना है, और दस मिनट के भीतर तुम ध्यान की अवस्था में पहुंच जाओगे.यह नितांत मूढ़ता है, परंतु तकनीकी लाेगाें के मन में यह विचार क्याें आया, इसके पीछे भी एक कारण है.जागृत अवस्था में मन एक विशेष आवृत्ति की तरंग में कार्य करता है. जब वह स्वप्न में हाेता है ताे एक भिन्न तरंग-लंबान में कार्यकरता है. लेकिन इनमें से काेई भी ध्यान नहीं है.हजाराें वर्षाें से हमने ध्यान काे तुरीय कहा है- ‘चाैथा’ जब तुम गहनतम निद्रा के पार चले जाते हाे और फिर भी जागृत हाेते हाे, ताे वह जागरण ध्यान है.वह काेई अनुभव नहीं है; वह ताे तुम्हीं हाे, तुम्हारा हाेना है.लेकिन सही हाथाें में ये उच्च तकनीक से बने यंत्र उपयाेगी हाे सकते हैं.
 
वे तुम्हारे मस्तिष्क में ऐसी तरंगें पैदा करने में मदद दे सकते हैं कि तुम विश्रांत अनुभव करने लगाे, जैसे कि आधे साेए हाे...विचार विदा हाेने लगते हैं और एक क्षण आता है जब तुम्हारे भीतर सभी कुछ शांत हाे जाता है.वही क्षण है जब वे तरंगें गहन निद्रा वाली तरंगें हाेती हैं. तुम्हें इस गहन निद्रा का बाेध नहीं हाेगा, परंतु दस मिनट के बाद जब तुम्हें यंत्र से हटाया जाएगा ताे तुम उसके प्रभाव देखाेगे : कि तुम स्थिर, निश्चल और शांत हाे गए हाे; काेई चिंता नहीं रही, काेई तनाव नहीं रहा; जीवन अधिक प्रफुल्ल और आनंदमय लगने लगा है. व्यक्ति काे ऐसा लगता है जैसे उसने काेई अंतर्स्नान कर लिया हाे. तुम्हारा सारा अंतस शांत और शीतल हाे जाता है. यंत्राें के साथ चीजें बहुत सुनिश्चित हाे जाती हैं क्याेंकि वे तुम्हारे किसी कृत्य पर निर्भर नहीं करती.
 
यह ऐसे ही है जैसे संगीत सुनना : तुम शांत और लयबद्ध अनुभव करते हाे. वे यंत्र तुम्हें तीसरी अवस्था-गहन निद्रा, स्वप्नरहित निद्रा तक ले जाएंगे.लेकिन यदि तुम साेचाे कि यही ध्यान है, ताे तुम गलत हाे. मैं कहूंगा, यह एक अच्छा अनुभव है, और जब तुम गहन निद्रा के क्षण में पहुंचाे, और जब मन अपनी तरंगें बदलना शुरू करे, ताे यदि शुरू से ही तुम जागृत रह सकाे... तुम्हें अधिक सचेत, जागरूक और सजग हाेना हाेगा कि क्या हाे रहा है, और तुम पाओगे कि मन धीरे-धीरे साेता जा रहा है. और यदि तुम मन काे साेते हुए देख सकाे... जाे मन काे साेते हुए देख रहा है वह तुम्हारी स्व-सत्ता है, और वही हर प्रामाणिक ध्यान का लक्ष्य है.ये यंत्र उस सजगता काे पैदा नहीं कर सकते. वह सजगता ताे तुम्हीं काे निर्मित करनी हाेगी, परंतु ये यंत्र दस मिनट के भीतर एक ऐसी संभावना निश्चित ही निर्मित कर सकते हैं जाे तुम वर्षाें के प्रयास में भी निर्मित न कर पाते.
 
ताे मैं इन तकनीकी यंत्राें के विरुद्ध नहीं हूं, मैं उनके पक्ष में हूं. मैं ताे बस इतना ही चाहता हूं कि जाे लाेग संसार भर में उन यंत्राें का प्रसार कर रहे हैं, वे यह जान लें कि वे शुभ कार्य कर रहे हैं, परंतु वह अधूरा है.वह तभी पूरा हाेगा जब गहन माैन में उतरा हुआ व्यक्ति सजग भी हाे, जैसे हाेश का छाेटा-सा दीया जलता चला जाए. सब कुछ विलीन हाे जाता है, सब ओर अंधकार, माैन और शांति है-लेकिन हाेश की एक अचल ज्याेति जल रही है. ताे यदि वह यंत्र सही हाथाें में हाे और लाेगाें काे सिखाया जा सके कि वास्तविक चीज यंत्र से नहीं आएगी, ताे यंत्र वह अनिवार्य भूमि निर्मित कर सकते हैं जिस पर वह ज्याेति विकसित हाे सकती है. लेकिन ज्याेति तुम पर निर्भर करती है, यंत्र पर नहीं.