अब हँसते-खेलते हुए आनंदमय धर्म की स्थापना हाे

    23-Jul-2025
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Osho 
आचार्य अत्रे के अंतिम दिनाें में मेरा उनसे मिलना हुआ था. उनकी बेटी शिरीष पै मेरी शिष्या है. उसका बहुत आग्रह था. कि इसके पहले कि उसके पिता जीवन छाेड़ें मेरा उनका मिलना हाे जाए. उनकी भी बड़ी आकांक्षा थी. ताे मैं उन्हें देखने गया था. बिस्तर पर थे, अंतिम घड़ियां थीं. यह बात चली थी, जाे बात सत्य निरंजन ने पूछी है. उन्हाेंने यही मुझसे कहा था कि दुख सहने का हास्य-विनाेद एक राजपथ है. और मैंने उनसे कहा था, इस घड़ी में जब जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे हैं, मैं काेई विवाद खड़ा करूं उचित नहीं है; लेकिन इतना जरूर निवेदन करूंगा कि िफर मेरे हास्य-विनाेद में और आपके हास्य-विनाेद में जमीन-आसमान का अंतर है. आप कहते हैंः हास्य-विनाेद दुख सहने का राजपथ है. िफर ताे धाेखा हुआ. िफर ताे अीम का नशा हुआ.
 
ताे काेई अीम लेकर दुख काे भुला देता है, काेई शराब पीकर दुख काे भुला देता है, काेई किसी और ढंग से. ताे तुमने हंस कर भुला दिया, हास्य-विनाेद में भुला दिया. मगर भुलाने से काेई चीज मिटती है? काश, इतना आसान हाेता कि हम भुला देते किसी बात काे और वह मिट जाती! तब भी सभी बुद्ध हाे जाते, कभी के बुद्ध हाे जाते. बात इतनी आसान नहीं है. हम भुला कर बैठ जाएं थाेड़ी देर काे अपने काे भरमा लें; लेकिन जिसे हमने भुलाया है वह लाैटेगा. भुलाया ही है, मिटा ताे नहीं. भीतर पड़ा है. क्षण भर काे छिपा लिया है, ओट में हाे गया है, परदा डाल दिया है; जैसे किसी ने घाव के ऊपर फूल रख दिया हाे. घाव के ऊपर फूल रखने से घाव थाेड़े ही मिट जाएगा. हां, ूल रखने से शायद किसी काे दिखाई न पड़े शायद तुम भीथाेड़े देर काे धाेखा खा जाओ, आत्मवंचना में पड़ जाओ. मगर घाव जब तुम भूले हाे, ूल रखकर, तब भी बढ़ रहा है, ैल रहा है.
 
उसमें मवाद इकट्ठी हाे रही है. वह नासूर बनेगा. वह कैंसर भी बन सकता है.मेरे हास्य-विनाेद में और आचार्य अत्रे के हास्य-विनाेद में बुनियादी भेद है. वे कहते हैं, दुख काे भुलाने का, दुख सहने का और मैं कहता हूं, आनंद काे प्रगट करने का, आनंद काे अभिव्यक्ति देने का. पहले आनंद चाहिए, तब तुम्हारी हंसी में धर्म की सुगंध हाेती है; तब तुम्हारे राेने तक में धर्म की सुगंध हाेती है, हंसने की ताे छाेड़ाे. तुम बैठाे ताे नृत्य हाेता है. तुम माैन रहाे ताे उपनिषद झरते हैं. तुम न कहाे ताे भी परमात्मा तुमसे प्रकट हाेता है. तुम चलाे, उठाे और तुम्हारे चलने-उठने में भी अलाैकिक प्रसाद हाेता है; एक साैंदर्य हाेता है, जाे इस पृथ्वी का नहीं है! िफर हंसने की ताे बात ही और.हंसना ताे बहुत अदभुत घटना है र्सिफ मनुष्य काे छाेड़ कर काेई पशु-पक्षी हंसता नहीं. किसी पशु-पक्षी की क्षमता नहीं है हंसने की. हंसने के लिए विवेक चाहिए, बाेध चाहिए. हंसने के लिए समझ चाहिए. जितना समझ गहरी हाेगी.