मनुष्य निरंतर ही यह साेचता रहा है, कैसे आमूल जीवन परिवर्तित हाे.्नयाेंकि जैसा जीवन है, उसमें सिवाय दुख, पीड़ा, अशांति, संघर्ष और कलह के कुछ भी नहीं है.जीवन के इस दुखद रूप ने ही जीवन काे रूपांतरित करने की प्रेरणा भी पैदा की है. शायद ही ऐसा काेई क्षण हाे जब मनुष्य आनंद काे उपलब्ध हाे पाता है. आनंद की आशा रहती है, कल मिलेगा और आज उसी आशा में हम दुख में व्यतीत करते हैं. और कल जब आता है तब वह इतना ही दुखी सिद्ध हाेता है जितना आज था. आशा िफर आगे सरक जाती है.ऐसे जीवन भर आदमी सुख की आशा में जीता है और पाता निरंतर दुख है.इस आशा के कारण दुख काे झेल भी लेता है. लेकिन आनंद इस तथाकथित जीवन में दिखाई नहीं पड़ता.
या ताे यह हाे सकता है कि जीवन में आनंद है ही नहीं, आनंद की खाेज ही गलत है. या यह हाे सकता है कि जैसा जीवन है, इस जीवन में आनंद नहीं है इसलिए जीवन काे परिवर्तित करने की, ट्रांसार्म करने की खाेज सार्थक है.िफर जीवन काे परिवर्तित करने के भी दाे विकल्प हैं. या ताे हम जीवन काे बदलें ताे आनंदी हाे जाए; जीवन- जाे हमसे बाहर है. या यह भी हाे सकता है कि बाहर का सारा जीवन बदल जाए ताे भी आनंद न हाे, क्याेंकि हम जैसे थे वैसे ही रह जाएं.ताे दूसरा विकल्प यह है कि हम जैसे हैं उस हाेने काे बदलें, ताे जहां दुख दिखाई पड़ता है, शायद वहां आनंद हाे जाए. इन सब दिशाओं से आदमी ने काेशिश की है, इन सब दिशाओं से आदमी ने प्रयास किया है. जाे ऐसा मान लेते हैं कि आनंद है ही नहीं, वे अत्यंत निराशावादी मालूम पड़ते हैं. जीवन के तथ्य उनकी बात का समर्थन करते हैं.
लेकिन कुछ व्यक्तियाें के जीवन में आनंद घटित हुआ है- हाेता है. कुछ गवाह हैं जीवन के बड़े तथ्याें के खिलाफ. और वे गवाहियां इतने सच्चे आदमियाें से आई हैं कि उन्हें झुठलाया नहीं जा सकता. अगर हम जीवन, सामान्य जीवन की तरफ देखें ताे निराशावादी, वह जाे पैसिमिस्ट है, वही ठीक मालूम पड़ता है. जीवन में दुख है! शायद दुख ही दिखाई पड़ता है.अगर जीवन के आंकड़े ही हम बटाेरें ताे निराशावादी सही सिद्ध मालूम हाेता है.लेकिन कभी-कभी काेई एक व्यक्ति पैदा हाेता है- काेई एक कृष्ण, काेई एक बुद्ध, और जिसके जीवन में आनंद के ूल खिले हुए दिखाई पड़ते हैं; और जाे गवाही बन जाता है, विटनेस बन जाता है. असाधारण हैं ये घटनाएं. कभी-कभी घटती हैं, सामान्य नहीं हैं, अपवाद ही मालूम पड़ते हैं अभी, लेकिन इनसे आशा बंधती है और निराशा का कारण नहीं रह जाता है.
क्याेंकि यदि एक मनुष्य के जीवन में आनंद घटित हाे सकता है, ताे िफर सबके जीवन में घटित क्याें नहीं हाे सकता है? िफर ऐसा मालूम पड़ता है कि हम सबके हाेने में कहीं काेई भूल है, जिससे, जिससे आनंद के द्वार नहीं खुल पाते हैं.अगर जगत में एक मनुष्य प्रकाश में खड़ा हाे सका, ताे िफर हमारा जाे अंधेरा है वह कुछ हमारे ही ओढ़े हुए हाेने के कारण है. शायद हम अपना द्वार बंद किए हुए बैठे हैं अंधेरे में. सूरज बाहर निकला हाे. अगर एक मनुष्य के जीवन में संगीत घट सका है ताे संभावना यही है कि शायद हम बहरे बने बैठे हैं, कान बंद किए बैठे हैं. क्याेंकि संगीत है, यह एक मनुष्य के जीवन में घटने से भी सिद्ध हाे जाता है. यह सबके जीवन में घटे तभी सिद्ध हाेगा, ऐसा नहीं है. अगर एक मनुष्य के जीवन में भी आनंद के स्वर उठते हैं, ताे वे उठ सकते हैं इसकी पाॅसिबिलिटी, इसकी संभावना खुल जाती है.