मानसून सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर सियासी हलचल मचा दी है. उन्हाेंने अपने फैसले की जानकारी साेमवार की देर शाम ए्नस (पहले ट्विटर) के माध्यम से दी और वहीं अपना इस्तीफा जारी किया, जिसमें उन्हाेंने लिखा है कि ‘स्वास्थ्य काे प्राथमिकता देने’ और ‘चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए’ वह उप-राष्ट्रपति का पद छाेड़ रहे हैं. मंगलवार काे राष्ट्रपति द्राैपदी मुर्मू ने उनका त्याग-पत्र स्वीकार भी कर लिया.स्वास्थ्य हर किसी की प्राथमिकता में हाेता है और तकरीबन सभी राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति की सेहत ऊपरनीचे हाेती रही है. फिर भी किसी ने इस्तीफा नहीं दिया.धनखड़ से पहले उप-राष्ट्रपति पद छाेड़ने के दाे ही उदाहरण हैं. एक वीवी गिरी का और दूसरा, आर वेंकटरमन का, लेकिन उनदाेनाें ने भी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए पद छाेड़ा था.
सेहत का हवाला देकर किसी उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा नहीं दिया. इसी कारण, धनखड़ के फैसले के पीछे की ‘राजनीति’ काे समझने की काेशिश लगातार की जा रही है.सार्वजनिक जीवन में धनखड़ खासा सक्रिय रहे हैं.उनका रवैया आक्रामक रहा है. फिर चाहे वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में हाे या उप-राष्ट्रपति के रूप में.न्यायपालिका, संविधान और सनातन के बारे में पिछले दिनाें जिस तरह से उन्हाेंने अपनी बातें रखीं, उनसे संकेत मिल गया था कि मुखर रहना उन्हें कितना पसंद है. विपक्ष काे वह लगातार आड़े हाथ लेते रहे. यही कारण है कि छह महीने पहले विपक्ष उनके खिलाफ महाभियाेग लाने तक काे तैयार था. ऐसे में, अचानक ‘स्वास्थ्य कारणाें’ से उनका इस्तीफा देना गले नहीं उतर रहा. फिर चाहे यह सच क्यों न हाे कि वह अपनी खराब सेहत से इन दिनाें लगातार जूझ रहे थे.
इसी साल मार्च में वह दिल की समस्या के कारण एम्स में भर्ती हुए थे, ताे जून में कुमाऊं विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती समाराेह में बेहाेश हाे गए थे. मगर उन्हें यदि पद छाेड़ना ही हाेता, ताे वह उन्हीं दिनाें उप-राष्ट्रपति भवन से बाहर निकल जाते. मानसून सत्र के शुरू हाेने का इंतजार नकरते. जाहिर है, यह फैसला साेच-समझकर नहीं, बल्कि अचानक लिया गया हाे सकता है. इसी कारण, सियासी पंडित धनखड़ के इस्तीफे का कारण सदन की कार्यवाही में ढूंढ़ने की काेशिश कर रहे है. कुछ लाेग इसे जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में लाए गए महाभियाेग प्रस्ताव से जाेड़ रहे हैं. कहा जा रहा है कि राज्यसभा के पदेन सभापति ने विपक्ष के उस नाेटिस काे स्वीकार कर लिया था, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियाेग लाने की मांग की गई थी. चूंकि लाेकसभा में यह नाेटिस सत्ता पक्ष की तरफ से प्रस्तावित था, इसलिए माना जा रहा है कि धनखड़ राज्यसभा में सत्ता पक्ष काे यह माैका देने में चूक गए.
नियम है कि अगर काेई प्रस्ताव अलग-अलग दिनाें में दाेनाें सदनाें में पेश किया जाता है, ताे जिस सदन काे पहले नाेटिस मिलता है, वहीं पर विचार किया जाता है. इस घटनाक्रम के बाद ही गहमागहमी इस कदर बढ़ी कि उन्हाेंने पद छाेड़ना उचित समझा.एक तर्क पहलगाम हमले से भी जुड़ा है. कहा जा रहा है कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की चर्चा साेमवार काे की, जबकि इस विषय पर चर्चा के लिए अगले हफ्ते का व्नत तय किया गया था. हालांकि, इस तर्क में बहुत दम नहीं दिखता, क्योंकि खड़गे पहले भी इन मुद्दाें पर अपनी बात सार्वजनिक मंचाें से रखते रहे हैं. मगर हां, यह कह सकता है, और जिसकी फुसफुसाहट अंदरखाने खुब हाे भी रही है कि उपराष्ट्रपति के खिलाफ महाभियाेग लाने की तैयारी खुद सत्ता पक्ष की तरफ से हाे रही थी. मुमकिन है, उनकी कार्यशैली काे लेकर कुछ मतभेद रहे हाें, जाे साेमवार काे सतह पर आ गए.
धनखड़ के इस्तीफे के बाद जिस तरह के बाेल सत्ता पक्ष की ओर से मंगलवार काे सुनने काे मिले, वे भी उन शब्दाें की तुलना में कुछ रुखे प्रतीत हाे रहे थे, जाे करीब तीन साल पहले उनके उप-राष्ट्रपति बनने पर व्य्नत किए गए थे. हालांकि, पीछे मुड़कर देखें, ताे कार्यकारी मुखिया हाेने के नाते राष्ट्रपति और सरकार के बीच हमने यदा-कदा विवाद देखा है. जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद के बीच ताे कई सारे मुद्दाें काे लेकर टकराव रहा. यहां तक कि बाद के वर्षाें में राष्ट्रपति के अधिकाराें में कटाैती भी कर दी गई. मगर उप-राष्ट्रपति की बड़ी जिम्मेदारी सदन काे सुचारू रूप से चलाने की हाेती है, इसलिए उनसे तनातनी की कम ही नाैबत आती है. आमताैर पर हर उप-राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर ही काम करते हैं.बहरहाल, इस इस्तीफे से मानसून सत्र और गरम हाे सकता है.
अब तक पहलगाम हमला, ऑपरेशन सिंदूर, अमेरिकी राष्ट्रपति डाेनाल्ड ट्रंप की बयानीबाजी, एअर इंडिया हादसा जैसे मसलाें पर विपक्षी दल सरकार काे घेरने के लिए प्रयासरत थे, अब इसमें जगदीप धनखड़ के इस्तीफे का मसला भी जुड़ गया है. उनके इस तरह पद छाेड़ने से नैरेटिव बदल सकता है. हालांकि, उप-सभापति हरिवंश काे राज्यसभा चलाने की जिम्मेदारी साैंप दी गई है और उनसे अपेक्षा की गई है कि वह इस जिम्मेदारी काे ठीक से संभाल लेंगे.सवाल है कि अब आगे ्नया हाेगा और किसके सिर पर उप-राष्ट्रपति का ताज सजेगा? कुछ नामाें पर कयास लगाएं भी जाने लगे हैं, जैसे-हरिवंश, आरिफ माेहम्मद खान, शशि थरुर. बेशक सियासी गुणा-गणित के आधार पर इन नामाें काे लेकर सुगबुगाहट शुरू हाे गई है. लेकिन अंतिम फैसला कुछ अप्रत्याशित भी हाे सकता है. भारतीय जनता पार्टी की नियु्नित की जाे शैली अब तक रही है, उसे देखकर इस बात की उम्मीद ज्यादा दिखती है कि काेई ‘लाे प्राेफाइल’ शख्स इस पद की शाेभा बढ़ा सकता है.
-नीरजा चाैधरी, वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक