संवाद, सहमति और समझ से सुलझते हैं रिश्तों के सवाल

परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखने तथा आपसी प्रेम भाव बनाए रखने के लिए गणमान्यों ने व्यक्त की राय

    27-Jul-2025
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पुणे, 26 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

आज के तेज भागते समय में जहां तकनीक ने भौतिक रूप से लोगों को जोड़ दिया है, वहीं भावनात्मक रूप से उन्हें दूर भी किया है. परिवार, जो कभी सुरक्षा, प्रेम और सहयोग का सबसे सशक्त केन्द्र हुआ करता था, आज अनेक कारणों से तनाव, मनमुटाव और विघटन की स्थिति में आ गया है. आधुनिक जीवनशैली, आत्मकेंद्रित सोच, संवाद की कमी और बढ़ती व्यक्तिगत स्वतंत्रता ने पारिवारिक मूल्यों को चुनौती दी है.पारिवारिक जीवन की इन समस्याओं को लेकर दै. आज का आनंद के लिए प्रो.रेणु अग्रवाल ने समाज के गणमान्यों से चर्चा की. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश- प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
 रिश्तों का महत्व और मानसिक स्वास्थ्य
आजकल हमारी जिंदगी बड़ी व्यस्त हो गई है, किसी को किसी के लिए वक्त ही नहीं है. हर कोई केवल अपने ही बारे में सोचता है, उसे घर में किसी और की परवाह ही नहीं है. परिवार में सदस्यों की इन्हीं भावनाओं के कारण घर में अनेक प्रकार के तनाव निर्माण होते हैं.हमारे देश में पहले के मुकाबले पारिवारिक कानूनी विवाद बढ़ते ही जा रहे हैं. अगर दो इंसान घर में ही शांति से एक-दूसरे के साथ नहीं रह सकते तो वह घर के बाहर भी अकेले ही रह जाते हैं और अनेक मानसिक बीमारी के शिकार भी बन सकते हैं. इसलिए वक्त रहते रिश्तों के महत्व को समझना जरूरी है. आपसी बातचीत और प्यार से सभी को फायदा है और मानसिक स्वास्थ्य भी सही रहता है, जिस वजह से इंसान की खुद की तरक्की तो होती ही है, साथ में पूरा परिवार विकसित होता है. - अमोल पवार, थेरगांव, पुणे
 

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जब साथ हो परिवार का प्यार, तो हर दिन लगता है त्यौहार
परिवार में प्यार के साथ समस्या भी है, जैसे पति-पत्नी के बीच वेिशास की कमी, छोटी- छोटी बात पे घरेलू हिंसा, दहेज संबंधित विवाद. इसी वजह से परिवार में पति-पत्नी के बीच मनमुटाव होता है और यदि परिवार के सदस्य को शराब, जुआ, सिगरेट, मोबाइल, इंटरनेट या कोई भी गलत आदत लग गई तो भी परिवार में झगड़े शुरू हो जाते हैं. संवाद ना होने से गलतफहमियां बढ़ जाती हैं.अगर परिवार में सदस्य एक-दूसरे से खुलकर बात करें तो कोई भी परेशानी हो, उस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.परिवार में एक-दूसरे से लगाव होना चाहिए.
- एड. सुजाता पद्मनाभ पाठक, औरंगाबाद
 

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समझ, सहमति और साथ यही है
खुशहाल परिवार समाज की निर्मिति परिवार से ही होती है. अगर परिवार के सदस्य आपसी समझौते और आपसी प्यार- मोहब्बत से रहें, तो वह सही मायने में खुशहाल परिवार होता है.हर घर में कोई ना कोई प्रॉब्लम तो रहती ही है, ऐसा कोई भी घर नहीं है या ऐसा कोई इंसान नहीं है, जिसके जीवन में कोई कठिनाई ना हो. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हार मान लें. अगर हमारे घरवाले हमारे साथ हैं, तो कोई भी कठिनाई हो, हम उसे पार कर सकते हैं. घरेलू झगड़े किसी भी प्रकार के हों, उन्हें घर में ही सुलझाना चाहिए. उसे घर के बाहर ले जाने से समस्या और भी बढ़ सकती है. हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि हमें हमेशा घर के सदस्य ही हमारे कठिन समय में काम आने वाले हैं, इसलिए उनसे हमेशा प्यार और आदर-सम्मान से व्यवहार करें. - एड. सुप्रिया दास, संभाजीनगर
 

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हर रिश्ता महत्वपूर्ण, संवाद ही समाधान है
रिश्तों की भावनात्मक कड़ी से कड़ी मिलाकर ही परिवार बनता है. जिस परिवार में प्रत्येक सदस्य एक- दूसरे को प्यार और सम्मान देता है, वह एक-दूसरे के साथ हर सुख-दुख में भी साथ रहता है.हमारे जीवन में समस्याएं तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन परिवार का साथ हर पल महत्वपूर्ण है. जो इंसान अपने घर के सदस्यों का सम्मान करता है, वही समाज की सुसंस्कृत रचना भी करता है.आजकल की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में आपसी संवाद की बहुत कमी हो गई है, जिस वजह से रिश्ते टूटते जा रहे हैं. बच्चे माता-पिता की नहीं सुनते, पति-पत्नी के बीच आपसी मतभेद इतना बढ़ रहा है कि बात तलाक तक आ जाती है.परिवार में हर रिश्ता, चाहे वह पति-पत्नी का हो, मां-बेटे का हो या भाई-भाई का, सभी रिश्ते महत्वपूर्ण हैं.
- एड.नुमान खान, औरंगाबाद
 

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 परिवार एक आध्यात्मिक संबंध भी है
हमें भारत देश की महान धार्मिक संस्कृति प्राप्त हुई है, और इसलिए परिवार एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक संबंध भी है. अगर परिवार का हर सदस्य आध्यात्मिक जीवन से जुड़ा है, तो केवल आपसी बातचीत से ही हर समस्या का निवारण संभव है.कभी-कभी परिवार का कोई व्यक्ति पूरे परिवार के दुखों का कारण बन जाता है. उसका बर्ताव अन्य परिवार के सदस्यों के लिए अन्यायकारी होता है. ऐसे में घर के सभी सदस्यों को भावनात्मक पीड़ा होती रहती है.अगर बातचीत से भी ऐसा व्यक्ति अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लाता है, तो ऐसी समस्याओं को सुलझाने के लिए कानून में भी प्रावधान है. लेकिन कानून की सहायता से समस्याओं को सुलझाना अंतिम विकल्प होना चाहिए.
-एडवोकेट योगेश गायकवाड़,आशानगर, नंदनवन कॉलोनी
 

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कभी-कभी समाधान कोर्ट नहीं, संवाद होता है
परिवार एक भावनात्मक बंधन है. लेकिन कई बार रिश्तों में तनाव आना स्वाभाविक है. पति-पत्नी के झगड़े, सास-बहू के मतभेद, बच्चों की जिम्मेदारी या खानदानी संपत्ति विवाद ये सभी आजकल आम बात हैं.लेकिन इनका हल भी संभव है. शुरुआत में बातचीत शांति से करें. लेकिन कभी-कभी बातचीत भी काम नहीं आती, ऐसे में किसी तीसरे पक्ष की जरूरत होती है जैसे मेडिएटर या थैरेपिस्ट. मैं वकील होने के नाते यह कह सकता हूं कि अदालत में समय, पैसा और भावनाएं तीनों खर्च होते हैं.बेहतर यही है कि रिश्तों को बातचीत से सुलझाया जाए.जरूरत पड़े तो कानून साथ है, लेकिन पहले संवाद को मौका दीजिए.
-एड. आरिफ पटेल, अमेरिका

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