इस साल मार्च में आगरा से दाे हिंदू बहनें गायब हाे गईं.शुरुआत में जाे सामान्य गुमशुदगी का मामला लग रहा था, वह जल्द ही कहीं ज्यादा गंभीर, खतरनाक और परेशान करने वाले मामले में तब्दील हाे गया. दाेनाें लड़कियाें, जिनमें से एक पीएचडी स्काॅलर थी और छाेटी बहन महज 18 साल की थी, काे काेलकाता में खाेजा गया. उत्तर प्रदेश पुलिस ने मिशन अस्मिता के तहत इस मामले काे सुलझाया और धर्मांतरण की खतरनाक साजिश का खुलासा किया, जिसके तार कई राज्याें में फैले हुए हैं और जिसके अंतरराष्ट्रीय संपर्क हैं. मिशन अस्मिता याेगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा शुरू किया गया एक रणनीतिक अभियान है, जिसका उद्देश्य उन सिंडिकेटाें काे निशाना बनाना है, जाे कमजाेर हिंदू लड़कियाें काे अपना शिकार बनाते हैं और उन्हें कट्टरपंथ के रास्ते पर ले जाते हैं.
दीपाली (अमीना) इस हद तक भटक गई थी कि उसने साेशल मीडिया पर एके 47 राइफल के साथ एक तस्वीर पाेस्ट की और इस संबंध में पूछने पर उसने कथित ताैर पर कहा कि यह ‘धर्म का काम है.’ यह काेई काल्पनिक कथा नहीं है. यह 2025 का भारत है. लेकिन हम आखिर इस हद तक कैसे पहुंचे? जूलाॅजी में स्नातकाेत्तर कर रही एक पढ़ी-लिखी युवती और उसकी 18 साल की बहन औसत मध्यमवर्गीय हिंदू परिवार से हैं.उनके पास ऐसी आर्थिक मजबूरी और अस्थिरता नहीं है कि वह ऐसे सिंडिकेट के जाल में फंस जाएं. लेकिन यह स्थिति का केवल सतही विश्लेषण है. इसका उत्तर हमें उनके हताश पिता से पहले ही मिल चुका है, जाे अन्य माता-पिता काे अपने बच्चाें में सही धार्मिक मूल्याें काे विकसित करने की चेतावनी देता है.
औसत मध्यमवर्गीय परिवार के पास अपने बच्चाें काे साैंपने के लिए काेई बड़ी विरासत नहीं हाेती है, इसलिए उनका लक्ष्य हाेता है कि बच्चाें काे शिक्षा से लैस किया जाए, ताकि वह जीवन भर सुरक्षित रहें. माता-पिता काे लगता है कि यही मूल्य समय की कसाैटी पर खरा उतरेगा और उन्हें जीवन के उतार-चढ़ाव से उबारेगा.मध्यम वर्ग की बेटियाें की भी लड़की की तरह ही पेशेवर रूप से याेग्य बनने के लिए प्रेरित किया जाता है, ताकि उन्हें सम्मान और स्वतंत्रता से भरा जीवन जीने का विकल्प मिल सके. इस मामले में माता-पिता ने काेई गलती नहीं की थी. दीपाली (अमीना) एक काेचिंग सेंटर में पढ़ रही थी. जब उसकी मुलाकात समीना से हुई और वह उससे गहरी दाेस्ती कर बैठी. समीना घर आती-जाती रहती थी और एक खुशमिजाज और धार्मिक विचाराें वाली लड़की थी.
चूंकि हिंदू धर्म अन्य सभी धर्माें के प्रति सम्मान रखता है, इसलिए दीपाली के माता-पिता काे काेई आपत्ति नहीं थी. यहां तक कि जब समीना ने दीपाली की मां काे धर्म परिवर्तन का सुझाव दिया, ताे उन्हें चिंता के बजाय थाेड़ी खुशी ही हुई.उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह काेई सरसरी टिप्पणी नहीं थी, बल्कि उनकी बड़ी बेटी के मन में पहले से ही घर कर रही थी. बेशक इस कहानी की पृष्ठभूमि धार्मिक हाे, लेकिन यह कहानी धार्मिक नहीं है, बल्कि यह उन मूल्याें की कहानी है, जाे नेकदिल लाेगाें में भी डगमगाते हैं और जाे ऐसी परिस्थितियां पैदा करते हैं. इससे पहले कि बहुत देर हाे जाए, एक समाज के ताैर पर हमें इनसे अपने अंदर ही लड़ना हाेगा.हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां छवि और सफलता काे प्राथमिकता दी जाती है. रिश्ते लगातार क्षणभंगुर हाेते जा रहे हैं.जैसे-जैसे इंटरनेट के जरिये दुनिया छाेटी हाेती जा रही ै, हम अपनी सांस्कृतिक जड़ाें, अपनी सभ्यतागत पहचान और मूल्याें से दूर हाेते जा रहे हैं.
जब हिंदू समाज यह मानता है कि 2025 में बच्चाें की परवरिश का सही तरीका सिर्फ खुलापन ही है, ताे हम सांस्कृतिक रूप से अनाथाें की एक पीढ़ी तैयार कर रहे हैं. ये लाेग दुनिया से ताे जुड़े हाेते हैं, लेकिन अपनी जड़ाें से कटे हाेते हैं.युवा भले ही यह मानने से इन्कार कर दें कि उन्हें ्नया करना है, पर वे एक निश्चित ढांचे की चाहत भी रखते हैं.और अ्नसर ढांचे काे ही नियम समझ लिया जाता है- घर लाैटने की समय-सीमा, प्रेमी/प्रेमिका का न हाेना, पढ़ाई का समय वगैरह. ये सब ऊपर से थाेपे हुए हैं, असली ढांचा हमारे भीतर से और हमारे सांस्कृतिक मूल्याें की समझ से आता है. यहां हम विफल रहे हैं और आगे भी विफल हाेते रहेंगे, इसलिए आगरा जैसे मामले सामने आते हैं.और आगे भी विफल हाेते रहेंगे, इसलिए आगरा जैसे मामले सामने आते हैं और यह विडंबना ही है, क्योंकि हम एकमात्र बाैद्धिक, दार्शनिक, धार्मिक व्यवस्था हैं, जिसकी हमेशा से एक आंतरिक संरचना रही है, और उसे धर्म कहते हैं. और धर्म ने हमेशा से यह आंतरिक संरचना प्रदान की है.
जब किसी बच्चे में धार्मिक मूल्याें काे कर्मकांडाें के जरिये नहीं, बल्कि जीवन जीने के तरीके के रूप में विकसित किया जाता है, ताे उनकी आंतरिक स्पष्टता ही वह दिशासूचक बन जाती है, जाे जीवन काे सच्ची सफलता की ओर ले जाती है.सेवा, संकल्प, स्वाभिमान और श्रद्धा के मूल्य ऐसे कवच हैं, जाे व्य्नित काे दिखावटी जीवनशैली और जहरीली विचारधाराओं से बचाते हैं. लेकिन हमने अपनी संस्कृति के इस श्नितशाली पहलू काे व्यवस्थित रूप से नजरअंदाज कर दिया है. हमने भगवद्गीता के बजाय शे्नसपियर काे प्राथमिकता दी है. आधुनिक दिखने के लिए हम जलवायु परिवर्तन पर ताे चर्चा करेंगे, लेकिन प्रकृति या पंचभूत पर नहीं. नतीजतन, हमारे पास एक ऐसी पीढ़ी है, जाे सांस्कृतिक रूप से अनाथ है और जाे छल-कपट के लिए तैयार व तत्पर है. हिंदुओं काे कट्टरपंथ का मुकाबला कट्टरपंथ से करने की जरूरत नहीं है. हम एक ऐसी परंपरा से जुड़े हैं, जाे हजाराें वर्षाें से चली आ रही है. -अद्वैता काला