आज तक मनुष्य की पीड़ा यही रही है.जब मैं उसे ठीक से खाेज करता हूं ताे मुझे पता चलता है कि भय बिलकुल अनिवार्य है. मृत्यु आएगी. वह जन्म के साथ ही आ गई है. वह जीवन का उतना ही हिस्सा है, जितना मृत्यु है, जितना जन्म है. दुख भी आएगा, पीड़ा भी आएगी. मित्र मिलेंगे भी, बिछुड़ेंगे भी. ूल जाे खिला है, वह कुम्हलाएगा भी. सूरज जाे उगा है वह डूबेगा भी. हमारा मन चाहता है कि उगा हुआ सूरज उगा ही रह जाए. यह हमारे मन की कामना ही गलत है.हमारा मन चाहता है कि जाे मिला है वह कभी न बिछड़े और हमारा मन चाहता है कि प्रेम, सतत बना रहे और हमारा मन चाहता है कि ूल खिला ताे अब खिला ही रहे. उसकी सुगंध कभी समाप्त न हाे. उसकी ताजगी कभी न मिटे.
उसका युवापन कभी न मिटे. यह हमारे मन की जाे चाह हैं, असंभव की मांग है. यह कभी पूरी हाेने वाली नहीं है.अगर हम जीवन काे देखेंगे ताे वहां जन्मना और मरना साथ ही साथ खड़े हैं. वे एक ही जीवन के दाे हिस्से हैं. जाे जीवन काे समझेगा वह पूरे जीवन काे स्वीकार कर लेगा. वहां सुख और दुख, एक ही सिक्के के दाे पहलू हैं. जाे सुख काे स्वीकार करता है, वह दुख काे भी स्वीकार कर लेगा. ऐसी स्वीकृति जिसके जीवन में आ जाए, वह भय के बाहर हाे जाता है. ऐसा नहीं है कि भय के कारण मिट जाते हैं, बल्कि भय का दंश और कांटा विलीन हाे जाता है, क्याेंकि भय भी स्वीकार कर लिया गया.
लाओत्सु एक बहुत अदभुत बात कहता है. वह कहता है कि मुझे काेई हरा नहीं सकता क्याेंकि मैं पहले से ही हारा हुआ हूं. हार काे मैंने स्वीकार कर लिया है. इसलिए अब काेई मेरे ऊपर जीत भी नहीं सकता. क्याेंकि जीत उसकाे सकते हैं जिसकाे हरा सकते हाें. मुझे काेई हरा ही नहीं सकता, क्याेंकि मैं पहले से ही हारा हुआ हूं. लाओत्सु कहता है कि मुझे काेई पीछे नहीं हटा सकता, क्याेंकि मैं पहले से ही पीछे खड़ा हूं. मुझे काेई नीचे नहीं उतार सकता, क्याेंकि मैं कभी ऊपर ही नहीं चढ़ा हूं. इसलिए मेरे ऊपर विजय असंभव है. मेरे ऊपर जीत असंभव है. मुझे काेई असफल नहीं कर सकता. मुझे काेई पीछे नहीं हटा सकता, क्याेंकि तुम जाे कर सकते थे, वह मैंने स्वीकार कर लिया है.जीवन में असुरक्षा है, इनसिक्युरिटी है.