जीवन की अस्सी प्रतिशत ऊर्जा आंखाें से बहती है

    31-Jul-2025
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Osho 
 
 
आदमी के जीवन की अस्सी प्रतिशत ऊर्जा आंखाें से बहती है-अस्सी प्रतिशत! बाकी बीस प्रतिशत मिलता है शेष चार इंद्रियाें काे. आदमी करीब- करीब आंख है. अस्सी प्रतिशत जीवन की ऊर्जा आंख काे मिलती है, बीस प्रतिशत शेष चार इंद्रियाें काे. बाकी चार इंद्रियां करीब-करीब सूखी पड़ी हैं. गंध की इंद्रिय ताे करीब-करीब सूख गई है.तुमसे अच्छी गंध ताे घाेड़े की है, कुत्ते की है, जानवराें की है. तुम्हारी गंध ताे बिलकुल सूख गई है. पुलिस काे उपयाेग करना पड़ता है कुत्ताें का, अपराधियाें का पता लगाने के लिये. आदमी की गंध की इंद्रिय बिलकुल समाप्त हाे गई है. थाेड़ा सा कान का उपयाेग है.स्पर्श की इंद्रिय भी बिलकुल क्षीण हाे गई है. तुम छूते हाे, लेकिन स्पर्श से न ताे तुम्हें काेई आह्लाद मिलता, न स्पर्श का काेई स्वाद है. तुम छूने से काेई आनंद नहीं पाते हाे. वह इंद्रिय भी क्षीण हाे गई है.
 
स्वाद भी करीब-करीब मर गया है. इसीलिये ताे इतने मसाले भाेजन में डालने पड़ते हैं. वे इसलिये नहीं हैं कि तुम्हें बड़ा स्वाद है. बल्कि इसलिये हैं कि तुम्हें स्वाद बिलकुल नहीं है. ताे जब तक मिर्च न डाली जाये, तब तक तुम्हारी जीभ जगती नहीं. जितना तेज डाला जाये, वह इसी बात की खबर है कि स्वाद की सूक्ष्मता नष्ट हाे गई है. अन्यथा मिर्च और मसाले का काेई प्रयाेजन नहीं है. स्वाद जिनका मर गया है, उनके लिये तीव्र उत्तेजना की जरूरत पड़ती है. इसीलिये ताे इतने परफ्यूम, इतनी सुगंधें बनानी पड़ती हैं. क्याेंकि जीवन की जाे सहज गंध है, वह हमें अनुभव में नहीं आती. तेज चीजें चाहिए, जिनकी चाेट हिंसात्मक हाे.