जैन समाज के पास पैसा है, वह अपने बच्चों को सभी सुविधाएं देने में सक्षम है, लेकिन क्या आपको लगता है कि यह पीढ़ी उन सुविधाओं को ग्रहण करने में पीछे रह गयी है? जैन समुदाय ने न केवल पुणे में बल्कि पूरे देश में अपने लिए एक स्थान बनाया है. यहां तक कि सबसे युवा जैन भी अपने बच्चों की शिक्षा या उन्हें उनके व्यापार में आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं. कई जगहों पर बच्चों को संस्कारित किया जाता है; लेकिन कई जगहों पर हम धन, प्रतिष्ठा और संपत्ति का दुरुपयोग भी देखते हैं. बच्चों को जैन धार्मिक स्थलों और हमारी परंपराओं के बारे में पूरी जानकारी देना महत्वपूर्ण है, कुछ परिवार कम पड़ रहे हैं.
इसका कारण क्या है ?
बच्चों को समाज के बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा शिक्षित करने की आवश्यकता है. यह महत्वपूर्ण है कि स्कूली जीवन से लेकर घर तक उन्हें मूल्यों की शिक्षा दी जाए. हाल के समय में परिवार व्यवस्था बदल गई है. कई जैन घरों में बच्चों में चातुर्मास, पर्यूषण या अन्य व्रत अनुष्ठानों का अभ्यास डालने का प्रयास किया गया; हालाँकि, हाल के दिनों में व्यवधान बदल गए हैं, इसलिए कुछ अंतर आया है. बेशक, यह तस्वीर हर जगह एक जैसी नहीं है. आज अनेक स्थानों पर गुरु महाराज का चातुर्मास प्रवेश हो रहा है, तथा नई पीढ़ी की भागीदारी उल्लेखनीय है; लेकिन महानगरों में ये चीजें बहुत कम देखने को मिलती हैं.
क्या ऐसा महानगरों में पढ़ने के लिए आनेवाले बच्चों की संख्या में वृद्धि के कारण हो रहा है ?
आमतौर पर जब जैन लड़के-लड़कियां महानगरों में पढ़ने जाते हैं तो माता-पिता जैन छात्रावासों को प्राथमिकता देने का प्रयास करते हैं. वहां बच्चों को खाने-पीने या आहार से संबंधित ज्यादा परेशानी नहीं होती; लेकिन शिक्षा के लिए विदेश में रहते हुए वे उस देश के रीति-रिवाजों का अनुकरण करते हैं और बाद में जब उन्हें अपनाते हैं तो उनके परिणाम बदल जाते हैं.
इसके लिए क्या किया जाना चाहिए ?
बालक-बालिकाओं को बचपन से ही स्वाध्याय और पाठशाला में भेजना आवश्यक है, इससे मूल्यों का सृजन होता है. यह सच है कि जैन अनुष्ठान थोड़े अलग हैं, इससे नई पीढ़ी को समृद्ध होने में मदद मिलेगी. शिक्षा के साथ यह और गहरा होता जा रहा है; लेकिन अपने ज्ञान को गहरा करना आवश्यक है, विशेष रूप से जैन ज्ञान को. - डॉ. मोहन जैन राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय भैरव भक्त परिवार, पिंपरी, पुणे मोबाईल क्र. - 70200 30446