चीन का दाेहरापन भारत के अच्छे रिश्ते में बाधक क्यों है?

    04-Jul-2025
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एससीओ, यानी शंघाई सहयाेग संगठन में आतंकवाद पर चीन के निराशाजनक रुख की पृष्ठभूमि में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा बीजिंग काे दाे टूक और स्पष्ट बात करने का मतलब साफ है. चीन के रक्षामंत्री से बातचीत के दाैरान उन्हाेंने कहा कि द्विपक्षीय संबंधाें में नयी पेचीदगी जाेड़ना उचित नहीं हाेगा. यही नहीं, उन्हाेंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव कम करने के लिए विकल्प भी सुझाये, ताकि भविष्य में गलवान जैसी स्थिति पैदा न हाे.एससीओ की बैठक में चीन का रुख बहुत निराशाजनक रहा, खासकर तब जब हाल ही में दाेनाें देशाें के बीच संबंध सामान्य करने के कुछ संकेत मिले थे. कैलाश-मानसराेवर यात्रा काे पांच वर्ष बाद फिर से शुरू करने के निर्णय से उम्मीद जगी थी कि दाेतरफा संबंधाें में कुछ सुधार हाेगा. चीनी रक्षामंत्री एडमिरल डाेंग जुन और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बीच सीमा विवाद के स्थायी समाधान और विश्वास निर्माण की आवश्यकता पर चर्चा हुई.
 
लेकिन चीन का रणनीतिक दाेहरापन आपसी रिश्ताें काे सामान्य बनाने की संभावना पर संदेह की छाया डालता है.चीन की यह ‘ड्यूल ट्रैक’ नीति अब काफी स्पष्ट हाे गयी है. एक ओर वह भारतीय नेताओं से उच्चस्तरीय बैठकें कर रहा है, दूसरी ओर व्यापार काे हथियार बनाकर भारत पर दबाव डाल रहा है. हाल ही में चीन ने दुर्लभ पृथ्वी चुंबकाें, विशेष उर्वरकाें और सुरंग खाेदने की मशीनाें के निर्यात पर प्रतिबंध लगाये हैं, जाे भारत के निर्माण, कृषि और आधारभूत ढांचे के लिए बेहद आवश्यक हैं. यह सब एक रणनीति के तहत हाे रहा है, ताकि भारत काे झुकाया जा सके और उससे रणनीतिक रियायतें ली जा सकें. यह प्रतिबंध निरीक्षण प्राेटाेकाॅल जैसे प्रशासनिक बहानाें में छिपे हुए हैं, लेकिन इनका उद्देश्य साफ है.चीन भारत की आर्थिक नीतियाें, जैसे एफडीआई पर नियंत्रण, चीनी एप्स पर प्रतिबंध और सीधी उड़ानाें की सीमाओं से नाराज है.
 
बीजिंग का संदेश स्पष्ट है : यदि आप आर्थिक रूप से अलग हाेना चाहते हैं, ताे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. भारत ने इस दबाव के आगे झुकने े बजाय जवाबी रणनीति अपनायी है. अब वह रूस से अधिक उर्वरक आयात कर रहा है, जिससे चीनी निर्भरता में कमी आयी है. साथ ही, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ दुर्लभ पृथ्वी तत्वाें पर साझेदारी काे मजबूत किया जा रहा है. इसके अतिर्नित, पीएलआई के तहत भारत घरेलू स्तर पर महत्वपूर्ण उत्पादाें के निर्माण काे बढ़ावा दे रहा है.यह आर्थिक आत्मनिर्भरता भारत की व्यापक रणनीतिक पुनर्संरचना का हिस्सा है. भारत एक ओर चीन से कूटनीतिक संवाद बनाये रख रहा है, दूसरी ओर, अपने हिताें की रक्षा के लिए मजबूती से खड़ा भी है. एससीओ के संयु्नत बयान पर हस्ताक्षर करने से इन्कार दरअसल इसी नये आत्मविश्वासी दृष्टिकाेण का प्रतीक है.
 
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी राजनाथ सिंह के निर्णय का समर्थन किया और कहा कि एक सदस्य (संकेत स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की ओर था) ने बयान में आतंकवाद का जिक्र करने का स्थापना का प्रमुख उद्देश्य रहा है. एससीओ की सर्वसम्मति आधारित निर्णय प्रणाली के चलते संयु्नत बयान जारी नहीं हाे सका, क्याेंकि भारत ने आपत्ति जतायी. इससे न केवल इस मंच की आंतरिक विसंगतियां उजागर हुईं, बल्कि यह भी सिद्ध हुआ कि कुछ सदस्य अपने राजनीतिक हिताें के लिए मंच का दुरुपयाेग कर रहे हैं.पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की गतिविधियाें काे पहलगाम आतंकी हमले के समकक्ष बताने की काेशिश और चीन द्वारा इस तुलना का समर्थन भारत के लिए अस्वीकार्य था. भारत काे अब एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचाें के प्रति अपने दृष्टिकाेण पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. यदि भारत इन मंचाें से अलग हाेने का फैसला करता है, ताे वह पाकिस्तान और चीन जैसे विराेधी देशाें काे और अधिक प्रभावी भूमिका निभाने का अवसर देगा.
 
इसके बजाय भारत काे इन मंचाें पर डटे रहकर अपने पक्ष काे मजबूती से रखना चाहिए और उन देशाें के साथ मिलकर काम करना चाहिए, जाे एससीओ के मूल उद्देश्याें के प्रति प्रतिबद्ध हैं. इस महीने हाेने वाली विदेश मंत्रियाें की बैठक और वर्ष के अंत में प्रस्तावित एससीओ शिखर सम्मेलन भारत के लिए इन मंचाें की विश्वसनीयता काे परखने और अपनी कूटनीतिक क्षमता दिखाने का एक और अवसर हाेगा.इन घटनाओं की पृष्ठभूमि में भारत-चीन राजनयिक संबंधाें की 75वीं वर्षगांठ भी मनायी गयी है.हालांकि दाेनाें देशाें ने संबंधाें काे स्थिर करने की इच्छा जतायी है, लेकिन संरचनात्मक मुद्दा अब भी संबंधाें में बाधक बने हुए हैं.वर्ष 2020 के गलवान संघर्ष के बाद सीमा विवाद अब भी अविश्वास का एक बड़ा कारण बना हुआ है. कुछ क्षेत्राें में सैनिकाें की वापसी हुई है, लेकिन पूर्ण रूप से तनाव मु्नित और विघटन अभी बाकी है. तिब्बत पर चीन की आक्रामक नीति, दलाई लामा के उत्तराधिकारी काे लेकर उसकी रणनीति और ऐतिहासिक सीमाओं पर अडिग रुख से स्पष्ट है कि तनाव भविष्य में भी बना रहेगा.
-आनंद कुमार