नाेमा बच्चाें का जानी दुश्मन !

    05-Jul-2025
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Noma
मुख के राेगाें के निदान के लिए विश्वभर में काफी कुछ किया गया है, परंतु अब भी 40 वर्ष की उम्र हाेने तक लगभग 30 प्रतिशत व्य्नितयाें के दांताें में क्षय की बीमारी लग जाती है और औसत 65 वर्ष की आयु पार करते-करते 40 प्रतिशत के दांत ताे बिल्कुल झड़ जाते हैं.मुख के एक राेग, जिसकी जानकारी बहुत कम लाेगाें काे है, का नाम है नाेमा.इस बीमारी से लाखाें बच्चे प्रतिवर्ष मर जाते हैं तथा हजाराें अपंग और कुरुप हाे जाते हैं. यद्यपि अकथ्य और असह्य पीड़ा से ग्रस्त इन बच्चाें में अधिकांश काे नाेमा के प्रभाव से बचाया जा सकता है.विकसित देशाें के बच्चाें काे इससे मु्नित दिलाने में देश की सरकाराें ने सफलता प्राप्त कर ली है. विकासशील देशाें में यह बीमारी भारत, अफ्रीका और अमरीकी देशाें में काफी अधिक है.
 
मसूड़े के अल्सर से शुरू हाेने वाली बीमारी नाेमा के शिकार प्राय: बच्चे ही हाेते हैं. यद्यापि कुछ मामलाें में बड़े लाेगाें में भी यह बीमारी पाई गई है. परंतु यह अपवाद स्वरूप है. नाेमा के अधिकांश मामले प्राय: 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चाें में पाए गए हैं. सर्वाधिक मामले 3-4 वर्ष के बच्चाें के हैं.बच्चाें में दांत निकलने के दाैरान हाेने वाली बीमारियां- दांत निकलते समय शाेथ हाेने स्वाभाविक है. ज्वर, लाली, पीड़ा, सूजन तथा कार्य अक्षमता यह सभी लक्षण दांत निकलते समय बच्चाें में प्रकट हाेते हैं.बच्चे इस समय शरीर की विकास की अवस्था में हाेते हैं तथा उनमें बाह्य राेगाें से लड़ने की क्षमता कम हाेती है.सूजन/शाेथ आदि के कारण यह और भी कमजाेर हाे जाती है. ऐसी अवस्था में शरीर पर संक्रमण का प्रभाव निश्चित हाे जाता है. बेचैनी, लार गिरना, अंगूठा चूसना, दूध इत्यादि का न पीना, दस्त, ज्वर, खांसी आदि अनेकाें समस्याएं बन जाती हैं.