पुणे, 5 जुलाई (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन बच्चों और किशोरों के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है. यह एक ओर शिक्षा, संवाद और सुरक्षा के लिए उपयोगी है, तो दूसरी ओर इसके अत्यधिक उपयोग से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, एकाग्रता, सामाजिकता और भविष्य की दिशा पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. क्या 18 साल से पहले बच्चों के पास व्यक्तिगत मोबाइल होना चाहिए? क्या सोशल मीडिया और मोबाइल गेम्स उनके लिए सही हैं? इस ज्वलंत विषय पर विभिन्न लोगों ने दै. आज का आनंद के लिए प्रो.रेणु अग्रवाल से अपने अनुभव, दृष्टिकोण और सुझाव साझा किए. प्रस्तुत हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-
मोबाइल- प्रो. रेणु अग्रवाल (मो. 8830670849)
एक साधन है, संबंध नहीं
मुझे लगता है कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को न तो मोबाइल देना चाहिए और न ही सोशल मीडिया अकाउंट बनाने की अनुमति मिलनी चाहिए. इस उम्र में वे यह समझ नहीं पाते कि क्या कंटेंट सही है और क्या गलत. यही वजह है कि अधिकतर साइबर अपराधों के शिकार इसी उम्र के बच्चे होते हैं. मोबाइल गेम्स भी बच्चों के एकाग्रता और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालते हैं. यह डिवाइस केवल एक उपकरण होना चाहिए, न कि परिवार का सदस्य.अगर किसी को मोबाइल की लत लग जाती है, तो उसका हल है खुद को व्यस्त रखना. पढ़ाई, खेल, या किसी रचनात्मक गतिविधि में ध्यान लगाकर मोबाइल की निर्भरता से छुटकारा पाया जा सकता है.
-शामल चौधरी, धानोरी, पुणे
मोबाइल की लत से बच्चों को बचाएं
आजकल के मोबाइल गेम्स इस प्रकार डिजाइन किए गए हैं कि बच्चों को उनकी लत जल्दी लग जाती है. हालांकि, रेसिंग या ब्रेन गेम्स सीमित समय तक खेलने की अनुमति दी जा सकती है.10वीं के पहले बच्चों के पास मोबाइल की जशरत नहीं होती. यदि कोई काम हो, तो वे माता-पिता का फोन उपयोग कर सकते हैं. मोबाइल से शिक्षा, जैसे यूट्यूब से कॉन्सेप्ट समझना या विज्ञान के एनिमेशन देखना, संभव हुआ है. मूड अच्छा करने के लिए गाने सुनना भी एक विकल्प है, लेकिन कोशिश होनी चाहिए कि बच्चे अधिक से अधिक समय रचनात्मक कार्यों जैसे पेंटिंग, सिंगिंग, और आउटडोर गेम्स में बिताएं. हमें उन्हें शॉर्ट वीडियो के दुष्परिणाम समझाने चाहिए और रियल वर्ल्ड की ओर प्रेरित करना चाहिए.
-शरद राजभर, बलिया, उत्तर प्रदेश
बच्चों के लिए मोबाइल की सीमाएं तय हों मेरे अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को व्यक्तिगत मोबाइल नहीं दिया जाना चाहिए. मोबाइल आज जशरत बन गया है, लेकिन उसके इस्तेमाल की सीमाएं हम तय कर सकते हैं. बच्चों में किसी नई चीज की ओर आकर्षण स्वाभाविक है, इसलिए उन्हें सही और गलत का अंतर समझाना हमारा कर्तव्य है.बच्चे होमवर्क, ट्यूशन या दोस्तों से संवाद के लिए मोबाइल माँगते हैं, तो माता- पिता का मोबाइल दिया जा सकता है. यदि बच्चा क्लास के लिए बाहर जाता है, तो सुरक्षा की दृष्टि से मोबाइल जरूरी हो सकता है लेकिन वह एक बेसिक फोन भी हो सकता है. सोशल मीडिया अकाउंट्स 18 साल से पहले होना आवश्यक नहीं है. अगर कोई डिवाइस देना ही है, तो टैबलेट या लैपटॉप अधिक सुरक्षित विकल्प हैं. बच्चों को भी मोबाइल की अहमियत और सीमित उपयोग की समझ देना जशरी है.
- वर्षा राठौर, धानोरी, पुणे
मोबाइल की जशरत और उम्र की समझ
मोबाइल फोन आज के जमाने की अनिवार्य जशरत बन चुका है. लेकिन बच्चों के लिए यह कब और कैसे उपलब्ध कराया जाए, यह समझदारी से तय होना चाहिए. मेरे विचार में 16 वर्ष की उम्र तक बच्चों के पास अपना पर्सनल मोबाइल नहीं होना चाहिए. इस आयु तक उनका जीवन घर, स्कूल, माता-पिता और दोस्तों के इर्द-गिर्द सिमटा होता है. इस दौरान वे माता-पिता का मोबाइल उपयोग कर सकते हैं. जब बच्चा कॉलेज में प्रवेश करता है, तब उसकी सुरक्षा की दृष्टि से मोबाइल अनिवार्य हो जाता है. 10वीं कक्षा से पहले बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट नहीं होना चाहिए. यदि अकाउंट हो भी, तो उसका सीमित और निगरानी में उपयोग होना चाहिए. टिकट बुकिंग से लेकर जानकारी तक सब इसमें समाहित है. लेकिन सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियो की लत से बचने के लिए आत्मसंयम और अनुशासन जशरी है. केवल सीमित उपयोग से ही हम इसका सही लाभ उठा सकते हैं.
-दीप्ति चौधरी, धानौरी, पुणे
बच्चों के विकास के लिए संतुलन जशरी
मेरे अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को व्यक्तिगत मोबाइल नहीं देना चाहिए. इस निर्णय के पीछे कई कारण हैं मैंने अपने दोस्तों के सोशल वेलबीइंग ऐप्स पर देखा है कि वे औसतन 5 घंटे प्रतिदिन मोबाइल पर बिता रहे हैं, जबकि इस समय का उपयोग परीक्षाओं की तैयारी में होना चाहिए. मोबाइल के बजाय खेल और विश्राम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अयादा लाभकारी हैं. शारीरिक खेल जैसे क्रिकेट, फुटबॉल या टेबल टेनिस उन्हें अवसाद से बचाते हैं और सोशल इंटरैक्शन बढ़ाते हैं.सोशल मीडिया पर अयादातर समय रील्स देखने में बीतता है, जो व्यर्थ होता है. मैंने देखा है कि एक दोस्त मोबाइल गेम की लत के कारण सालभर पिछड़ गया और अकेलापन महसूस करता रहा. दोस्ती और बाहरी संवाद इस लत से बचा सकते हैं.
- तेजशराज, भागलपुर, बिहार
बच्चों पर मोबाइल का बढ़ता असर
आजकल मोबाइल का अत्यधिक उपयोग बच्चों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल रहा है. यह केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक व्यवहार और भविष्य के निर्माण को भी प्रभावित कर रहा है. 18 वर्ष से कम और विशेषकर 10वीं कक्षा से पहले के बच्चों को सोशल मीडिया पर नहीं होना चाहिए. वे ट्रोलिंग, साइबर बुलीइंग और गलत कंटेंट को ठीक से समझ नहीं पाते, जिससे वे तनाव, तुलना और हीनभावना के शिकार हो सकते हैं. मोबाइल गेम्स भी यदि सही चयन और संतुलन से खेले जाएं तो लाभकारी हो सकते हैं, लेकिन लत लगने पर यह हानिकारक हो जाते हैं. मोबाइल एक जशरी उपकरण है, लेकिन यह लाभदायक तब ही होता है जब हम इसे नियंत्रित रूप से और विवेक से उपयोग करें.
- स्वाति दूरगकर, पुणे