देश का मध्यम वर्ग खर्च करने में क्यों हिचक रहा है?

    08-Jul-2025
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भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2024-25 की चाैथी तिमाही में भी पिछले वित्त वर्ष की चाैथी तिमाही की तरह 7.4 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की है. अनुमान है कि 2024-25 में करीब 6.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. हालांकि, 2023-24 में हमने 9.2 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की थी. इस लिहाज से साल 2024-25 कुछ सुस्त दिख रहा है. फिर भी भारत का दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है. ऐसे में, ्नया देश के मध्यम वर्ग से उपभाेग-आधारित विकास-चक्र काे आगे बढ़ाने की उम्मीद की जा सकती है? ‘प्राइस’ नामक शाेध संस्थान ने भारत में उन लाेगाें काे ‘मध्यम वर्ग’ में शामिल किया है. जाे पांच लाख रुपये से लेकर 30 लाख रुपये तक सालाना कमाता है. माना जाता है कि इस वर्ग में साल 2020-21 में 43.2 कराेड़ लाेग थे.
 
जाे 2030-31 तक बढ़कर 71.5 कराेड़ और 2047 तक एक अरब हाे जाएंगे. अगर भारत की अनुमानित आबादी तब 1.66 अरब मानें, ताे जनसंख्या में इस वर्ग की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत हाेगी. फिर भी, इन बड़े आंकड़ाें में एक चिंतित करने वाली प्रवृत्ति यह सामने आई है कि शहराें में विवेकाधीन खर्च (जरूरी खर्च से अतिर्नित हाेने वाला व्यय) अब भी कम बना हुआ है.भारतीय रिजर्व बैंक का मई 2025 का ताजा शहरी उपभाे्नता विश्वास सर्वेक्षण इसे रेखांकित करता है. उपभाे्नता भावना काे मापने वाला माैजूदा विश्वास सूचकांक 95.4 अंकाें के साथ ‘तटस्थ स्तर’ (जाे न सकारात्मक और न नकारात्मक असर दिखाता है) से नीचे बना हुआ है. मार्च की तुलना में इसमें मामूली कमी आई है. बेशक, भावी अपेक्षा सूचकांक (एफईआई) 123.4 पर पहुंच गया है, जाे अच्छा संकेत देता है, पर खर्च काे लेकर जन-भावना कमजाेर बनी हुई है.
 
महंगाई की आशंकाएं भी खपत पर भारी साबित हुई हैं. मई में खुदरा महंगाई दर घटकर 2.82 प्रतिशत रह गई, जिसके कारण रिजर्व बैंक ने 50 आधार अंकाें की कटाैती की. फिर भी किराया, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा व व्य्नितगत देखभाल जैसे जरूरी मदाें पर महंगाई का दबाव काफी ज्यादा है. खाद्य पदार्थाें की कीमताें में नरमी और वास्तविक आय में सुधार से कुछ राहत जरूर मिली, लेकिन शहराें में रहन-सहन पर हाेने वाले खर्च के कारण लाेग गैर-जरूरी व्यय करने से बचते हैं.श्रम बाजार में भी चिंता है. आधिकारिक आवाधिक श्रम-बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के अनुसार, मई में भारत की बेराेजगारी दर बढ़कर 5.6 प्रतिशत हाे गई, जाे अप्रैल में 5.1 फीसदी थी. इतना ही नहीं, 15 से 29 वर्ष के आयु-वर्ग के शहरी नाैजवानाें में बेराेजगारी दर बढ़कर 17.9 फीसदी हाे गई है. उच्च विकास के बाबजूद राेजगार सृजन में तेजी नहीं है.
 
कई नई नाैकरियां या ताे अनाैपचारिक हैं या फिर गिग-आधारित (छाेटी अवधि का काम, जाे अ्नसर डिजिटल प्लेटफाॅर्म द्वारा किया जाता है,) जाे नाममात्र की सुरक्षा देती हैं या इनमें ऊपर उठने की बहुत गुंजाइश नहीं हाेती. राेजगार की यह दशा मध्यम वर्ग के भीतर आमदनी काे लेकर असुरक्षा बढ़ाती है और उनके आत्मविश्वास काे कमजाेर करती है.सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग इंडियन इकाेनाॅमी (सीएमआईई) ने अपने अनुमान में श्रम-श्नित में कमी की बात कही है.उसके मुताबिक, भारत की श्रम-श्नित भागीदारी दर 40- 45 फीसदी है. जबकि पीएलएफएस में 50-55 प्रतिशत का दावा किया गया है. इस विसंगति की वजह अलगअलग परिभाषाओं का उपयाेग बताया गया है. मगर एक बड़ी आबादी के लिए, जिनके पास स्थायित्व देने वाली नाैकरी नहीं है, इसका मतलब है कि उनका परिवार बड़े खर्च वाले विवेकाधीन व्यय काे लेकर सजग है.
 
चीन से तुलना करें, ताे भारत के मध्यम वर्ग की दुविधा और बढ़ती दिखती है. 2000 से 2010 के बीच, चीन के मध्यम वर्ग का तेजी से विस्तार हुआ, क्योंकि निर्यात बढ़ने के कारण बड़े पैमाने पर राेजगार का सृजन हुआ और वेतन में लगातार वृद्धि हुई. 2010 तक, उसकी करीब 40 फीसदी आबादी मध्यम वर्ग में थी. इससे आवास, ऑटाेमाेबाइल, यात्रा और टिकाऊ वस्तुओं के बाजार में तेजी आई. सस्ता घर, राेजगार सृजन और परिसंपत्ति निर्माण के लिए आसानी से कर्ज उपलब्ध कराने के लिए नीतिगत प्रयास किए गए.भारत, तेजी से शहरीकरण के बावजूद, तुलनात्मक रूप से फै्नटरी राेजगार या शहरी आवास जैसे क्षेत्राें में चीन की बराबरी नहीं कर पाया है.निस्संदेह, कर्ज का विस्तार हुआ है, जिसे मध्यम वर्ग के उपभाेग काे बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है, पर इसमें भी काफी असमानता है.
 
ऑनलाइन तरीके से कर्ज लेने में तेजी आई है, पर तत्काल उपभाेग के लिए असुरक्षित और महंगे पर्सनल लाेन तक ही यह सीमित है. जैसा कि जनवरी 2025 में फिच रेटिंग्स की रिपाेर्ट में बताया गया है, असुरक्षित खुदरा कर्ज में इस तेजी से बैंकाें के लिए परिसंपत्ति गुणवत्ता जाेखिम (कर्ज लेन-देन पर खतरा पैदा हाेना, जिससे बैंकाें की आय प्रभावित हाेती है.) पैदा हाेता है.औपचारिक नाैकरी और भराेसेमंद आमदनी न हाेने के कारण मध्यमवर्गीय परिवाराें के लिए महंगी खरीदारी के वास्ते सस्ता कर्ज पाना दुश्वार हाे जाता है.अगर भारत का मध्यम वर्ग देश की विकास-गाथा में हाथिये पर है, ताे इसके आर्थिक दुष्परिणाम हाे सकते हैं.इससे घरेलू मांग कमजाेर रह सकती है, और सार्वजनिक निवेश व निर्यात पर निर्भरता बढ़ सकती है. यदि विकास से सिर्फ अमीराें काे फायदा हाेता है. ताे विषमता का खतरा और बढ़ जाएगा, जबकि उपभाे्नताओं पर निर्भर क्षेत्र कमजाेर मांग व सिमटती विस्तार क्षमता से जूझते रहेंगे.
 
इसका सामाजिक और राजनीतिक असर भी हाे सकता है.आर्थिक सुरक्षा के बिना बढ़ती आकांक्षाएं अ्नसर लाेगाें में निराशा और संस्थाओं के प्रति उनमें अविश्वास पैदा करती है. इससे विकास काे व्यापक आबादी की समृद्धि में बदलना मुश्किल हाे सकता है.
भारत यहां पर चीन से सबक ले सकता है, जिसने आर्थिक विकास व सामाजिक स्थिरता काे बनाए रखने में एक संपन्न मध्यम वर्ग की अहमियत काफी पहले पहचान ली थी. उसकी 14वीं पंचवर्षीय याेजना (2021-25) का लक्ष्य मध्यम आय वर्ग का विस्तार करना है, जिसकाे ‘आगे बढ़ाने’ की मंशा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2022 में जताई थी. भारत में भी उपभाेग - आधारित तर्नकी के जरूरी आयाम माैजूद हैं, पर उसका ब्लूप्रिंट अधूरा है. यह हमारी अर्थव्यवस्था व सामाजिक ताने-बाने के लिए परेशानी की बात है. -तुलसी जयकुमार