लाेगाें का जुए और युद्ध में इतना आकर्षण क्यों है ?

    13-Aug-2025
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Osho 
कई बार जब कर्ता क्रिया में खाे जाता है ताे तुम अचानक सुख का एक स्ुरण अनुभव करते हाे. ऐसा इसीलिए हाेता है क्याेंकि तुम क्रिया में खाे गए.नृत्य में ऐसा एक क्षण आता है जब नृत्य रह जाता है. और नर्तक खाे जाता है. तब तत्क्षण एक आशीर्वाद एक साैंदर्य एक आनंद बरस उठता है. नर्तक एक अज्ञात आनंद से भर जाता है. वहां क्या हुआ. केवल क्रिया ही रह गई और कर्ता विलीन हाे गया.युद्ध भूमि में सैनिक कई बार बड़े गहन आनंद काे उपलब्ध हाे जाते हैं. यह साेच पाना भी कठिन है क्याेंकि वे मृत्यु के इतने निकट हाेते हैं कि किसी भी क्षण वे मर सकते हैं. शुरू-शुरू में ताे वह भयभीत हाे जाते है, भय से कांपते हैं, लेकिन तुम राेज-राेज लगातार कांपते और भयभीत नहीं रहा सकते. धीरे-धीरे आदत पड़ जाती है. मनुष्य मृत्यु काे स्वीकार कर लेता है, तब भय समाप्त हाे जाता है.
 
और जब मृत्यु इतनी करीब हाे और जरा सी चूक से मृत्यु घटित हाे सकती है ताे कर्ता भूल जाता है और केवल कर्म रहजाता है. केवल क्रिया रह जाती है. और वे क्रिया में इतने गहरे डूब जाते हैं कि वे सतत याद नहीं रख सकते कि ‘मैं हूं’. और ‘मैं हूं’ ताे परेशानी खड़ी करेगा. तुम चूक जाओगे तुम क्रिया में पूरे नहीं हाे पाओगे. और जीवन दांव पर लगा है. इसलिए तुम द्वैत काे नहीं ढाे सकते. कृत्य समग्र हाे जाता है. और जब भी कृत्य समग्र हाेता है ताे अचानक तुम पाते हाे कि तुम इतने आनंदित हाे जितने तुम पहले कभी भी न थे. याेद्धाओं ने आनंद के इतने गहरे झरनाें का अनुभव किया हजितना कि साधारण जीवन तुम्हें कभी नहीं दे सकता. शायद यही कारण हाे कि युद्ध इतने आकर्षित करते है. और शायद यही कारण हाे कि क्षत्रिय ब्राह्मणाें से अधिक माेक्ष काे उपलब्ध हुए है. क्याेंकि ब्राह्मण हमेशा साेचते ही रहते है, बाैद्धिक ऊहापाेह में उलझे रहते हैं. जैनाें के चाैबीस तीर्थंकर राम, कृष्ण, बुद्ध, सभी क्षत्रिय याेद्धा थे. उन्हाेंने उच्चतम शिखर काे छुआ है.
 
किसी दुकानदार काे कभी इतने ऊंचे शिखर छूते नहीं सूना हाेगा. वह इतनी सुरक्षा में जीता है कि वह द्वैत में जी सकता है. वह जाे भी करता है कभी पूरा-पूरा नहीं हाेता. लाभ काेई समग्र कृत्य नहीं हाे सकता तुम उसका आनंद ले सकते हाे, लेकिन वह काेई जीवन मृत्यु का सवाल नहीं हाे सकता. तुम उसके साथ खेल सकते हाे. लेकिन कुछ भी दांव पर नहीं लगा है. वह एक खेल है. दुकानदारी एक खेल ही है. धन का खेल है. खेल काेई बहुत खतरनाक बात नहीं है. इसलिए दुकानदार सदा कुनकुना रहता है. एक जुआरी भी दुकानदार से अधिक आनंद काे उपलब्ध हाे सकता है. क्याेंकि जुआरी खतरे में उतरता है. उसके पास जाे कुछ है वह दांव पर लगा देता है. पूरे दांव के उस क्षण में कर्ता खाे जाता है.शायद यही कारण है कि जुए में इतना आकर्षण है, युद्ध में इतना आकर्षण है.जहां तक मैं समझता हूं,जाे भी कुछ आकर्षण है कहीं उसके पीछे कुछ आनंद भी छिपा हाेगा. कहीं अज्ञात का काेई इशारा छिपा हाेगा. कहीं जीवन के गहन रहस्य की झलक छिपी हाेगी. अन्यथा कुछ भी आकर्षण नहीं हाे सकता.