पर्यूषण में क्षमा, संयम, तप के मूल्यों का पर्व मनाए

    16-Aug-2025
Total Views |
 
 pa
बिबवेवाड़ी, 14 अगस्त
(आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
हमारे यहां लोक पर्व होते हैं. इतिहास, युद्ध, जन्म और मृत्यु के भी पर्व होते हैं, लेकिन हम वैचारिक मूल्यों का उत्सव नहीं मनाते. क्षमा, संयम, तप के मूल्यों का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. इसलिए, इस पर्यूषण पर्व में इन मूल्यों का पर्व मनाएं, ऐसी अपील जैन धर्मगुरु पूज्य प्रवीणऋषि म. सा. ने की है. युगल धर्म संघ की ओर से इस पर्यूषण पर्व को मनाने की योजना बनाई गई है. इस पृष्ठभूमि में, प. पू. प्रवीणऋषि म. सा. ने सभी का मार्गदर्शन किया है. उनहोंने कहा कि, क्षमा सर्वोच्च मूल्य है. क्षमा मांगना या क्षमा करना कोई बाध्यता नहीं है. इसलिए उन्होंने यह भी कहा है कि, इस पर्यूषण पर्व पर घर, दुकान, कार्यालय, उद्योग, विद्यालय, महाविद्यालय सभी स्थानों पर अष्टमंगल की स्थापना करनी चाहिए और पर्यूषण पर्व को उत्साहपूर्वक मनाना चाहिए. इसके अलावा, उन्होंने पर्व मनाने का मार्गदर्शन भी दिया है.
 
उन्होंने कहा कि, मनुष्य के उत्थान के समय कोई धर्म, सत्ता या व्यवस्था नहीं थी. कोई गुरु या नेता नहीं था. हालांकि, क्षमा, धैर्य आदि मूल्य भी तब विद्यमान थे. उस समय मनुष्य प्रकृति के सान्निध्य और उसके मार्गदर्शन में सर्वोच्च मूल्यों का पालन कर रहा था. उस समय प्रकृति के आधार पर ही पर्व मनाए जाते थे. इसलिए, आज भी बिना किसी गुरु या व्यक्ति के मूल्यों का पालन करते हुए पर्यूषण पर्व मनाने की आवश्यकता है, ऐसा भी प. पू. प्रवीणऋषि म. सा. ने कहा है.
 
pa 
सर्वश्रेष्ठ सजावट के लिए पुरस्कार : विजय भंडारी
युगल धर्म संघ ने इस पर्यूषण पर्व उत्सव को मनाने की योजना बनाई है. युगल धर्म संघ द्वारा प्रत्येक घर, दुकान, विद्यालय और उद्योग में स्थापना हेतु अष्टमंगल प्रतिमाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है. साथ ही, सर्वश्रेष्ठ सज्जाकारों में से तीन नंबर निकाले जाएंगे. विजेताओं को क्रमशः 1 लाख 8 हजार रुपये, 54 हजार रुपये, 27 हजार रुपये और 7 लोगों को 9 हजार रुपये प्रोत्साहन स्वरूप दिए जाएंगे.
जीतो एपेक्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष और युगल धर्म संघ के अध्यक्ष विजय भंडारी ने सभी से अपील करते हुए कहा है कि, इसके लिए पंजीकरण आवश्यक है. संघ की ओर से बताया गया कि सचिन जैन 9422302899, अशोक भंडारी 7276500132, महावीर चोरडिया 9822654743, मनोज धोका 9922436402, से 19 अगस्त तक संपर्क कर सकते हैं.
 
ऐसे मना सकते हैं उत्सव
सुबह और शाम, अपने मित्रों, परिवार, रिश्तेदारों और अन्य लोगों सहित जिन लोगों को भी आपने ठेस पहुंचाई है, उनसे क्षमा मांगें और दूसरों को भी क्षमा करें. सात दिनों तक प्रतिदिन एक ही रंग के वस्त्र पहनें. सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरा, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को सफेद, शनिवार को काला और रविवार को सूर्य के रंग के वस्त्र पहनें और इस पर्यूषण पर्व को उत्सव की तरह मनाएं.
 
नींद को रोग का घर नहीं, बल्कि योग का मंदिर बनाओ
मन के तूफानों को साथ लेकर नींद के अधीन होना है, या बाहरी दुनिया को भुलाकर शांति से नींद लेनी है - यह तय करना हमारा खुद का काम है. इसके लिए जशरी है कि हम अपनी नींद के स्वयं ‌‘स्वामी‌’ बनें. नींद यह क्रिया हम सभी के द्वारा सहज रूप से घटती है. लेकिन नींद की कला सभी को नहीं आती. नींद को ‌‘कला‌’ कहने के पीछे विशेष कारण है - जहां भी कला होती है, वहां स्वाभाविक रूप से सौंदर्य भी आता है. जहां कला नहीं, वहां सौंदर्य नहीं और जहां सौंदर्य नहीं, वहां शिव अर्थात दिव्य शक्ति नहीं होती और जहां शिव नहीं, वहां सत्य भी नहीं होता, इसलिए ही कहा गया है - सत्यम, शिवम्‌‍, सुंदरम्‌‍...!
 
जब सत्य शिवमय और सुंदर होता है, तभी वह सत्य अधिक आकर्षक और अनुभूतिपूर्ण लगता है. ठीक वैसे ही नींद की अवस्था भी होती है. नींद एक सत्य अवस्था है, शिवमय है और सुंदर भी है और उसे वैसी ही होनी चाहिए. नींद की इस विश्राम अवस्था से जीवन को एक नया आयाम मिलता है. आंखें बंद होते ही प्रमाद (अविवेक) उभर सकता है, वैसे ही आंखें बंद होते ही ध्यान की अवस्था भी प्राप्त की जा सकती है. इसके लिए जीवन जीते हुए, अपने ऊपर और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण आवश्यक है. मान लीजिए अगर मैंने एक घंटा कार्य किया तो मुझे उसके बदले में कुछ पाने की अपेक्षा होती है. यदि उस एक घंटे से जो कुछ मिला, वह सुखदायक लगता है, तो सोचिए कि रोजाना 6-7 घंटे की नींद से हमारे शरीर में कितनी प्रचुर ऊर्जा उत्पन्न होती होगी.
 
असल में, नींद एक स्वाभाविक क्रिया है, लेकिन यदि हम इस क्रिया को जागरूकता और विवेक के साथ नियंत्रित करना सीखें, तो इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा कहीं अधिक शक्तिशाली होगी. तब हम परिस्थितियों के गुलाम नहीं रहेंगे, बल्कि अपने निर्णयों और विचारों के स्वामी बनकर जीवन जी सकेंगे. इसलिए करना यही है कि नींद लेने से पहले खुद को ‌‘निराकार‌’ करना है - आत्मरूप में स्थित होकर सोना है. नींद रोग का घर न बने, बल्कि योग का मंदिर बने.
- उपाध्याय प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. वर्धमान सांस्कृतिक केंद्र, गंगाधाम, शत्रुंजय मंदिर रोड, पुणे