हिंदुस्तान में अंग्रेजाें की हुकूमत थी, ताे हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञ लाेगाें काे समझाते थे कि अंग्रेजाें का नियम है-डिवाइड एण्ड रूल त्ताेड़ाे और राज्य कराे. लेकिन काेई पूछे कि सारी दुनिया के राजनीतिज्ञाें का नियम क्या है? उनका भी नियम वही है त्ताेड़ाे और राज्य कराे.जब तक पृथ्वी खंड-खंड में टूटी है, तब तक पृथ्वी पर हजाराें तरह के राजनीतिज्ञाें का राज्य हाेगा. जिस दिन मनुष्य एक हाे जायेगा, उस दिन इन राजनीतिज्ञाें काे विदा हाे जाना पड़ेगा. मनुष्याें की एकता राजनीतिज्ञाें की हत्या सिद्ध हाेगी, इसलिए राजनीतिज्ञ मनुष्याें काे एक न हाेने देगा.हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि अगर देश के दुश्मन न हाें, ताे झूठे दुश्मन पैदा कराे, क्याेंकि जब तक तुम दुश्मन पैदा नहीं करते, तब तक तुम महान नेता नहीं बन सकते हाे. महान नेता बनने के लिए युद्ध की भूमिका जरूरी है. अगर सच्चे दुश्मन मिल जाएं, ताे बहुत ठीक, अन्यथा झूठे दुश्मन पैदा कराे. लेकिन दुश्मन जरूरी है.
क्याेंकि जब दुश्मन हाेता है, तब जनता नेता के पीछे खड़ी हाे जाती है- घबड़ाहट में, भय में, असुरक्षा में, इनसिक्याेरिटी में.वह कहती है, हमें बचाओ. और जाे उसे बचाता है, वह महान हाे जाता है. इसलिए सब युद्ध बड़े नेताओं काे पैदा करते हैं.अगर बड़ा नेता हाेना हाे, ताे युद्ध बहुत जरूरी है. शांति के समय में बड़े नेता पैदा नहीं हाेते. बड़े नेता के पैदा हाेने के लिए संघर्ष जरूरी है, युद्ध जरूरी है, हिंसा जरूरी है, हत्या जरूरी है. जितनी हत्या हाेगी, जितनी हिंसा हाेगी, उतना बड़ा नेता प्रकट हाेगा. शांति के समय में बड़ा नेता प्रकट नहीं हाेता. अगर शांति स्थाई चल जाए, ताे नेता एकदम ेड आउट हाे जाएंगे, विदा हाे जाएंगे, उनकाे काेई पूछेगा ही नहीं. उनकी जरूरत ही तभी है.रास्ते पर, चाैराहे पर एक पुलिसवाला खड़ा है.
वह पुलिसवाला इसलिए खड़ा है कि कहीं चाेर है. अदालत में एक मजिस्ट्रेट बैठा है, वह इसलिए बैठा है कि कहीं चाेर है. अगर चाेर विदा हाे जाएं, ताे चाेराें के विदा हाेते ही अचानक चाैरस्ते का पुलिसवाला भी विदा हाे जायेगा.चाेराें के विदा हाेते ही मजिस्ट्रेट विदा हाे जायेगा. इसलिए मजिस्ट्रेट ऊपर से चाेराें काे सजा दे रहा है, भीतर से भगवान से प्रार्थना करता है कि राेज आते रहना. स्वाभविक है.
उसका धंधा ताे चाेराें पर है. उसकी जिंदगी चाेराें पर है.राजनीतिज्ञ ऊपर से कहता है कि शांति चाहिए. कबूतर उड़ाता है, शांति के कबूतर! लेकिन भीतर से युद्ध की कामना करता है.युद्ध चाहिए. युद्ध न हाे, ताे राजनीतिकनेता की काेई जगह नहीं है. युद्ध न हाे, ताे राजनीति की ही काेई जगह नहीं है. असल में युद्ध से ही राजनीति पैदा हाेती है. िफर अगर बड़ा युद्ध न चलता हाे ताे छाेटा युद्ध चलाना पड़ता है.
अगर मुल्क के बाहर काेई लड़ाई न हाे, ताे मुल्क के भीतर लड़ाई चलानी पड़ती है. अगर मुल्क के भीतर भी न हाे, ताे एक ही पार्टी काे दाे हिस्साें में ताेड़कर लड़ाई चलानी पड़ती है! बड़ा नेता लड़ाई में पैदा हाेता है. छाेटे नेता शांति में जीते हैं. छाेटे नेता कभी बड़े नहीं हाे सकते हैं, अगर लड़ाई चलनी चाहिए. लड़ाई चलनी ही चाहिए किन्हीं भी तलाें पर. हजार-हजार तलाें पर लड़ाई चलनी चाहिए. लड़ाई नेता काे बड़ा करती है. जनता काे आतुर करती है, जनता की आंखाें काे उठाती है, नेता काे देखने के लिए. इसलिए नेता निरंतर नई लड़ाई की चेष्टा में संलग्न है.और मजा यह है कि राेज मंच पर खड़े हाेकर कहता है कि शांति चाहिए, एकदम चाहिए. मनुष्य इकट्ठे हाें, सब एक हाें. इधर मंच पर यह कहेगा. मंच के पीछे सारे उपाय करेगा, जिनसे मनुष्य एक न हाे पाये, जिनसे आदमी कभी इकट्ठा न हाे पाये, जिनसे पृथ्वी कभी इकट्ठी न हाे पाये. इसकी पीछे काेशिश चलेगी, लेकिन यह हम समझ सकते हैं.