सहकारी शक्कर कारखानों पर संकट ः शरद पवार

किशोर पवार जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा

    18-Aug-2025
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 पुणे, 17 अगस्त (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)


दिन-ब-दिन सहकारी आंदोलन पर संकट गहराता जा रहा है. निजी चीनी कारखानों का वर्चस्व बढ़ रहा है और इसे देखकर अस्वस्थता बढ़ती है. जब कारखानों से संबंधित समस्या खड़ी होती है, तो चर्चा किससे करनी चाहिए यह प्रश्न निर्माण हो रहा है. राज्य के निजी कारखाने बाहरी लोगों के हैं, इसलिए उनका स्थानीयों से कोई जुड़ाव नहीं है. इन कारखानों की पेराई क्षमता (क्रशिंग कैपेसिटी) भी बहुत ज्यादा बढ़ रही है, जिसके चलते छोटी क्षमता वाले सहकारी कारखानों का टिकना मुश्किल हो गया है. कामगारों की संख्या भी घटा दी गई है. ऐसे में सहकारी कारखाने उनकी प्रतिस्पर्धा में टिक नहीं पाएंगे. इसलिए राज्य सरकार को पेराई क्षमता पर ठोस नीति बनानी होगी. राज्य सहकारी चीनी कारखाना संघ और राज्य सरकार के बीच चर्चा कर इसके लिए नीति तय करना आवश्यक है. ऐसा मत पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने व्यक्त किया. वे किशोर पवार जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर पुणे के एस.एम. जोशी सभागृह में आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे. इस अवसर पर पूर्व मंत्री बालासाहेब थोरात, किशोर पवार प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. किरण ठाकुर, राज्य चीनी कामगार प्रतिनिधि संघ के अध्यक्ष तात्यासाहेब काले, प्रतिष्ठान की सचिव वंदना पवार और अंकुश काकड़े उपस्थित थे. शरद पवार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में निजी चीनी मिलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और अब वैसी ही स्थिति महाराष्ट्र में भी दिखाई दे रही है. सहकारी कारखाने घट रहे हैं और निजी कारखानों में कम से कम कामगारों से काम लेने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. कारखाने तो टिकने चाहिए, लेकिन मेहनतकश कामगारों की उपेक्षा करने वालों के खिलाफ भी विचार करना पड़ेगा. उन्होंने आगे कहा कि पहले जब चीनी कामगार संघटनाएं चर्चा के लिए आती थीं, तो कामगारों के हित में अधिक से अधिक लाभ दिलाने का प्रयास किया जाता था. लेकिन अंत में कारखानदार संघटनाओं के नेताओं के साथ मित्रता भी रहती थी. किशोर पवार हमेशा किसानों के हितों का विचार करते थे. अब हालांकि कामगारों की मानसिकता ‌‘संघर्ष नको‌’ (संघर्ष नहीं चाहिए) जैसी हो गई है, इस पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. पवार ने युवाओं के बदलते रुझान पर भी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि पहले अधिकांश युवा वामपंथी विचारधारा के होते थे, लेकिन अब उनके विचारों पर अंकुश लगाया जा रहा है. उनमें धार्मिक झुकाव अधिक दिखाई दे रहा है और लोकतंत्र को आगे बढ़ाने के लिए कोई ठोस प्रयास नजर नहीं आता. इस क्षेत्र में हम पीछे पड़ गए ह्‌ैं‍. डॉ. किरण ठाकुर ने कहा कि किशोर पवार सीमा संघर्ष के अंतिम आधार थे. तात्यासाहेब काले और अंकुश काकडे ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे.