तीन वर्ष की आयु तक बच्चा, प्रकृति का एक भाग बना रहता है, न कुछ के बारे में वह प्रमुदित हाेकर जैसे बहता है, वह अकारण ही प्रसन्न हाेता है, बस प्रसन्न, प्रमुदित और आनंदित. जरा एक बच्चे काे निरीक्षण कराे. प्रसन्न बनने के संबंध में आखिर उसने क्या प्राप्त कर लिया है? लेकिन वह ऐसा दिखाई देता है जैसे, वह संसार भर में सभी से ऊपर हाे. छाेटी-छाेटी चीजाें के साथ वह इतना अधिक प्रसन्न हाे सकता है.सागर-तट पर चमकदार पत्थराें काे इकट्ठा कर वह इतना प्रसन्न हाे सकता है, जितने कि तुम कभी भी नहीं हुए हाेगे. यदि तुम काेहिनूर भी पा लाे, ताे भी तुम उतने प्रसन्न न हाे सकाेगे.केवल चमकीले रंगीन पत्थराें के साथ, अथवा एक तितली के पीछे तेजी से पीछा करता हुआ एक बच्चा कितना अधिक आनंदित दिखाई देता है?
तीन वर्ष की आयु के निकट बच्चा सभ्य बनने लगता है, हम उसे ऐसा बनने के लिए विवश करते हैं. हम उसे सभ्यता में दीक्षित करते हैं. और सभ्यता अभी तक एक तरह का पागलपन और एक पागलखाना बन चुकी है. हम बच्चे काे अधिक से अधिक बुद्धिजीवी और कम से कम बुद्धिमान बनने काे विवश करते हैं. हम बच्चे काे अधिक से अधिक नीरस गद्यमय और कम से कम कवित्वमय बनने पर विवश करते हैं.हम बच्चे की अधिक से अधिक दिलचस्पी धन, पद, प्रतिष्ठा, शक्ति और महत्वाकांक्षा जैसी असारभूत चीजाें के बारे में और कम से कम दिलचस्पी जीवन के सच्चे आनंद के बारे में लेने के लिए विवश करते हैं. हम बच्चे काे खेलपूर्ण बनने की प्रतिभा काे एक काम करने की दिशा की ओर माेड़ देते हैं. उसमें कार्य करने की नीति प्रविष्ट कर देते हैं. अब प्रेम की अपेक्षा कर्तव्य अधिक महत्वपूर्ण हाे जाता है, अनाैपचारिक प्रवाह की तुलना में औपचारिकता अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है, सत्य की अपेक्षा शिष्टाचार अधिक महत्वपूर्ण हाे जाता है और प्रामाणिकता के स्थान पर कूट-नीति अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है.
एक बार बच्चा यह कपट और कूटनीतियां सीख लेता है, िफर वह अधिक समय तक प्रसन्न नहीं रह पाता, और जब एक बच्चा प्रसन्न नहीं रह पाता, और जब एक बच्चा प्रसन्न नहीं रह पाता, तब वह उन कारणाें काे खाेजता है कि वह प्रसन्न क्याें नहीं है? पहले हम उसे अप्रसन्न बनाते हैं, तब स्वाभाविक रूप से एक दिन वह पूछेगा ही ‘मैं क्याें इतना दुःखी हूं?’ तब तुम्हें कारण खाेजने हाेंगे.
हिन्दू कहते हैं कि ऐसा इसलिए है, क्याेंकि पूर्व जन्माें में तुमने बुरे कर्म किये थे. ईसाई कहते हैं कि ऐसा माैलिक पाप किये जाने के कारण है. क्याेंकि आदम ने परमात्मा की आज्ञा न मानकर पाप किया था. और इसी तरह के वे अन्य कारण गिनाये चले जाते हैं. अब इस पूरी मूर्खता की ओर जरा देखाे. पहले तुम प्रसन्न हाेने की सामर्थ्य काे नष्ट करते हाे, तब स्वाभाविक रूप से जब बच्चा उदास और गम्भीर बन जाता है और वह पूछता है. मैं दुःखी क्याें हूं? मैं उदास और अप्रसन्न क्याें हूं? मैं आनंदित क्याें नहीं हाे सकता? स्वाभाविक है तुम उसे नहीं बता सकते कि उसके साथ क्या गलत हुआ है.