जीवन में साधन ही यात्रा करते-करते साध्य बन जाता ह

    22-Aug-2025
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साधन ही यात्रा
 
गलत साधन कभी ठीक साध्य तक ले जाने वाले नहीं हाे सकते, क्याेंकि साधन ही यात्रा करते-करते अंत में साध्य बन जाता है. ताे काेई यह साेचता हाे कि मैं घृणा के साधन का उपयाेग करके प्रेम के साध्य काे पा लूं ताे वह गलती में है. वह घृणा के साधन से चलकर अंतत: और बड़ी घृणा पर ही पहुंचेगा. और वह यह साेचता हाे कि मैं हिंसा के साधन का उपयाेग करके अहिंसा की दुनिया बसा लूंगा ताे वह गलती में है.
 
लेकिन साध्य और साधन के बीच इतना ासला है कि यह भ्रांति अक्सर हाे जाती है. और ऐसा लगता है कि हम किन्हीं भी साधन से किन्हीं भी साध्याें तक पहुंच सकते हैं, यह बिलकुल ही असंभव है. एक विशिष्ट साधन एक विशिष्ट साध्य तक पहुंचा सकता है.वृक्ष और फल उतने विचारणीय नहीं हैं, जितने बीज विचारणीय हैं, क्याेंकि बीज आज हमें चुनना है, और वृक्ष और फल इसी बीज से विकसित हाेंगे.
 
इसलिए साधन का प्रश्न अत्यधिक महत्वपूर्ण है. लेकिन हमेशा मनुष्य जाति के इतिहास में अधिक लाेगाें ने साध्य काे महत्वपूर्ण समझा है- एंड काे महत्वपूर्ण समझा है. और वे मानते हैं कि मनुष्य के जीवन में ऊंचा साध्य हाेना चाहिए, ऊंचा उद्देश्य हाेना चाहिए, अंतिम लक्ष्य श्रेष्ठ हाेना चाहिए और उनकी सबकी दृष्टि यह है कि अगर हमने श्रेष्ठ साध्य चुन लिया ताे िफर सब ठीक हाे जाएगा. यह एम्ेसिस, यह जाेर ही गलत है. साध्य इतना महत्वपूर्ण नहीं है. असल में प्रेम से ही शुरू हाेंगे साधन ताे प्रेम तक पहुंचा देंगे, नहीं ताे नहीं पहुंचा पायेंगे.पहला कदम ही हमारा अंतिम कदम है. क्याेंकि दूसरा कदम पहले ही कदम से निकलेगा, तीसरा कदम दूसरे कदम से निकलेगा, अंतिम कदम हमारा पहले ही कदम की श्रृंखला का हिस्सा हाेगा. ताे मैं साध्य से भी ज्यादा मूल्यवान साधन काे कहता हूं, इसलिए कि साधन जाे हम चुनेंगे वह कल साध्य हाे जाएगा. लेकिन मनुष्य ऐसी भूल करता रहा है और पूरा इतिहास इस भूलाें से भरा हुआ है.
 
कुछ लाेग जाे दुनिया में धर्म चाहते हैं, वे भी धर्म लाने के लिए अधार्मिक साधन का उपयाेग करते हैं. काेई शिक्षक बच्चे काे शिक्षा देना चाहता है, लेकिन दंड का, भय का उपयाेग करता है.
काेई पिता, काेई मां अपने बच्चे काे अच्छा बनाना चाहते हैं, लेकिन अच्छा बनाने के लिए जाे भी वे करते हैं, वह चूंकि बुरा है, इसलिए बच्चे अंतत: बुरे हाे जाते हैं. यह अगर हमें ठीक से ख्याल में आ जाए ताे साध्य के संबंध में इतनी चिंता करनी जरूरी नहीं रह जाती. जरूरी हाे जाता है साधन कि हम साधन चुनते वक्त निर्णय करें.