जब तुम्हे किसी स्त्री मे साैंदर्य दिखाई पड़ता है- या किसी पुरुष में- ताे वस्तुतः तुम्हें क्या दिखाई पड़ा है? जब तुम्हें एक गुलाब के फूल में साैैंदर्य दिखाई पड़ता है, ताे क्या दिखाई पड़ा है. अगर ठीक से समझाेगे, शांत मन बैठ कर, ध्यानपूर्वक, ताे तुम पाओगेः गुलाब में जाे साैंदर्य दिखाई पड़ा है, वह पदार्थ का नहीं है. पदार्थ में परमात्मा की कुछ झलक हुई है.इसलिए ताे गुलाब के फूल काे अगर तुम वैज्ञानिक के पासे ले जाओ, ताे वह विश्लेषण करके बता देगा कि उसमें साैंदर्य जैसी काेई चीज नहीं हैं. हां कुछ रासायनिक द्रव्य हैं, खनिज इत्यादि हैं; पानी है, मिट्टी है. सब निकाल कर अलग-अलग बाेतलाें में रख देगा. लेबल लगा देगा. तुम उससे पूछाेगेः और साैंदर्य किस बाेतल में है? वह कहेगाः साैंदर्य ताे पाया नहीं. ये चीजें मिली; इन्हीं का जाेड़ फूल था.और शायद काेई तर्कगत मार्ग भी नहीं है, उसे गलत सिद्ध करने का. लेकिन तुम भी जानते हाे, मैं भी जानता हूं, वह भी जानता है- कि साैंदर्य था. सपना ही रहा हाे, शायद, मगर था ताे. दिखा ताे था.
उसे एकदम झुठलाया नहीं जा सकता. फिर कहां खाे गया? पदार्थ के विश्लेषण में कहीं खाे गया.ऐसे ही, जैसे एक छाेटा बच्चा नाच रहा है, किलकारी ले रहा है, हंस रहा है. और तुम उसे वैज्ञानिक के पास ले जाओ और वह बच्चे काे काट-पीट कर उसके भीतर खाेज-बीन करे, कि किलकारी कहां है! मुस्कान कहां है? यह जाे आनंदभाव इस बच्चे में था, यह कहां है? हड्डी-मांस-मज्जा मिलेगी. सब मिल जाएगा और, लेकिन किलकारी नहीं मिलेगी. वह मुस्कराहट नहींमिलेगी. वह जाे बच्चे में जीवंतता थी, वह नहीं मिलेगी.यह ऐसे ही है, जैसे तुम एक सुंदर कविता काे गणितज्ञ या तार्किक के पासे ले जाओ. वह, कविता के सारे शब्दाेें का विश्लेषण करके बता दे; उनकी मूल धातुएं खाेज कर बता दे. व्याकरण के सब नियम समझा दे. छंद, गद्य, पद्य का सब, जाे भी शास्त्र है पूरा, तुम्हारे सामने खाेल कर रख दे, लेकिन फिर भी कुछ बात खाे गई. वह जाे कविता का साैंदर्य था- खाे गया.
कविता छंद नहीं है. और कविता मात्राओं का आयाेजन भी नहीं है. सच ताे यह हैः कविता शब्द में ही नहीं है. शब्द में झलकती है, लेकिन शब्द से आती नहीं है.ऐसे ही समझाे कि जैसे लकड़ियाें काे रगड़ने से आग पैदा हाे जाती है. लकड़ियाें के रगड़ने से पैदा हाेती है. लेकिन आग लकड़ी नहीं है. लकड़ी से आती है- लकड़ी नहीं है. और मजा यह है कि अगर आग जलती रहे, ताे लकड़ी काे समाप्त कर देगी; लकड़ी काे खा जाएगी; लकड़ी काे पचा लेगी.लकड़ी के बिना आग नहीं हाे सकती, लेकिन फिर भी आग अलग है. एैसे ही शब्दाेें के बिना काव्य नहीं हाेता, लेकिन काव्य अलग है. काव्य ताे अग्नि जैसा है.अगर व्याकरण, गणित, तर्क के नियम से खाेजाेगे, ताे शब्द पकड़ में आएंगे, काव्य खाे जाएगा. काव्य भाषा का हिस्सा ही नहीं हैं. ऐसे ही साैंदर्य पदार्थ का हिस्सा नहीं है; ऐसे ही साैंदर्य देह का हिस्सा नहीं है. ताे जब तुमने किसी स्त्री में साैंदर्य देखा, अगर तुम्हारी आंखें उज्ज्वल हाें, अगर तुम्हारे भीतर समझ का दीया जलता हाे, ताे तुम पाओगेः यह परमात्मा की छबि झलकी. स्त्री के माध्यम से परमात्मा के प्रेम में पड़ाेगे.