बाल कैदियाें का जीवन सफल बनाने सहायता आवश्यक

बाल न्यायालय की नई बिल्डिंग के उद्घाटन कार्यक्रम में न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कहा

    05-Aug-2025
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 पुणे, 4 अगस्त (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)



बाल न्याय मंडल में आने वाले बच्चों को उनके बचपन में सही मार्गदर्शन और सहायता नहीं मिल पाने के कारण वे अनजाने में अपराध की ओर मुड़ जाते हैं. ऐसे बच्चों की समस्याएं समझकर, उनमें मौजूद ऊर्जा को सही दिशा देकर उन्हें जीवन में सफल बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए्‌‍. यह महत्वपूर्ण संदेश बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे ने पुणे के येरवड़ा में बाल न्यायालय की नई इमारत के उद्घाटन समारोह में दिया. इस अवसर पर प्रमुख जिला एवं सत्र न्यायाधीश महेंद्र के. महाजन अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे. साथ ही महिला एवं बाल विकास आयुक्त नयना गुंडे, बाल न्याय मंडल के प्रधान न्याय दंडाधिकारी जी. एन. बागडोरिया, अतिरिक्त न्याय दंडाधिकारी एल. के. सपकाल, महाराष्ट्र व गोवा बार काउंसिल के उपाध्यक्ष एड. राजेंद्र उमाप, सदस्य एड. हर्षद निंबाळकर, ए. यू. पठाण और पुणे बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हेमंत झंजाड़ भी उपस्थित थे.

न्यायमूर्ति मोहिते डेरे ने कहा कि पुणे बाल न्याय मंडल में लंबित मामलों की संख्या अधिक है, इसलिए एक अतिरिक्त मंडल की स्थापना की गई है. इस नई इमारत में बाल न्याय मंडल के लिए आवश्यक सभी सुविधाएं प्रदान की गई ह्‌ैं‍. उन्होंने डोंगरी स्थित बाल निरीक्षण गृह का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां व्यसनमुक्ति केंद्र, रंग-बिरंगी दीवारें, समस्याओं की पहचान की व्यवस्था और प्रेरणादायक फिल्में दिखाने जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं, जिससे बच्चों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है. इसी तरह राज्य के अन्य निरीक्षण गृहों में भी सुधार के प्रयास किए जाएंगे.

न्यायाधीश महाजन ने जानकारी दी कि मुंबई, ठाणे और पुणे में बाल न्याय से जुड़े सबसे अधिक मामले लंबित ह्‌ैं‍. पुणे में करीब 5000 प्रकरण विचाराधीन हैं, जिनकी संख्या हर साल नए मामलों के आने के कारण स्थिर बनी रहती है. नए मंडल की स्थापना से 40 बाल बंदियों को नयी सुविधा युक्त इमारत में स्थान मिलेगा. आयुक्त नयना गुंडे ने कहा कि महिला व बाल विकास विभाग द्वारा मामलों को शीघ्र निपटाने के लिए राज्य के छह जिलों में बाल न्याय मंडलों पर सदस्यों की नियुक्ति की गई है और शेष जिलों में भी जल्द की जाएगी. वर्ष 2023-25 के दौरान 10,000 बच्चों को अनाथ प्रमाणपत्र प्रदान किए गए हैं और 740 बच्चों को अनाथ आरक्षण के अंतर्गत शासकीय नौकरियों में स्थान मिला है.