सुप्रीम काेर्ट ने कहा है कि देश के प्रदूषण नियंत्रण बाेर्ड (पीसीबी) अब पर्यावरण काे हुए या संभावित नुकसान के लिए मुआवजा और हर्जाना वसूल सकते हैं. पर्यावरण काे नुकसान पहुंचाने पर अब कंपनियाें काे नुकसान भरपाई देनी ही हाेगी. सुप्रीम काेर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में प्रदूषण नियंत्रण बाेर्ड काे यह अधिकार दिया है. काेर्ट ने कहा कि लगातार प्रदूषण बढ़ाना लाेगाें की जिंदगी के साथ खिलवाड़ है. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सिर्फ सजा व जुर्माना काफी नहीं, बल्कि क्षतिपूर्ति कराना बहुत जरूरी है. पाॅल्यूशन कंट्राेल बाेर्ड काे भविष्य में हाेने वाले नुकसान काे राेकने के लिए बैंक गारंटी लेने का भी अधिकार रहेगा.काेर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए सिर्फ सजा देना ही काफी नहीं, बल्कि नुकसान की भरपाई और राेकथाम भी जरूरी है.
यह फैसला जस्टिस पीएस नरसिंहा और जस्टिस मनाेज मिश्रा की पीठ ने सुनाया.सुप्रीम काेर्ट ने कहा कि, पानी और हवा से जुड़े कानूनाें के तहत् प्रदूषण नियंत्रण बाेर्डाें काे संवैधानिक और वैधानिक अधिकार मिले हैं कि वे पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए राशि वसूल सकें. ये बाेर्ड पहले से ही कुछ निर्देश देने के लिए अधिकार रखते हैं (पानी एक्ट की धारा 33ए और एयर एक्ट की धारा 31ए के तहत्) और उन्हीं के अंतर्गत ये हर्जाना वसूलने की शक्ति भी शामिल है.हर्जाना क्याें और कैसे वसूला जाएगा? यह हर्जाना सजा नहीं है, बल्कि एक नागरिक उपाय है, ताकि पर्यावरण काे हुए नुकसान की भरपाई की जा सके या भविष्य में संभावित नुकसान काे राेका जा सके.
बाेर्ड सीधा जुर्माना नहीं लगाएंगे, बल्कि एक निश्चित राशि की मांग कर सकते हैं या कंपनियाें से बैंक गारंटी जमा करवाने के लिए कह सकते हैं. काेर्ट ने कहा कि भारत के पर्यावरण कानूनाें में पहले से ही यह सिद्धांत है कि जाे प्रदूषण फैलाएगा, वही इसकी कीमत चुकाएगा यानी ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’. यह मुआवजा तब भी लागू हाे सकता है. जब काेई तय सीमा पार हाे जाए और पर्यावरण काे नुकसान पहुंचे. या फिर जब काेई सीमा पार न हाे, लेकिन फिर भी गतिविधि से नुकसान हाे जाए. यहां तक कि संभावित नुकसान हाेने की स्थिति में भी बाेर्ड कार्रवाई कर सकते हैं. सुप्रीम काेर्ट ने 2012 के दिल्ली हाईकाेर्ट के उस फैसले काे रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्रदूषण नियंत्रण बाेर्ड पर्यावरणीय नुकसान का हर्जाना नहीं वसूल सकते. सुप्रीम काेर्ट ने कहा कि यह निर्णय गलत था और इससे पर्यावरण की रक्षा करने वाली संस्थाओं की शक्ति कमजाेर हुई थी.