एक तरफ जहां अच्छे दांत हमारे व्यक्तित्व काे निखारते हैं, वहीं मैले कुचैले दांत हमारे संपूर्ण व्यक्तित्व काे खराब कर देते हैं, इसलिए दांताें के प्रति लापरवाही कतई न बरतें.सीनियर डेंटिस्ट डाॅ. स्वप्निल सिन्हा के मुताबिक लाेगाें में एक आम साेच और अवधारणा यह है कि बच्चाें में दांताें की समस्या कम हाेती है. लेकिन सच ताे यह है कि दांताें की बीमारी किसी भी उम्र में हाे सकती है. चाहे वह बचपन ही क्याें न हाे.दांताें की समस्या का मुख्य कारण दांताें का प्लाक अर्थात मैल हाेती है. दरअसल प्लाक दांताें के ऊपर एक अदर्शनीय परत हाेती है, जिसके अंदर हानिकारक बैक्टीरिया छिपे हाेते हैं. यह परत मसूढ़ाें की सतह पर जमी हाेती हैं बच्चाें के दांत सड़ने की संभावना अधिक हाेती है, क्याेंकि बच्चाें के दांताें का एनामल अर्थात दांताें की ऊपरी परत बहुत पतली हाेती है और वे दांताें की साफ-साई के प्रति बेहद लापरवाह भी हाेते हैं. बच्चाें में दूध के दांत 8 से 10 साल तक रहते हैं और पहले स्थायी दांत 6 साल की उम्र में आ जाते हैं . इसलिए यह बेहद जरुरी है कि बच्चाें में बचपन से ही अच्छी और सही ऑरल आदताें का विकास किया जाए.