गुजारा भत्ता कानूनी अधिकार, जो कमजोर पक्ष को कठिनाई से बचाता है

असमर्थ पत्नी, बच्चों या माता-पिता को न्याय दिलाने पारिवारिक कानून को लेकर एड. बी. एस. धापटे की महत्वपूर्ण राय

    14-Sep-2025
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गुजारा भत्ता (Maintenance) परिवारिक कानून में एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जो आर्थिक रूप से असमर्थ पत्नी, बच्चों या माता-पिता को न्यायालय द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता से जुड़ा है. इसका मुख्य उद्देश्य कमजोर पक्ष को भुखमरी और कठिनाई से बचाना और उसे सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देना है. भारतीय कानून ने इसे न केवल नैतिक जिम्मेदारी बल्कि कानूनी हक भी माना है. इस लेख में पोटगी के कानूनी प्रावधान, आवेदन प्रक्रिया, न्यायालय के विचारणीय तत्व, पोटगी न मिलने की परिस्थितियां और महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णयों पर विस्तार से चर्चा की गई है.
 
एड. भालचंद्र धापटे मोबाइल-9850166213
 
प्रश्न: मेंटेनेंस क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
उत्तर: - मेंटेनेंस परिवारिक कानून का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसका अर्थ है आर्थिक रूप से असमर्थ पत्नी, बच्चों या माता- पिता को न्यायालय द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता. विवाह के बाद पत्नी को उसका सम्मानजनक जीवनयापन देने की जिम्मेदारी पति की कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार हर व्यक्ति को मानव सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. इस अधिकार को वास्तविक रूप देने के लिए पोटगी की व्यवस्था की गई है. मेंटेनेंस केवल दया की क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक अधिकार है, जिसे न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है. इसका उद्देश्य कमजोर पक्ष को भुखमरी से बचाना और उसे सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देना है.

 प्रश्न-मेंटेनेंस से संबंधित कौन-कौन सी कानूनी प्रावधान लागू होते हैं?
 उत्तर:-  भारतीय कानून में मेंटेनेंस से संबंधित कई प्रावधान हैं. भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के धारा 125 के अनुसार पत्नी, नाबालिग बच्चे, दिव्यांग बच्चे और जरूरतमंद माता-पिता को मेंटेनेंस पाने का स्पष्ट अधिकार है. यह धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्मों के नागरिकों पर लागू होता है. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के धारा 24 में अंतरिम पोटगी और धारा 25 में स्थायी मैंटेनेंस का प्रावधान है. इसमें पति या पत्नी दोनों में से जो आर्थिक रूप से कमजोर हो, न्यायालय मैंटेनेंस दे सकता है. हिंदू दत्तक व वारसा अधिनियम, 1956 की धारा 20 के अनुसार पिता की जिम्मेदारी बच्चों के पालन-पोषण की तय की गई है. विवाह से जन्मे या दत्तक लिए गए बच्चे मैंटेनेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं. पारिवारिक हिंसा निवारण अधिनियम, 2005 के अंतर्गत पीड़ित महिला को निवास, आर्थिक सहायता और मैंटेनेंस का अधिकार है. इसके अलावा विभिन्न धर्मों के नागरिकों के लिए अलग-अलग कानून हैं. इसलिए मैंटेनेंस एक बहुआयामी और व्यापक अधिकार माना जाता है.

प्रश्न- मेंटेनेंस के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया क्या है?
उत्तर:- मेंटेनेंस के लिए संबंधित व्यक्ति को फैमिली कोर्ट या मजिस्ट्रेट कोर्ट में आवेदन करना होता है. आवेदन में अर्जदार की आर्थिक असमर्थता, दैनिक खर्चों की कठिनाई, बच्चों के पालन-पोषण और शिक्षा का विवरण, साथ ही उत्तरदाता की आय और संपत्ति की जानकारी दी जाती है. न्यायालय आवेदन की जांच करता है और उत्तरदाता को नोटिस भेजकर उनका पक्ष सुनता है. इसके बाद स्थिति का संपूर्ण मूल्यांकन कर मासिक मेंटेनेंस की राशि तय की जाती है. कई बार न्यायालय अर्जदार की तात्कालिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अंतरिम मेंटेनेंस भी मंजूर करता है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, यह प्रक्रिया संक्षिप्त रखी जाती है ताकि कमजोर पक्ष को शीघ्र न्याय मिल सके.

प्रश्न-मेंटेनेंस तय करते समय न्यायालय किन तत्वों पर विचार करता है?
उत्तर:- मेंटेनेंस की राशि तय करते समय न्यायालय कई तत्वों पर विचार करता है: आवेदक का जीवनस्तर और आवश्यक खर्च उत्तरदाता की आय, व्यवसाय, नौकरी का वेतन, संपत्ति से लाभ विवाह की अवधि और बच्चों की संख्या बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य का खर्च आवेदक की बीमारी या अपंगता न्यायालय ने बार-बार स्पष्ट किया है कि मैंटेनेंस का उद्देश्य पत्नी को ऐशो-आराम देना नहीं है, बल्कि उसे पति के जीवनस्तर के अनुसार सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर देना है. इसलिए न्यायालय बैलेंस्ड निर्णय करता है न तो पति पर अधिक भार डालता है, न पत्नी को उपेक्षित छोड़ता है.

प्रश्न-किन परिस्थितियों में मेंटेनेंस अस्वीकार की जा सकती है?
उत्तर:- हालांकि मेंटेनेंस एक अधिकार है, पर कुछ परिस्थितियों में न्यायालय इसे अस्वीकार कर सकता है: पत्नी ने बिना वैध कारण पति को छोड़ दिया और वापस लौटने से इंकार किया पत्नी व्याभिचार में संलिप्त हो आवेदक खुद सक्षम हो और अपनी आय से जीवनयापन कर सके बच्चे प्रौढ़ हो चुके हों और स्वयं आय अर्जित कर सकें. इन मामलों में भी न्यायालय का दृष्टिकोण मानवीय होता है और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लिया जाता है.

प्रश्न-मेंटेनेंस से संबंधित महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय कौन-कौन से हैं?
उत्तर: -
  मेंटेनेंस के मामले में सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों ने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं: भवन मोहम्मद बनाम अफरोज बेगम (SC, 1966): न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मैंटेनेंस का उद्देश्य भुखमरी को रोकना है. चंद्रप्रकाश शर्मा बनाम सीमा शर्मा (SC, 1998): पत्नी को मेंटेनेंस देना केवल नैतिक नहीं, बल्कि कानूनी जिम्मेदारी है. राजेश बनाम नेहा (SC, 2021): सर्वो च्च न्यायालय ने आदेश दिया कि मेंटेनेंस मामलों में विलंब न करते हुए तुरंत आदेश दिए जाएं, ताकि महिलाओं और बच्चों को त्वरित सहायता मिल सके.