गुलामी से आत्म-गौरव की ओर...

    21-Sep-2025
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अमाप इच्छा से यदि तुम्हें बचना है तो मन की उदारता के साथ कुदरत की सहाय से - किसी के सहयोग से जो भी कुछ तुम्हें मिला है, जो भी कुछ तूने पाया है वो सब कुछ कुदरती तरीके से, मन की बड़ी उदारता के साथ, विचारों की परिपक्वता के साथ मृत्यु से पहले अपने हाथों से - सच्चे हृदय से संसार को, लोगों को, औरों को, सभी को, अन्यों को वापस लौटाता चल, सब को देता चल - सब को बांटता चल. यह करने से मन तृप्त होता जायेगा और जिन्दगी में सही राह पाने का एहसास होगा. तृप्त मन के साथ जीवन जीने से इन्सान को प्रसन्नता प्राप्त होती है, चेहरे पर हंसी और हर पल खुशी को महसूस कर पाता है. मन पर किसी भी तरह का भार नहीं रहने से शरीर पूर्ण स्वस्थ रहता है, काया निरोगी रहती है, किसी भी बड़ी बीमारी से बच जाते हैं, सदैव हमारे शरीर के आसपास में झेीळींर्ळींश र्अीीर बनी रहती है. यह पूर्ण स्वस्थता की पहचान है. तृप्त मन होने से हमारे विचारों में, वाणी में, व्यवहार में, आपस में, आत्म-तत्व में निर्मलता स्थापित होने पर स्वभाव में निरपेक्षितता का प्रारंभ होने से हम अमाप इच्छाओं से मुक्ति पा सकते है क्योंकि सभी इच्छाओं का मूल तो है, किसी से कोई न कोई अपेक्षा... जो कभी पूर्ण नहीं होती. सरलता के साथ जीवन जीएंगे तो ना कभी किसी से कोई संघर्ष पैदा होगा, ना कभी किसी से कोई बंधन होगा, ना कभी किसी से कोई मन - दुःख होगा, ना कभी किसी से कोई अपेक्षा रहेगी, ना कभी किसी से कोई विचित्र व्यवहार होगा और ना ही नया कोई कर्म बंधन होगा. इसी के कारण आत्मा अध्यात्म मार्ग की तरफ अग्रसर होगी, भीतरी दुनिया में प्रवेश करेगी, अंतर शुद्धिकरण का प्रारंभ होगा.
-   पू. जे. पी. गुरुदेव सुजय गार्डन जैन संघ, मुकुंदनगर, पुणे