जगत का पालन-पोषण करनेवाली होती है ‌‘मातृदेवता'

सारसबाग के श्री महालक्ष्मी मंदिर द्वारा आयोजित लेखिका एवं कवयित्री के सम्मान समारोह में डॉ. गो. बं. देगलुरकर ने कहा

    25-Sep-2025
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सारसबाग, 24 सितंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)

हम चाहे किसी भी पेशे में हों, हम वेिशजननी का अध्ययन कर सकते हैं. संसार में जननी का आदर आदिकाल से ही किया जाता रहा है. हमारे जीवन में पहली बार जो जो देवी-देवताएं आई ये उनमें मातृदेवता प्रथम हैं. मातृदेवता का महत्व प्राचीन काल से है और उसे पूजा जाता रहा है. प्रतिमाशास्त्र के विद्वान डॉ. गो. बं. देगलुरकर ने कहा कि जगत का पालन-पोषण करनेवाली मातृदेवता हैं. वे सारसबाग के सामने स्थित श्री महालक्ष्मी मंदिर द्वारा आयोजित सार्वजनिक नवरात्रि महोत्सव में बोल रहे थे. मंगलवार (23 सितंबर) को मंदिर में ‌‘जागर वेिशजननी चा' पुस्तक का विमोचन और लेखिका एवं कवयित्री सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखिका डॉ. मंजिरी भालेराव, पुस्तक लेखिका डॉ. कल्याणी हर्डिकर, मंदिर की मुख्य ट्रस्टी अमिता अग्रवाल, ट्रस्टी डॉ. तृप्ति अग्रवाल, प्रवीण चोरबेले, हेमन्त अर्नलकर समेत गणमान्य मौजूद रहे. कार्यक्रम में डॉ. मंजिरी भालेराव, डॉ. लता अकलुजकर, डॉ. ज्योति गोगटे, एड. वैशाली भागवत, एड. विभावरी बिड़वे, किरण भट, डॉ. श्रद्धा साही, कल्याणी सरदेसाई, दीपाली दातार समेत 9 लेखिकाओं और कवियों को अमिता अग्रवाल और डॉ. तृप्ति अग्रवाल ने सम्मानित किया. डॉ. मंजिरी भालेराव ने कहा, पुस्तक में यह बताने का प्रयास किया गया है कि नारी शक्ति की पूजा कहां-कहां होती थी. विद्वानों का कहना है कि भारत में नारी शक्ति की पूजा वैदिक काल से पूर्व पाषाण युग में ही शुरू हो गई होगी. डॉ. कल्याणी हार्डिकर ने कहा कि आज आधुनिक युग में हम नारी शक्ति के जागरण के साक्षी बन रहे हैं और इसके लिए परिवार व्यवस्था ही जिरमेदार है. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को कम करने के लिए मातृशक्ति का जागरण आवश्यक है. कार्यक्रम का परिचय वेिशकर्मा प्रकाशन के सीईओ विशाल सोनी ने दिया. संचालन श्रावणी पोंक्षे ने किया. वहीं धन्यवाद ज्ञापन संपादक संदीप तापकीर ने किया.