हर मार्ग श्रेष्ठ; उनमें समन्वय नहीं हाे सकता

    03-Sep-2025
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Osho
 
प्रश्न:आप कहते हैं कि मनुष्य अपने लिए पूरी तरह जिम्मेदार है, और यह कि वह अपने स्वर्ग-नर्क अपने साथ लिये चलता है. और आप यह भी कहते हैं कि समस्त सब कुछ करता है, अंश क्या कर सकता है? इन दाे वक्तव्याें के बीच समन्वय कैसे हाे? समन्वय करना ही क्याें चाहते हैं? समन्वय हाे भी जाए ताे क्या हाेगा? बुद्धि की थाेड़ी-सी खुजलाहट मिटेगी. काेई समन्वय से जीवन में क्रांति नहीं हाेगी.समन्वय की आकांक्षा ही व्यर्थ है.साधना कैसे हाे, यह पूछाे. समन्वय कैसे हाे, इससे क्या हाेगा? दार्शनिक बनना है? बड़े विचारक बनना है? बड़े सिद्धांतवादी बनना है? हमारी जिज्ञासाएं भी माैलिक रूप से गलत हाेती हैं, इसलिए ताे हम भटकते रहते हैं.समन्वय से क्या प्रयाेजन है? क्या कराेगे समन्वय करके? आम और नीम में कैसे समन्वय हाे? आम भी खराब हाे जाएगा, नीम भी खराब हाे जाएगी दाेनाें गुण खाे देंगे.
 
ये-दाेनाें बातें अपने-अपने स्थान पर सही हैं. समन्वय में दाेनाें गलत हाे जाएंगी. पहली बात ज्ञान-मार्ग की घाेषणा है- कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन, अपनी नियति के लिए परिपूर्ण रूप से जिम्मेदार है. क्याेंकि ज्ञान का मार्ग संकल्प पर आधारित है. तुम्हारे संकल्प की प्रगाढ़ता चाहिए. समर्पण की काेई जरूरत नहीं है ज्ञान के मार्ग पर. श्रम चाहिए समर्पण नहीं. जहां श्रम की जरूरत है वहां अगर यह कहा जाए कि सब बाताें के लिए परमात्मा जिम्मेदार है, ताे श्रम असंभव हाे जाएगा. ताे यह वक्तव्य ताे र्सिफ एक निमित्त है, एक उपाय है- तुम्हें संकल्प में नियाेजित करने का. जिसे यह जच जाए, उसे दूसरे की चिंता नहीं करनी चाहिए. समन्वय की चिता ताे करनी ही नहीं चाहिए.तुम्हें यह बात समझ में आ जाए कि मैं ही जिम्मेदार हूं- अपने सुख, अपने दुख; अपनी शांति, अपनी अशांति, अपने संसार, अपने निर्वाण के लिए- ताे इस जिम्मेदारी के बाेध के साथ ही तुम्हारे जीवन में रूपांतरण शुरू हाेगा.
 
अगर नर्क के लिए तुम्हीं जिम्मेदार हाे ताे िफर नर्क बनाना क्याें? िफर हटाओ. जिन- जिन बाताें से नर्क निर्मित हाेता है, उन्हें गलाओ, जलाओ. और जब स्वर्ग भी तुम्हारे हाथ में है, ताे िफर क्याें न बना लाे पूरा स्वर्ग, िफर क्याें न बनाओ एक बगिया जिसमें ूल खिलें स्वर्ग के! िफर सींचाे उन पाैधाें काे!...ताे सारी ऊर्जा स्वर्ग के निर्माण में लग जाए.संकल्प के मार्ग पर तुम ही निर्णायक हाे, तुम ही नियति हाे अपनी. यह बात जितनी प्रगाढ़ता से बैठ जाए उतना ही उचित है.लेकिन, अगर तुमने समन्वय कर लिया ताे तुम दुविधा में पड़ जाओगे. समन्वय का मतलब हाेगाः परमात्मा जिम्मेदार है, मैं भी जिम्मेदार हूं. तब प्रश्न उठेंगेः काैन जिम्मेदार है? इस दुविधा में तुम खड़े ही रह जाओगे, चल न पाओगे. जिसे चलना है वह समन्वय में नहीं पड़ता. समन्वय चलनेवालाें की बात ही नहीं है. यह ताे खाली, ‘बैठे ठाले’ लागाें की बात है.जिन्हें कुछ करना नहीं है, उन्हें समन्वय के आधार पर न करने के लिए सुविधा मिल जाएगी.