हम प्रकृति के अनुकूल हैं या प्रतिकूल?

    08-Sep-2025
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Osho 
 
प्रश्नः हम प्रकृति के अनुकूल हैं या प्रतिकूल, यह कैसे जानें? जब आप बीमार हाेते हैं ताे पीड़ा में हाेते हैं, जब आप स्वस्थ हाेते हैं ताे प्रुल्लित हाेते हैं. ठीक आत्मिक तल पर भी बीमारी और स्वास्थ्य घटित हाेते हैं. जब आप भीतर अशांत, उद्विग्न, परेशान, क्षुब्ध हाेते हैं, संतप्त हाेते हैं, तब जानना कि प्रकृति के प्रतिकूल हैं. और जब आप भीतर आनंद में खिले हाेते हैं, और आनंद की धुन आपके भीतर बजती हाेती है, और राेआं-राेआं उसमें कंपित हाेता है, और यह सारा जगत आपकाे स्वर्ग मालूम पड़ने लगता है, तब आप समझना कि आप प्रकृति के अनुकूल हैं. किसी दूसरे से पूछने जाने की जरूरत नहीं है. जब भी दुख है, तब वह प्रतिकूल हाेने से ही घटित हाेता है. और जब भी आनंद घटित हाेता है, वह अनुकूल हाेने से घटित हाेता है. आनंद कसाैटी है.लेकिन हम सब इतने दुख में जीते हैं कि हम दुख काे ही जीवन मान लेते हैं; इसलिए हमें पता ही नहीं चलता कि आनंद भी है.
 
मेरे पास लाेग आते हैं. उन्हें खुद काेई आनंद का अनुभव नहीं हुआ है, वे दूसरे के आनंद पर भी विश्वास नहीं कर सकते.एक बहन ने परसाें मुझे आकर कहा कि यह भराेसे याेग्य नहीं है कि कीर्तन में दाे मिनट में लाेग इतने आनंदित हाेकर नाचने लगते हैं;यह भराेसा नहीं हाेता. स्वभावतः, जाे कभी भी नाचा न हाे आनंद में, उसे भराेसा कैसे हाेगा? जाे नाच ही न सकता हाे, जिसके भीतर आनंद की काेई पुलक ही पैदा न हाेती हाे, उसे भराेसा कैसे हाेगा? निश्चित ही, उसकाे लगेगा कि यह काेई तैयार किया हुआ खेल, काेई नाटक है. ये लाेग शायद आयाेजित हैं, जाे बस नाचना शुरू कर देते हैं. ऐसा कहीं हाे सकता है! जाे आदमी चालीस-पचास साल में कभी आनंदित न हुआ हाे, वह कैसे मान ले कि दाे मिनट में काेई आनंद से भर सकता है?
 
आनंद का मिनट और वर्षाें से काेई संबंध है? अगर दाे मिनट में नहीं भर सकते, दाे वर्ष में कैसे भर जाइएगा? और अगर दाे वर्ष में भर सकते हैं ताे दाे मिनट में बाधा क्या है? समय का क्या संबंध है आनंद से? काेई भी संबंध नहीं है. लेकिन अनुभव ही न हाे....ताे मैंने उस बहन काे पूछा कि तूने कभी आकर कीर्तन करके, नाच कर देखा? उसने कहा कि नहीं. मैंने उससे कहा कि नाच कर देख, आकर देख, शायद तुझे भी हाे जाए ताे तुझे पता चले.हम आनंद से भी भयभीत हैं. क्याेंकि हमारे चाराें तरफ दुखी लाेगाें का समाज है; उसमें आनंदित हाेना मैल-एडजस्ट कर देता है, उसमें दुखी हाेना ही ठीक है. हमारे चाराें तरफ जाे भीड़ है, वह दुखी लाेगाें की है. उसमें आप भी दुखी हैं ताे बिलकुल ठीक हैं. अगर आप आनंदित हैं ताे लाेगाें काे शक हाेने लगेगा कि कुछ दिमाग ताे खराब नहीं है. इस भांति हंस रहे हैं, यह भी काेई...! इस भांति प्रसन्न हाे रहे हैं!
 
बीमाराें की जहां भीड़ हाे, दुखी लाेगाें का जहां समूह हाे, वहां आपका भी दुख में हाेना उनके साथ एक संगति बनाए रखता है. इसलिए बच्चाें काे हम बड़े जल्दी गंभीर करने की काेशिश में लग जाते हैं. बच्चे आनंदित हैं, नाच रहे हैं, कूद रहे हैं, खेल रहे हैं. हमें बडी बेचैनी हाेती है उनके नाच से, कूद से. आप अखबार पढ़ रहे हैं. आप अपने बच्चे काे कहते हैं, बंद कर यह शाेरगुल, नाचना-कूदना; मैं अखबार पढ़ रहा हूं! जैसे अखबार पढ़ना काेई ऐसा मामला है जाे नाचने-कूदने से ज्यादा कीमती हाे. बच्चे कमजाेर हैं, इसलिए आपसे नहीं कह सकते कि बंद कराे यह अखबार पढ़ना और नाचाेकूदाे! और जब तक वे ताकतवर हाेंगे, तब तक आप उनकाे बिगाड़ चुके हाेंगे.वे भी अखबार पढ़ रहे हाेंगे और अपने बच्चाें काे डांट रहे हाेंगे. सभी मनुष्य प्रकृति के अनुकूल पैदा हाेते हैं, और अधिकतर मनुष्य प्रकृति के प्रतिकूल मरते हैं. हम सभी जन्म से प्रकृति के अनुकूल पैदा हाेते हैं; लेकिन समाज, चाराें तरफ का ढांचा हमें मराेड़ कर गंभीर बना देता है.