बाबरी केस : आडवाणी-मुरली समेत 32 आराेपी बरी

    01-Oct-2020
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काेर्ट ने कहा- CBI सबूत नहीं ला सकी, ढांचा अज्ञात लाेगाें ने गिराया
 
सीबीआई की विशेष अदालत ने छह दिसंबर 1992 काे अयाेध्या में ढांचा विध्वंस किए जाने के मामले में बुधवार काे फैसला सुनाते हुए सभी आराेपियाें काे बरी कर दिया.
 
विशेष अदालत के न्यायाधीश एस.के. यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ढांचा विध्वंस की घटना पूर्वनियाेजित नहीं थी. यह एक आकस्मिक घटना थी. उन्हाेंने कहा कि आराेपियाें के खिलाफ काेई पुख्ता सुबूत नहीं मिले, बल्कि आराेपियाें ने उन्मादी भीड़ काे राेकने की काेशिश की थी. विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश एस के यादव ने 16 सितंबर काे इस मामले के सभी 32 आराेपियाें काे फैसले के दिन अदालत में माैजूद रहने काे कहा था. हालांकि वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनाेहर जाेशी और उमा भारती, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, राम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गाेपाल दास और सतीश प्रधान हाजिर नहीं हाे सके.
 
कल्याण सिंह ढांचा विध्वंस के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय भी इस मामले के आराेपियाें में शामिल थे. मामले के कुल 49 अभियुक्त थे, जिनमें से 17 की मृत्यु हाे चुकी है. फैसला सुनाए जाने से ऐन पहले सभी अभियुक्ताें के वकीलाें ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 437-ए के तहत जमानत के कागजात पेश किए. यह एक प्रक्रियात्मक कार्रवाई थी और इसका दाेषसिद्धि या दाेषमुक्त हाेने से काेई लेना-देना नहीं है.
 
अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में पेश किए गए फाेटाे, वीडियाे, फाेटाेकाॅपी में जिस तरह से सबूत दिए गए हैं, उनसे कुछ साबित नहीं हाे रहा है. अदालत ने सुनवाई के दाैरान कहा कि ढांचा विध्वंस पुर्वनियाेजित नहीं था. इसने कहा कि यह घटना अचानक हुई और इस मामले में प्रबल साक्ष्य नहीं है. अदालत ने यह माना है कि सीबीआई द्वारा लगाए गए आराेपाें के खिलाफ ठाेस सबूत नहीं है. कुछ अराजक तत्वाें ने इस कार्य काे अंजाम दिया था.
 
गाैरतलब है कि, उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई अदालत काे ढांचा विध्वंस का निपटारा 31 अगस्त तक करने के निर्देश दिए थे लेकिन गत 22 अगस्त काे यह अवधि एक महीने के लिए और बढ़ा कर 30 सितंबर कर दी गई थी.