‘फीजियाेथेरेपी कमजाेर पेशेंट काे सक्षम बनाती है’

    06-Dec-2020
Total Views |

special_1  H x
 
युवा फीजियाेथेरेपिस्ट डाॅ. अर्चना शिवले-पाटिल ने दै.‘आज का आनंद’ कार्यालय में बातचीत के दाैरान कहा
 
‘खुद काे असहाय महसूस करने वाले ... थके हुए...कमजाेर समझने वाले पेशेंट काे स्वतंत्र...स्वावलंबी .. अपने दम पर चलने फिरने में सक्षम बनाने की थेरेपी का ही नाम फीजियाेथेरेपी है : फीजियाेथेरेपी की यह सीधी-सरल व अनुभवी व्याख्या करने वाली युवा फीजियाेथेरेपिस्ट डाॅ. अर्चना शिवले पाटिल गत दिवस दै.‘आज का आनंद’ कार्यालय में पधारी थीं, जहां उन्हाेंने अपने जीवन, कैरियर और संवेदनशील व्यवसाय के साथ सामाजिक प्रतिबद्धता के बारे में मुख्य संपादक श्याम अग्रवाल से फीजियाेथेरेपी के क्षेत्र से जुड़े विभिन्न मुद्दाें पर बातचीत की. उन्हाेंने बताया कि किसान-पिता के खेताें में किए कठाेर परिश्रम से उनकी शारीरिक वेदना काे देखकर महसूस करने से मुझे उनकी और मेहनतकश लाेगाें की पीड़ा दूर करने की प्रेरणा मिली. यही कारण है कि मैंने फीजियाेथेरेपी में कैरियर बनाने का निश्चय किया. प्रस्तुत हैं, उनसे हुई बातचीत के उपयाेगी अंश:  
 
यह पूछने पर कि अपने जीवन के प्रारंभिक दाैर और अपनी प्रेरणा यानी पिता के बारे में बताएं?
डाॅ. अर्चना शिवले पाटिल ने बताया कि ‘मैं एक सामान्य किसान परिवार की बेटी हूंॅ. मेरे पिता प्रतावराव साधारण किसान हैं, वे सुबह से शाम तक खेताें में कठाेर परिश्रम करके... पसीना बहाकर जब घर लाैटते ताे अत्यंत थके हुए हाेते थे. मेरी मां उनके पैराें मे तेल लगातीं और दबातीं हुई उनकी थकान कम करतीं थीं. मैं राेज यह दृश्य देखती थी. एक किसान सामान्य वर्ग के व्यक्ति काे अपने घर-परिवार काे चलाने कितनी मेहनत करनी पड़ती है. राेज लगातार मेहनत से उनके पैराें, कमर व पीठ में कितनी वेदना हाेती है. वे उसे सहते हुए अपने बच्चाें के लिए लगातार परिश्रम करते रहते हैं! यह वेदनादायक समस्या मुझे दु:खी भी करती थी और अपने पिता सहित ऐसे असंख्य लाेगाें के लिए कुछ अच्छा करने की प्रेरणा भी देती थी. वृद्ध लाेगाें की ताे यह स्थायी समस्या बन गई थी. लेकिन क्या करूं? यह प्रश्न मुझसे ही जवाब मांग रहा था. ऐसे में मैंने जब कक्षा 11वीं में प्रवेश किया और साइंस स्ट्रीम का चयन किया, तब उत्तर भी मिल गया. मैंने मानव शरीर रचना की स्टडी की, इसी दाैरान फीजियाेथेरेपी के बारे में भी जानकारी मिली और मैंने इसी क्षेत्र में कैरियर बनाने और मानव सेवा करने का संकल्प कर लिया.’
 
आपके घर का माहाैल कैसा था? परिवार का कितना सपाेर्ट आपकाे मिला?
इस सवाल के जवाब में डाॅ. अर्चना ने बताया कि ‘फिजियाेथेरेपी मेरे लिए कैरियर से बढ़कर मानव सेवा का व्रत है. मेरे पिता प्रतापराव शिवले काे जब मेरे निर्णय का पता चला ताे वे खुश हुए. अपने परिवार में अंग्रेजी मीडियम में शिक्षा प्राप्त करने वाली मैं पहली सदस्या हूँ, लेकिन मेरे माता-पिता ने हम बच्चाें काे दया, उदारता और सेवा के संस्कार दिए. हमारे घर का वातावरण मेरे लिए हमेशा सकारात्मक रहा. पिता के अलावा मां सुमन, भाई सुहास और बहन कीर्ति के अलावा हमारी ट्यूशन टीचर वंदना राेकड़े भी मुझे लगातार प्राेत्साहन देती थीं. इन सबने मिलकर मेरे सपनाें काे साकार करने में मुझे पूरा सहयाेग दिया.’ डाॅ. अर्चना ने अपनी इसी बात काे आगे बढ़ाते हुए कहा- ‘मेरे पिता की इच्छा थी कि मैं हायर एज्युकेशन  लूं. उन्हाेंने स्वयं आग्रह करके ‘पायस मेमाेरियल स्कूल’ में एडमिशन दिलाया, जहां मैंने 11वीं और 12वीं की शिक्षा ग्रहण की, यहीं से मेरे जीवन काे नई दिशा मिली, फिर आगे की शिक्षा हेतु मैंने पुणे के माॅडर्न काॅलेज में प्रवेश लिया. यहां मेरा संकल्प और मजबूत हाे गया. पुणे जैसे महानगर में आने पर मेरी साेच में विस्तार हुआ. मैंने ‘प्रवरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (वर्तमान नाम डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम काॅलेज ऑफ फीजिओथेरेपी, लाेणी) में एडमिशन लिया, यहीं से सन् 2018 में फीजियाेथेरेपी की शिक्षा पूर्ण करके ‘बैचलर इन फीजियाेथैरेपी या BTP की ड्रिगी प्राप्त की.’
 
ग्रेजुएट हाेने के बाद आपने अपना कैरियर कहां से शुरु किया?
यह पूछने पर युवा फीजियाेथेरपिस्ट ने बताया कि ‘डिग्री प्राप्त करने के बाद कुछ समय तक मैंने ्नलीनिक में नाैकरी की, फिर सह्याद्रि हाॅस्पिटल में नाैकरी शुरू की. वहां मैं हाेम-विजिट करके पेशेंट काे फीजियाेथेरेपी की सेवाएं भी देती हूं. इससे मुझे अलगअलग तरह के पेशेंट, उनकी बीमारी, वेदना और मानसिकता आदि के अध्ययन का भी प्रत्यक्ष व व्यवहारिक अवसर मिलता है. मेरी सेवा से जब उनकी पीड़ा दूर हाेती है, तब मुझे जाे आनंद मिलता है, वही मेरी प्रेरणा भी है और पारिश्रमिक भी.’
 
अपनी शिक्षा और अनुभव के आधार पर फीजियाेथेरेपी आपकी समझ में क्या है?
इस सवाल के जवाब में डाॅ. अर्चना ने कहा, ‘फीजियाेथेरेपी सिर्फ मसाज की थेरेपी नहीं है, यह एक पेशेंट की कमजाेरी काे दूर करके उसे बिस्तर से उठाकर शारीरिक रूप से चलने-फिरने और पूर्ववत जीने के लिए सक्षम बनाने की थेरेपी है. यह थेरेपी उन पेशेंट्स काे स्वतंत्र, स्वावलंबी, आत्मविश्वासी और सक्षम बनाती है, जाे स्वयं काे परनिर्भर, असहाय तथा निराशा से ग्रस्त पाते हैं. जाे साेचते हैं कि वे अब शायद सामान्य जीवन जी नहीं पाएंगे. उन्हें हम अपनी सेवा से आत्मनिर्भर बनाते हैं. हर पेशेंट स्वावलंबी बनना चाहता है. यह विश्वास हम उसके मन में पैदा करते हैं, इसके लिए फीजियाेथेरेपी मुख्य भूमिका असर करती हैं.
 
आपके अनुभव के अनुसार शहर और ग्रामीण क्षेत्राें के पेशेंट में क्या फर्क है?
यह पूछने पर डाॅ. अर्चना ने कहा कि, ‘हर मरीज अलग हाेता है. उनकी पीड़ा और उनकी जरूरतें अलग हाेती हैं. उनकी वेदना कितनी ज्यादा है और मरीज कितना रिस्पांस उपचार काे दे रहा है, इस पर इलाज की आगे की दिशा निर्भर करती है. विशेष रूप से ‘न्यूराे इन्ज्याेरी या कार्डियाे पेशेंट के लिए उपचार के दाैरान मेरे अनुभव में आया है कि शहरी और ग्रामीण पेशेंट में पीठदर्द और कंधाें के दर्द की समस्या अलग-अलग हाेती है. इन समस्याओं के हल हेतु उनसे शारीरिक गतिविधियां व व्यायाम अलग-अलग प्रकाराें से हम कराते हैं. उनकाे कम्फर्ट देना और आत्मविश्वास बढ़ाना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनाैती हाेती है. यह चुनाैती स्वीकार करती हुई मैं हमेशा सकारात्मक ढंग से विचार करती हूं.’
 
एक महिला फीजियाेथेरेपिस्ट के रूप में आप स्वयं के बारे में क्या ‘फील’ करती हैं?
इस अंतिम प्रश्न के उत्तर में डाॅ. अर्चना शिवलेपाटिल ने बताया कि ‘मैंने एक ग्रामीण और किसान परिवार में जन्म लेने के बाद भी अपने सपनाें काे साकार करने में सफलता हासिल की है, इस बात का संताेष मुझे हैं. मैं अपने पिता की तरह कितने ही किसानाें और बुजुर्गाें की सेवा करके उन्हें सामान्य जीवन जीने हेतु समर्थ बना सकती हूं. इसलिए फीजियाेथेरेपिस्ट के रूप में मैं स्वयं के प्रति गाैरव महसूस करती हूं. यह क्षेत्र युवतियाें-महिलाओं के लिए बहुत ही याेग्य क्षेत्र है, वे इसमें अच्छा कैरियर बना सकती हैं, साथ ही मानव सेवा का अवसर भी मिलता है. इस क्षेत्र में घर-परिवार संभालते हुए भी कैरियर बनाया जा सकता है, भले ही इमर्जेंसी न हाे, लेकिन परिश्रम करने पर अच्छे पैसे भी कमाए जा सकते हैं, इससे स्वयं अपना घर चलाने की क्षमता मिलती है, घर-परिवार के किसी अन्य सदस्य पर आर्थिक रूप से आधारित हाेने की जरूरत नहीं हाेती. इसलिए भी फीजियाेथेरेपी कैरियर का अच्छा क्षेत्र साबित हाे सकता है.