कई बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत पडती है तो कई बीमारियों में इसकी जरूरत नहीं पडती. इस श्रेणी की दवाओं के बारे में आम आदमी के बीच कई तरह की आशंकाएं रहती हैं. एंटीबायोटिक से जुडी ऐसी तमाम बातों के बारें में जानकारी दी जा रही है.
आए दिन हम सभी वातावरण में मौजूद बै्नटीरियल या फंगल इन्फे्नशन से सर्दी-जुकाम, गले के इन्फे्नशन, वायरल, निमोनिया और पेट संबंधी तरह-तरह की बीमारियों के शिकार होते रहते हैं. हालांकि डॉ्नटर इन बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं देते हैं, लेकिन जब स्थिति में सुधार नहीं होता तो जरूरत पडती है इन बीमारियों की जड यानी बै्नटीरिया के विकास को रोकने या खत्म करने की. इस काम के लिए रोगी को एंटीबायोटिक या एंटीबै्नटीरियल मेडिसिन दी जाती हैं, जो विभिन्न तरह के बै्नटीरियल संक्रमण से होने वाली बीमारियों के इलाज में कारगर साबित होती हैं.
ये हैं बहुत शक्तिशाली :
देखा जाए तो एंटीबायोटिक मेडिसिन बहुत शक्तिशाली दवाएं हैं, जो हमारे शरीर में बै्नटीरिया या फंगल इन्फे्नशन से लडती हैं. ये बै्नटीरिया हमारी श्वेत रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं और वहां करीब १६ मिनट में मल्टीप्लाई होकर दोगुने होते जाते हैं. ये बहुत जल्द हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देते हैं, जिससे हम कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. अगर इन बै्नटीरिया या फंगस को खत्म नहीं किया जाता तो यह मल्टीप्लाई होकर हमारी स्थिति को और बिगाड सकते हैं. एंटीबायोटिक मेडिसिन दो तरह से काम कती हैं- एक बै्नटीरिया को शरीर के विभिन्न ऑर्गन्स में बढने या मल्टीप्लाई होने से रोकती हैं और दूसरी उन्हें खत्म करती हैं. रोगी एंटीबायोटिक मेडिसिन को तीन तरह से ले सकता है ओरल यानी टैबलेट, कैप्सूल या सीरप फार्म में, दूसरा इन्जे्नशन के रूप में और तीसरा इंट्रा वेनस ड्रिप के जरिये. रोगी के हालात के आधार पर ये मेडिसिन दी जाती हैं. जैसे उसे वायरल इन्फे्नशन हो तो एंटी वायरल, फंगस इन्फे्नशन हो तो एंटी फंगल, बै्नटीरिया इन्फे्नशन हो तो एंटी बै्नटीरियल.
रोगी की जरूरत :
एंटीबायोटिक मेडिसिन लेने का सवाल है तो सबसे पहले इस बात की जांच करनी चाहिए कि रोगी को वाकई इसकी जरूरत है या नहीं. बिना डॉ्नटरी जांच के और सोचे-समझे बिना ये दवाएं लेना नुकसानदेह हो सकता है. कई बार वायरल, मौसमी बुखार, सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों में किसी एंटीबायोटिक मेडिसिन की जरूरत नहीं पडती, पैरासिटामोल या एंटीएलर्जिक मेडिसिन से रोगी २-३ दिन में ठीक हो जाता है. लेकिन अगर उसे बुखार के साथ सीने में जकडन, लगातार खांसी, कफ और ब्लड आना जैसे संक्रमण हो जाते हैं तो डॉ्नटर को चेकअप कर एंटीबायोटिक एवाएं भी देनी पडती हैं. इसी तरह अगर किसी रोगी के गले में बै्नटीरियल संक्रमण हो और वह एंटीबायोटिक मेडिसिन देने पर एक हफ्ते में ठीक हो जाए तो १०-१५ दिन बाद उसे दुबारा गले में संक्रमण होने पर यह जरूरी नहीं कि संक्रमण बै्नटीरिया की वजह से ही हो और इस बार भी उसे एंटीबायोटिक मेडिसिन की ही जरूरत पडे. इसलिए डॉ्नटर से जांच कराने के बाद मेडिसिन लेनी चाहिए.
क्या है खुराक :
इन एंटीबायोटिक मेडिसिन की खुराक रोगी के वजन, उम्र और बीमारी के हिसाब से नियत की जाती है. आमतौर पर इन्हें १५ मिलीग्राम प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से दिया जाता है, जैसे कोई व्यक्ति ६०-५० किलाग्राम वजन का है तो उसे रोजाना लगभग १००० मिलीग्राम या १ ग्राम एंटीबायोटिक दी जाती है. उम्र के आधार पर एंटीबायोटिक की यह मात्रा कम या ज्यादा होती है. जैसे- १२ साल से कम उम्र के बच्चे को तकरीबन १२५ मिलीग्राम से २५० मिलीग्राम एंटीबायोटिक दी जाती है. बहुत छोटे बच्चे को एंटीबायोटिक मेडिसिन सीरप के रूप में करीब १ चम्मच या ५ मिलीलीटर दी जाती है.
इस्तेमाल मेें सावधानी :
एंटीबायोटिक दवा के गलत या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से दुनिया भर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के मामले बढते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है. कई डॉ्नटर बीमारी की ठीक से जांच किए बगैर रोगी को शुरू में ही एंटीबायोटिक दवा दे देते हैं, जिससे सुपरबग्स की समस्या सामने आती है. इससे रोगी के स्वास्थ्य पर हमला बोलने वाले बै्नटीरिया पर ये एंटीबै्नटीरियल दवाएं असर नहीं करतीं.