कैसे पैदा होता है मंदिर-मस्जिद, पूजा-पाठ का जाल ?

13 Apr 2020 11:50:45
 
 
मैंने सुना है, एक फकीर एक गांव में ठहरा. एक आदमी ने उसकी बडी सेवा की. जब फकीर जाने लगा तो अपना गधा उस आदमी को दे गया. उस पर बडा खुश था, उसकी सेवा पर खुश था. और फकीर के पास कुछ था भी नहीं.
 
फकीर तो चला गया, लेकिन फकीर का गधा था तो शिष्य उसकी पूजा करता. जिस पर उसका गुरु बैठा हो, उस गधे की पूजा की ही जानी चाहिए. वह फूल चढाता, चंदन लगाता. गधा क्या, बिलकुल पंडित-पुजारी मालूम होता. माला पहनाता. और जब वह इतनी सेवा करता उसकी, तो गांव के लोगों ने भी देखा कि कुछ राज होना चाहिए. लोग भी मालाएं पहनाने लगे गधे को, चंदन के टीके लगा जाते, फूल चढा जाते.
 
फिर कुछ और मनौती करने लगे. किन्हीं की मनौतियां भी पूरी हो गईं. किसी को बच्चा नहीं होता था, बच्चा हो गया. हालांकि गधे का इसमें कोई हाथ नहीं था. लेकिन लोग रुपया चढाने लगे. फिर तो उस शिष्य ने देखा कि यह तो बडा धंधा अच्छा भी है! वह गधे को बांधे बैठा रहता. दिन में दस-पच्चीस रुपये भी आ जाते, चढौतरी भी होती.
 
फिर वह गधा मर गया. शिष्य बडा दुखी हुआ. उसने उसकी सुंदर मजार बनवाई. अब मजार पर चमत्कार होने लगे. पहले से भी ज्यादा! क्योंकि पहले तो गधा था तो लोगों को थोडा संकोच भी लगता था. अब तो मजार थी, अब तो गधे का कोई सवाल ही नहीं था. मजार किसकी, यह भी कोई नहीं पूछता था. अरे होगी किसी पहुंचे हुए फकीर की! होगी किसी वली की! धीरे-धीरे पैसा इतना इकट्ठा हुआ कि उसने एक बडा मंदिर बना दिया. खूब धन आया.
 
फिर वह फकीर गुजरा एक बार गांव से. उसने पूछताछ की कि मेरा एक शिष्य में छोड गया था, वह दिखाई नहीं पडता. उन्होंने कहा, वह है. मगर अब आप उसको पहचान नहीं सकेंगे. यह मंदिर...इस मंदिर का पुजारी वही है.
 
फकीर ने देखा तो वहां तो ठाठ ही कुछ और थे. शिष्य एकदम उठा, पैरों पर गिर पडा. शिष्य ने कहा कि मेरे मालिक, क्या भेंट दे गए थे आप भी! में तो पहले सोचा कि यह भी कोई भेंट है! मगर संतों के रहस्य संत ही जानें. दे तो गए थे गधा, लेकिन भाग्य खुल गए. क्या गधा था, पहुंचा हुआ गधा था. बडा सिद्ध था. लोगों की मनौतियां पूरी हुईं. शादी नहीं होती थीं, उनकी शादी हो गईं. बच्चे नहीं होते थे, उनके बच्चे हो गए. मुकदमे लोग जीत गए. क्या-क्या इस गधे ने चमत्कार न दिखाए! और मर कर भी दिखा रहा है! और मेरे तो भाग्य खुल गए. न काम, न धाम, मस्त पडा रहता हूं. दस-पच्चीस तो मेरे शिष्य हैं., सेवा करते रहते हैं..
 
वह फकीर हंसा. उसने कहा कि यह तू ठीक कहता है. यह गधा कोई साधारण गधा नहीं था. अरे में जिस मंदिर में रहता हूं, वह इसकी मां का मंदिर है! यह पुश्तैनी गधा था. इसकी मां भी बडी चमत्कारी थी! मेरे गुरु इसकी मां मुझे दे गए थे. यह पीढी दर पीढी से सिद्धों की परंपरा है. ये कोई साधारण गधे नहीं हैं.. मंदिर और मस्जिद, पूजा और पाठ ऐसे ही जाल हैं. जो खडे हो जाते हैं.. और फिर एक के पीछे दूसरे लोग चलते रहते हैं.. लोग बिलकुल अंधे हैं., अनुकरण करते हैं.. हिंदू पूजै देवखरा, मुसलमान महजीद. पलटू पूजै बोलता, जो खाय दीद बरदीद.. पलटू कहते हैं.: में तो सिर्फ उसको पूजता हूं जो जिंदा है. उसके चरणों में बैठता हूं जहां अभी परमात्मा प्रवाहित है. उसकी सुनता हूं जिससे परमात्मा बोल रहा है.
 
 
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