कुछ लोगों के लिए ये नाकाबिले बर्दाश्त होता है कि उनके पास पडोस में कोई तरक्की करे, इज्जत व नामवरी की जिंदगी गुμजारे. ऐसे लोगों की ख़्वाहिश ये होती है कि उनके अलावा कोई सुख और चैन की जिंदगी न गुजारे, इज्जत व दौलत में उनसे कोई आगे न बढे और अगर कोई आगे है, तो उसकी इज्जत व आबरू किसी तरह नीलाम हो जाये, यही नकारात्मक सोच है, ऐसी सोच रखने वाला चेहरे से चाहे कितना भी ख़ूबसूरत हो मगर उसके दिल में गन्दगियों का ढेर होता है.
अगर अपने समाज पर गौर किया जाये तो आज कल इन्सानी हमदर्दी, मोहब्बत और भाई चारे के जज्बे की कमी नजर आती है. हर शख़्स एक दूसरे के ख़िलाफ दिल में बुरी सोच रखता है. नकारात्मक विचार और विरोधी विचार धारा वाली जेहनियत ऐसी बुरी आदत है जिसके कारण तमाम गुनाह अंजाम पाते हैं., कत्लो गारतगरी (मडर), हसद-इश्या, दुश्मनी, अदावत, लडाई-झगडे तमाम चीμजें नकारात्मक विचारों की पैदावार हैं.. हमदर्दी और भाई-चारे वाले जज्बे की तालीम के जरिए इस्लाम ने मुसबत सोच (सकारात्मक विचार) और मुसबत अंदाजे-फिक्र की हिदायत दी है. हमारा एक भाई अगर तरक्की पर है, तो उसे देखकर ख़ुश होना चाहिए कि हमारा एक भाई तरक्की की राह पर आगे बढ रहा है, बल्कि उसकी हौसला अफजाई भी की जानी चाहिए. इसके साथ ही साथ आपकी मीठी μजबान, ख़ुशी का इजहार सकारात्मक सोच को दर्शाता है. यदि आप किसी के मालो-दौलत, अच्छे कारोबार, तरक्की को देखकर जलने लगें, उसके प्रति दिल में हसद (जलन) पैदा हो और जेहन में बुरे ख़्यालात पैदा हों तो ये मन्फी सोच (नकारात्मक विचार) है इस्लाम ने इससे मना किया है. कुछ लोगों के लिए ये नाकाबिले बर्दाश्त होता है कि उनके पास पडोस में कोई तरक्की करे, इज्जत व नामवरी की जिंदगी गुजारे. ऐसे लोगों की ख़्वाहिश ये होती है कि उनके अलावा कोई सुख और चैन की जिंदगी न गुजारे, इज्जत व दौलत में उनसे कोई आगे न बढे और अगर कोई आगे है, तो उसकी इज्जत व आबरू किसी तरह नीलाम हो जाये, यही नकारात्मक सोच है, ऐसी सोच रखने वाला चेहरे से चाहे कितना भी ख़ूबसूरत हो मगर उसके दिल में गन्दगियों का ढेर होता है. इससे इन्सान कभी आगे नहीं बढता, बल्कि पीछे चला जाता है. इस्लाम ने मुसबत अंदाजे फिक्र में हमदर्दी भाईचारगी को पसन्द किया है. जिससे इन्सानी म्यार (स्तर) ऊंचा उठता है. कुरआन में अल्लाह तआला का फरमान है-ममऐ ईमान वालो! तुम पर अपने नफ्स (स्वयं) की इस्लाह (सुधार) लाजिम है, जब तक तुम सही राह पर चल रहे हो, तो जो शख़्स गुमराह रहे तो उससे तुम्हारा कोई नुकसान नहीं, अल्लाह ही के पास तुम सब को जाना है, फिर वो तुम सब को बता देगा जो कुछ तुम किया करते थे.फफ (सूरह अल मायदा-१०५)
एक अक्लामंद आदमी का काम ये है कि हर वक्त ये फिक्र करे कि मुझमें कौन सा ऐब (दोष) है? में जान बूझ कर और अंजाने में कितने गुनाह किए जा रहा हूं? इन गुनाहों से कैसे बच सकता हूं? और किस तरह अल्लाह की रजामंदी हासिल करूं? लिहाजा हमें बुराई से रूकते और रोकते हुए भलाई का हु्नम करते हुए अपने सुधार की फिक्र करनी चाहिए. इंसान होने के नाते सभी आपस में भाई-भाई हैं., हमें सबके साथ हमदर्दी, गमख़्वारी और ख़ैरख़्वाही का जज्बा रखना चाहिए, इसी से एकता और इत्तेदाह का माहौल तशकील (विस्तार) पा सकता है. जिसकी मौजूदा दौर में सख़्त जरूरत है. सकारात्मक व अच्छी सोच ही समाजी एकता और भाई-चारे को एक धागे में पिरो सकती है