बिना सूंड वाले गणेश जी ब्रह्मपुरी की पहािडयों पर काफी ऊंचाइयों पर स्थित है. जयपुर के सर्व प्रथम गणेश जी इसी मंदिर के गणेश कहलाते हैं.
यह जयपुर का सबसे बडा सौभाग्य है कि जयपुर की चार दीवारी में स्थित ब्रह्मपुरी नाम की जगह पर बिना सुंड वाले गणेश जी की मूर्ति है. जिन्हें गढ गणेश भी कहा गया है. ऐसा कहा जाता है, जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह व; १८वी शताब्दी के शुरुआत में बिना सूंड वाले गणेश जी की स्थापना करवाई थी. उन्हें गणपति भी कहा गया हैं.
दक्षिण भारत से लेकर की गई गणपति की स्थापना
हिस्टोरियन कलानाथ शास्त्री बताते हैं कि, जयपुर की बसावट के दौरान महाराजा सवाई जय सिंह ने जब अश्वमेध यज्ञ करवाया. जिसमें कई चक्रवर्ती राजाओं ने हिस्सा लिया. उस यज्ञ में सबसे पहले गणेश जी की स्थापना की गई. जो कि बिना सूंड वाले वैदिक गणेश जी थे बहुत कम लोग जानते हैं मगर गणपति जी को दक्षिण भारत से लाए थे. बिना सूंड वाले गणेश जी ब्रह्मपुरी की पहाडियों पर काफी ऊंचाइयों पर स्थित है. जयपुर के सर्व प्रथम गणेश जी यहीं के गणेश हैं. जबकि मोती डूंगरी के गणेश जी बाद में महाबली से लाये गए हैं. ५०० से ज्यादा सीढियाँ चढकर बिना सूंड वाले गणेश जी तक पहुंचने का रास्ता है. यह मंदिर अरावली की ऊंची पहाडी पर मुकुट के समान नजर आता है.
गढ गणेश मंदिर से दिखता है पूरे शहर का नजारा
मंदिर इतनी उंचाई पर बसा हुआ है जहां पहुंचने के बाद जयपुर की भव्यता देखते ही बनती है. गढ गणेश मंदिर से पूरा शहर नजर आता है. एक तरफ पहाडी पर नाहरगढ, दुसरी तरफ पहाडी के नीचे जलमहल, सामने की तरफ शहर की बसावट का खूबसूरत नजारा यहां से देखा जा सकता है. बारिश में यह पूरा इलाका हरियाली से भर जाता है. वैसे तो जयपुर में बहुत से गणेश मंदिर बनते वचले गए लेकि इसका अपना ही इतिहास और खूबियां हैं.
मंदिर की खूबिया
- वेदों के मुताबिक ब्रहस्पति यानी गणपति यज्ञ के देवता कहलाते हैं. इन्हे यज्ञ का साक्षी माना गया है.
- जयपुर में १७३४ यज्ञ हुआ उसके बाद इस मूर्ति की स्थापना की गई है.
- पहाड की चोटी पर मंदिर बनाया गया, जिसे गढ गणेश की डूंगरी कहा जाता है.
- इसके दर्शन के लिए ५०० सीढियां बनाई गई, यहां से आप पूरा शहर देख सकते हैं.
- इसके पुजारी गुजरात से लाए गए, जो औदिच्य ब्राह्मण कहलाते है.