अहंकार के जीने का सूत्र क्या है? अगर समझ में आ जाए तो मरने की कला भी समझ में आ जायेगी. अहंकार जीता है अति से. अति अहंकार का प्राण है. शायद तुमने ऐसा कभी सोचा न हो, विचारा न हो जाग कर देखा न हो कि अति में ही अहंकार का वासहै. और, और... यह अहंकार के जीने का ढंग है. दसहजार रुपये है. तो लाख हो जाएं, लाख है. तो दस लाखहो जाएं. और, और, और... ऐसी विक्षिप्तता में अहंकारजीता है. अति में अहंकार जीता है. फिर अति किसीचीज की हो, धन की हो कि ज्ञान की; पद की हो कित्याग की; मगर और...जिसने तीस दिन का उपवास कर लियावह सोचता है अगली बार चालीस दिनका उपवास करूं. जिसने चालीस दिन काकर लिया वह सोचता है पचास दिन काकरूं. फर्क कहां है? जिसके पास चालीसलाख रुपये हे. वह सोचता है पचास लाखहो जाएं. फर्क कहां है?जो कहता है कि मैने तीन बार भोजनकी जगह दो बार शुरू कर दिया, वहसोचता है कब एक बार शुरू करूं? जोएक ही बार करता है वह सोचता है एकबार भी कैसे छूट जाए?एक युवक को मेरे पास लाया गया.वह चाहता था सिङ्र्क पानी पर कैसे जीऊं?और कुछ नहीं लेना चाहता, क्योंकी औरसब लेना तो भोग है. सिङ्र्क पानी पर कैसेजीऊं? सूख गया था. भारत आया इसीतलाश में था अमेरिका से कि कोई पानीसे जीने का सूत्र बता दे. मैने कहा, अगर में तुझे पानी से जीने का सूत्र बता दूं तोतू तृप्त हो जाएगा? आंख बंद कर औरसोच. विचारशील युवक था, आंख बंदकरे कोई आधा घंटा बैठा रहा. फिर उसनेकहा कि नहीं, फिर में पूछंगा कि हवा सेकोई कैसे जीए. सिर्फ हवा पर, क्योंकी पानी की भी झंझट क्यों?ऐसी मन की आकांक्षा है,
ऐसीअहंकार की दौड है. और फिर किस दिशामें तुम दौडते हो, इससे भेद नहीं पडता.अहंकार अति में जीता है. धन हो तोअति हो, त्याग हो तो अति हो, भोगहो तो अति हो, योग हो तो अति हो.मध्य में खडे हो जाओ और अहंकार मरजाता है. इसलिए बुद्ध ने अपने मार्ग कोही मुज्झिम निकाय कहा बीच का मार्ग,ठीक मध्य में.