सच पर असभ्यता और मूर्खता का मुखौटा लगाने वाले समझदार लोग !

    06-Apr-2020
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मेरा मानना है कि आदमी का भाग्य उसके चेहरे पर लिखा होता है. इस मायने में मेरे चेहरे में खोट है. मुझे देखकर ही लोगों को लगता है कि मैं पढा-लिखाऔर शरीफ आदमी हूं. बचपन से ही आंखोंपर मोटा चश्मा और लग गया, जिससेलोगों की यह धारणा और मजबूत होती चली गई.
 
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समस्या यह है कि पढे-लिखे होने और शरीफ होने की धारणा से यह स्वाभाविक निष्कर्ष निकलता है कि मैं किसी काम का आदमी नहीं हूं. मैंने चिल्ला-चिल्लाकर यह सबको बताने की कोशिश की कि मैं पढा-लिखा नहीं हूंऔर उतना शरीफ भी नहीं हूं, जितना आप समझते हैं, लेकिन लोग नहीं माने.समाज में शराफत और ज्ञान के बारे में यह धारणा पहले से ही थी, और वह ज्यादा मजबूत हो रही है. मेरे एक मित्र केविद्वान और सज्जन पिता एक बार चुनाव लड गए.
 
वह जीत गए और मंत्री भी बनगए. लेकिन फिर कभी चुनाव नहीं जीत पाए. उनके चुनाव क्षेत्र के लोग कहते कि चौधरी साहब भले आदमी हैं, परकाम के नहीं हैं. दरअसल, वे कहना चाहते थे कि चौधरी साहब भले आदमी हैं, इसलिए काम के नहीं हैं. इसी धारणाकी वजह से दबंग, बाहुबली या अज्ञानी लोग नेता बनने के काबिल मान लिए जाते हैं.नेता अपने अज्ञान और दबंगई का गर्व के साथ प्रदर्शने हैं और लोग लहा लोट हुए जाते हैं.
 
कभी-कभी शक भी होता है किशायद वह इतना अज्ञानी और असभ्य हैनहीं, जितना सफल होने के लिए इसका नाटक कर रहा है. कई सफल नेता हैं,जो निजी बातचीत में काफी सभ्य और समझदार मालूम होते हैं, लेकिन मंच पर असभ्यता और मूर्खता का मुखौटा लगा लेते हैं. मेरी समस्या यह है कि मैं इतना अच्छा अभिनेता भी नहीं हूं और न उतनापढा-लिखा और शरीफ हूं कि उससे ही संतुष्ट हा संकू. अगर इसका उल्टा होता, यानी मैं चेहरे से शरीफ न लगताऔर जितना पढा-लिखा हूं, बस उतनाही दिखाई देता, तो मैं भी सफल और लोकप्रिय हो सकता था. चेहरे ने मेरी नोटबंदी कर दी, वरना हम भी आदमी थे काम के.