हमें शिव का मस्तिष्क, कृष्ण का हृदय, राम के कर्म दो

18 May 2020 13:26:59

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राम, कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं.. राम की पूर्णता मर्यादित व्तक्तित्व में है, कृष्ण की उन्मुक्त या संपूर्ण व्यक्तित्व में और शिव की असीमित व्यक्तित्व में, लेकिन हरेक पूर्ण है. किसी एक का एक या दूसरे से अधिक या काम पूर्ण होने का कोई सवाल नहीं उठता.
 
पूर्णता में विभेद कैसे हो सकता हैं.? कुछ लोगों के लिए यह भी संभव है कि पूर्णता की तीनों किस्में साथ-साथ चलें, मर्यादित, उन्मुक्त और असीमित व्यक्तित्व साथ-साथ रह सकते हैं.. हिंदुस्तान के महान ऋषियों ने सचमुच इसकी कोशिश की है. वे शिव को राम के पास और कृष्ण को शिव के पास ले आए हैं. और उन्होंने यमुना के तीर पर राम को होली खेलते बताया है.
 
लोगों की पूर्णता के ये स्वप्न अलग किस्मों के होते हुए भी एक-दूसरे में घुल-मिल गए हैं., लेकिन अपना रूप भी अक्षुण्ण बनाए रखे हैं.. राम और कृष्ण, विष्णु के दो मनुष्य रूप हैं., जिनका अवतार धरती पर धर्म का नाश और अधर्म के बढने पर होता है. राम का जीवन बिना हडपे हुए फैलने की एक कहानी है. उनका निर्वासन देश को एक शक्तिकेंद्र के अंदर बांधने का एक मौका था. राम ने पहली जीत को शालीनता और मर्यादित पुरुष की तरह निभाया. राज्य हडपा नहीं, जैसे का तैसा रहने दिया. कृष्ण संपूर्ण पुरुष थे. उनके चेहरे पर मुस्कान और आनंद की छाप बराबर बनी रही.
 
कृष्ण एक महान प्रेमी थे, जिन्हें अद्भुत आत्मसमर्पण मिलता रहा. कृष्ण हर मिनट में चमत्कार दिखाते थे. बाढ और सूर्यास्त आदि उनकी इच्छा के गुलाम थे. उन्होंने संभव और असंभव के बीच की रेखा को मिटा दिया था. राम ने कोई चमत्कार नहीं किया. यहां तक कि भारत और लंका के बीच का पुल भी एक-एक पत्थर जोडकर बनाया. भले ही उसके पहले समुद्र-पूजा की विधि करनी और बाद में धमकी देनी पडीं .लेकिन दोनों के जीवन संपूर्ण कृतियों की जांच करने और लेखा मिलाने पर पता चलेगा कि राम ने अपूर्व चमत्कार किया और कृष्ण ने कुछ भी नहीं. एक महिलाके साथ दोनों भाइयों ने आयोध्या और लंका के बीच २,००० मील की दूरी तय की. जब वे चले तो केवल तीन थे, जिनमें दो लडाई और एक व्यवस्था कर सकते थे. जब वे लौटे, एक साम्राज्य बना चुके थे.
 
कृष्ण ने सिवा शासक वंश की एक शाखा से दूसरी को गद्दी दिलाने के और कोई परिवर्तन नहीं किया. यह एक पहेली है की कम से कम राजनीति के दायरे में मर्यादा पुरुष महत्त्वपूर्ण और सार्थक, और उन्मुक्त या संपूर्ण पुरुष छोटा और निरर्थक साबित हुआ.
 
मर्यादा के सर्वोच्च पुरुष, मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने राजनितिक चमत्कार हासिल किया. पूर्णता के देव कृष्ण ने अपनी कृतियों से विश्व को चकाचा।लशपीं;ध किया, जीवन के नियम सिखाए, जो किसी और ने नहीं किया था. राम और कृष्ण ने मानवीय जीवन बिताया. लेकिन शिव बिना जन्म और बिना अंत के हैं.. ईश्वर की तरह अनंत हैं., लेकिन ईश्वर के विपरीत उनके जीवन की घटनाएं समय क्रम में चलती हैं. और किशेषताओं के साथ इसलिए वे ईश्वर से भी अधिक असीमित हैं.. शायद केवल उनकी ही एकमात्र किंवदंती है. जिसकी कोई सीमा नहीं है.
 
इस मामले में उनका मुकाबला कोई और नहीं कर सकता. म।लशपीं; कोई इलाज सुझाने की धृष्टता नहीं करूंगा और केवल इतना कहूंगा: ऐ भारतमाता, हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो तथा राम का कर्म और वचन दो. हमें असीम मस्तिष्क और उन्मुक्त हृदय के साथ-साथ जीवन की मर्यादा से रचो.
 
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