आईवीआरआई, बरेली के वैज्ञानिकों ने देसी गायों के ऐसे गुण का पता लगाया है, जिसकी वजह से वह ग्लोबल वार्मिंग से बेअसर रहेंगी. अगर सदी के अंत तक धरती का तापमान डेढ से साढे तीन डिग्री तक भी बढ जाए तो भी ये देसी गायें अभी की तरह ही दूध देती रहेंगी. कई देसी और संकर गायों पर वर्षों तक चले शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने यह पाया कि देसी नस्ल की गायें खुद को आसानी से हर तरह के मौसम के अनूकूल कर लेती हैं.
देसी गायों में खास जीन
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने आईवीआरआई को नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजलिएंट एग्रीकल्चर (निकरा) प्रोजेक्ट के तहत यह पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी थी कि भविष्य में जब धरती का तापमान बढेगा तो कौन-कौन सी नस्ल पर असर नहीं होगा. इस परियोजना की कमान एनिमल बायोटे्ननोलॉजी विभाग के हेड डॉ. एके तिवारी को सौंपी गई. डॉ. तिवारी ने करीब सात साल तक गायों के गुणसूत्रों का अध्ययन कर थारपारकर और साहीवाल के इस जीन का पता लगाया, जो इसे अन्य नस्लों से खास बनाता है.
देसी गायों ने खुद को बढते तापमान के अनुकूल बनाया
वैज्ञानिकों ने तापमान बढोतरी के दौरान गायों के रक्त के नमूने लिए. इस दौरान जांच में थारपाकर में कुछ विशेष जीन मिले, जो उनके भीतर ज्यादा तापमान सहने की क्षमता विकसित करते हैं. डा. तिवारी के मुताबिक, जनेटिक स्टडी के बाद यह निष्कर्ष निकला कि संकर गायें बढते तापमान को कम झेल पाती हैं. साहीवाल और थारपारकर खुद को अनूकूलित करने में कामयाब रहीं. थारपारकर में तापमान को बर्दाश्त करने की क्षमता ज्यादा मिली.
राजस्थान में पाई जाती है थारपारकर
राजस्थान में पाई जाने वाली थारपारकर ज्यादा दूध देने के लिए प्रसिद्ध है. हालांकि यह नस्ल पाकिस्तान के थारपारकर जिले की है. सफेद रंग और चौडा माथा तथा मध्यम कदकाठी इसकी पहचान है. इस नस्ल में सूखे जैसी स्थितियों में भी खुद को ढालने की क्षमता होती है. वैज्ञानिक साहीवाल और थारपारकर के बाद दूसरी देसी नस्लों-गिर, कांकरेज और राठी पर भी तापमान बढने के असर का अध्ययन करेंगे. अब ऐसी वै्नसीन भी तैयार होंगी तो तापमान बढोतरी के बाद कीडों के प्रकोप से बढने वाली बीमारियों की रोकथाम में भी कारगर साबित होंगी.
डॉ. एके तिवारी ने बताया कि धरती का तापमान बढने पर वही जानवर खुद को बचा पाएंगे, जिनमें अनूकूलित होने की क्षमता होगी. इसके लिए इनके खाने के लिए डायटरी मैनेजमेंट के साथ सिलेक्टिव ब्रीडिंग करनी होगी. सिलेक्टिव ब्रीडिंग के जरिए थारपारकर के जेनेटिक गुणों को दूसरी प्रजातियों के गायों में लाया जाएगा, जिससे वे बढते तापमान में खुद को अनुकूलित कर सकें. वैज्ञानिकों का कहना है कि साल २१०० तक धरती का तापमान डेढ से साढे तीन डिग्री बढने का अनुमान है. ऐसा होने से कीटों की संख्या भी बढेगी और इससे होने वाली बीमारियां भी. साथ ही जानवरों की उत्पादन क्षमता और उनकी सेहत दोनों प्रभावित होंगी.
अध्ययन
- आईवीआरआई वैज्ञानिकों ने जेनेटिक स्टडी कर खास जीन का पता लगाया.
- सिलेक्टिव ब्रीडिंग का थारपारकर के खास गुण को दूसरी प्रजाति में लाया जाएगा.
- ज्यादा तापमान में रहने के बाद भी थारपारकर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम नहीं हुई.
- सूखे जैसे हालात में भी खुद को ढालने की क्षमता है देसी थारपारकर गाय में.
टेंपरेचर चेंबर बनाकर २१०० जैसा माहौल
परियोजना के तहत बिल्कुल वैसी ही परिस्थितियां बनाने के लिए साइकोमेट्रिक चैम्बर तैयार किए गए. इसके लिए १०-१० गायों के तीन ग्रुप लिए गए. इसमें देसी नस्ल की थारपारकर, साहीवाल और संकर नस्ल की गायें शामिल थीं. तापमान बढाकर उसमें गायों को ६-६ घंटे के लिए रखा गया. डॉ. एके तिवारी ने बताया कि अधिकतम तापमान कुछ घंटे के लिए ही रहता है. ऐसे में ६-६ घंटे का स्लॉट तैयार किया गया. इस दौरान गायों के शरीर में होने वाले बदलावों का डाटा तैयार हुआ और इसका अध्ययन किया गया