संयम का मतलब है - बैलेंस्ड; न इस तरफ, न उस तरफ

21 Jun 2020 11:16:06
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आदमी का मन ऐसा है कि एक प्रतिकूलता से दूसरी पर चले जाने में उसे सुविधा होती है; क्योंकि वह भी प्रतिकूल है. इसलिए ज्यादा भोजन करने वाले लोग अक्सर उपवास करने को राजी हो जाते हैं. असल में, जिस आदमी ने सम्यक भोजन किया है, वह उपवास की मूढता में पडेगा ही नहीं. क्यों उपवास करेगा? जिसने ठीक भोजन किया है, उतना ही भोजन किया है जितना शरीर को जरूरत थी, वह उपवास करने का कोई सवाल नहीं उठता. सिर्फ अति भोजन किया है, तो फिर अनाहार में उतरना पडेगा. और जो अति भोजन करता है, वह तत्काल अनाहार के लिए राजी हो जाता है.
 
इसको आप समझ लें. अति भोजन करने वाले को अगर कहें कि कम भोजन करो, तो वह कहेगा, यह जरा कठिन है; बिलकुल न करो, यह हो सकता है. अगर एक आदमी सिगरेट पीता है, उससे आप कहें, दस की जगह पांच पीओ. वह कहेगा, यह जरा कठिन है; बिलकुल न पीऊं, यह हो सकता है. क्यों? क्योंकि अति की आदत है; या तो पीऊंगा दिन भर, या बिलकुल नहीं पीऊंगा. इन दोनों में से चुनाव आसान है. लेकिन मध्य में रुकना कठिन है. मध्य में रुकने का मतलब है कि आप प्रकृति के अनुकूल होना शुरू हो गए. प्रकृति है मध्य, संतुलन, संयम.
 
ध्यान रखना, हमने संयम का अर्थ ही खराब कर दिया है. संयम का हमारा मतलब होता है दूसरी अति. अगर एक आदमी उपवास करता है, हम कहते हैं, बडा संयमी है. असंयमी है वह आदमी उतना ही, जितना ज्यादा खाने वाला असंयमी है.
 
संयम का मतलब क्या है? संयम का मतलब है संतुलित, बैलेंस्ड, बीच में; न इस तरफ, न उस तरफ. झुकता ही नहीं अति पर, बिलकुल मध्य में है. मध्य में जो है, वह संयम में है. और संयम सूत्र है निसर्ग के अनुकूल हो जाने का. लेकिन आपका संयम नहीं; आपका संयम तो असंयम का ही एक नाम है - दूसरी अति पर.
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