शास्त्रों में कोई बंधे-बंधाए उत्तर नहीं मिलेंगे

24 Jun 2020 14:15:21
शास्त्र - भारत_1 &nb
 
शास्त्र का अर्थ है, सदियों-सदियों में, सनातन से जिन्होंने जाना है, उनका सार, निचोड. जिन्होंने जीवन के आनंद को अनुभव किया है, जीवन के वरदान की वर्षा जिन पर हुई है, उन्होंने जो कहा है, उसका जोड.
 
आज कठिन हो गई है यह बात. ऐसी कठिन उस दिन बात न थी, जब कृष्ण ने यह कहा था. उस दिन हर कोई शास्त्र नहीं लिखता था. कोई सोच ही नहीं सकता था कि बिना जाने मैं लिखूं. वह सोचने के बाहर था क्योंकि बिना जाने लिखने में कोई अर्थ भी नहीं था. शास्त्रों पर किसी के नाम भी नहीं थे. वह कोई व्यक्तियों की संपदा भी नहीं थी. अनंत-अनंत काल में, अनंतअनंत लोगों ने जो जाना है, उस जानने को लोग निखारते गए. शास्त्र संपदा थी सबके अनुभव की.
 
वेद हैं, वे किसी एक व्यक्ति के वचन नहीं हैं. अनंत-अनंत ऋषियों ने जो जाना है, वह सब संगृहित है. उपनिषद हैं, वे किसी एक व्यक्ति के लिखे हुए विचार नहीं हैं. वह अनंत-अनंत लोगों ने जाना है, उनका सारभूत है. कुछ पक्का पता लगाना भी मुश्किल है कि किसने जाना है. व्यक्ति खो गए हैं, सिर्फ सत्य रह गए हैं. कृष्ण ने जब यह बात कही, तब शास्त्र का अर्थ था, जाने हुए लोगों के वचन. इन वचनों को त्यागकर जो अपनी इच्छा से बरतता है, वह सिद्धि को प्राप्त नहीं होता. क्योंकि एक व्यक्ति का अनुभव ही कितना है! एक व्यक्ति की छोटी सी बुद्धि कितनी है! वह ऐसे ही है, जैसे सूरज निकला हो, और हम अपना टिमटिमाता दीया लेकर रास्ता खोज रहे हैं. एक व्यक्ति का अनुभव बहुत छोटा है. एक व्यक्ति का होश बहुत छोटा है. अपने ही अनुभव से जो चलने की कोशिश करेगा, वह अनंत काल लगा देगा भटकने में. लेकिन जाने हुए पुरुषों का, जागे हुए पुरुषों का जो वचन है, उसका सहारा लेकर जो चलेगा, वह व्यर्थ के भटकाव से बच जाएगा.
 
रास्ता छोटा हो सकता है, अगर थोडा सा नक्शा भी हमारे पास हो. शास्त्रों का अर्थ है, नक्शा. शास्त्रों को सिर पर रखकर बैठ जाने से कोई मंजिल पर नहीं पहुंचता. लेकिन वे नक्शे हैं, उन नक्शों का अगर ठीक से उपयोग करना समझ में आ जाए, तो आप बहुत सी भटकन से बच सकते हैं. जहां जो भूल-चूक जिन लोगों ने पहले की, उसको आपको करने की जरूरत नहीं है. शास्त्र कोई बंधे-बंधाए उत्तर नहीं हैं; शास्त्र तो केवल मार्ग को खोजने के इशारे हैं और उन इशारों को जो ठीक से समझ लेता है और उनके अनुसार चलता है, वह सिद्धि को प्राप्त हो जाता है. और जो उनको त्याग देता है, वह न तो सिद्धि को प्राप्त होता है, न परम गति को, और सुख को ही प्राप्त होता है. वह भटकता है. यह आज के युग में बात और कठिन हो गई, क्योंकि आज शास्त्र बहुत हैं. कोई पांच हजार शास्त्र प्रति सप्ताह लिखे जाते हैं. पुस्तकें बढती चली जाती हैं. और कुछ पक्का पता लगाना मुश्किल है, कौन लिख रहा है, कौन नहीं लिख रहा है. पागल भी लिख रहे हैं. उनको राहत मिलती है, केथार्सिस हो जाती है. उनका पागलपन निकल जाता है, किताब में रेचन हो जाता है. फिर उन पागलों की लिखी किताबों को दूसरे पागल पढ रहे हैं. उनका तो रेचन हो जाता है, इनकी खोपडी भारी हो जाती है. अब तय करना मुश्किल है. क्योंकि बहुत से सूत्र खो गए.
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