गरीब बिना रोटी-पानी के जी गया... दवा की क्या बात हैं ?

AajKaAanad    25-Jun-2020
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पतंजलि... यानी बाबा रामदेव... रामदेव ने कहा है कि पतंजलि आयुर्वेद का कारोबार ३५००० करोड रुपए से ज्यादा का हो गया है. अगले ५ वर्षों में यह एक लाख करोड रुपए का हो जाएगा. कंपनी ने हाल ही में 'रुचि सोया' नामक कंपनी का अधिग्रहण भी किया है. उसमें १२ हजार करोड रुपए कंपनी निवेश करेगी. ५ सालों के बाद यह कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड या HUL को पीछे छोड देगी और फास्ट मूविंग कस्टमर गुड्स या FMCG क्षेत्र की सबसे बडी कंपनी हो जाएगी. अब उनका दावा है कि कंपनी की पतंजलि योगपीठ जो शोध संस्था है, उसने ३ से ७ दिनों में कोरोना बीमारी को ठीक करने की दवा 'कोरोनिल श्वासारी' बनाई है. इस दवा का विज्ञापन करने से भले ही केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने मना किया हो, लेकिन बाबा रामदेव का यह दावा कि कोरोना के ६०% मरीज ठीक हुए हैं. और कोरोनिल के प्रयोग से मरीज मरता नहीं, ये दो बिन्दु ही पर्याप्त विज्ञापन बन गए हैं. एक सप्ताह में ही देशभर के बिक्री केंद्रों पर ये दवाइयां पहुंच जाएंगी और यह भी तय है कि हजारों करोड रुपए का इनका मार्केट बन जाएगा. कोरोना को लेकर ५४५ रुपए में एक महीने का किट भी तैयार किया गया है. बाबा के शिष्य और पतंजलि के संचालक बालकृष्ण के अनुसार २८० पेशेंट कोरोना के इस दवा से ठीक हुए हैं. खास बात यह है कि इससे पेशेंट की जीवन रक्षा हुई है, मृत्यु से वे बच गए हैं. देशभर में बाबा के लाखों शिष्य, प्रशंसक व ग्राहक हैं. अत: इन दवाओं के कस्टमर पहले से ही उपलब्ध हैं.
 
 
यह तो हुई अच्छी खबर. वैसे एक बडा फैक्टर है अपना अनुभव. कई लोगों को स्वामी रामदेव की दवाएं अपेक्षित फायदा नहीं पहुंचाती. फिर भी वे साबुन, दंत मंजन, केशकांति तेल और अन्य सामान तो खरीदते ही हैं. बाबा की दुकान में विदेशी उत्पादनों के कई विकल्प मौजूद हैं. वर्तमान में जब स्वदेशी या आत्मनिर्भर भारत का दौर चल रहा है, तब उनका कारोबार और बढने की उम्मीद है. इतना जरूर है कि बाबा अब टेक्निकल मार्केट में भी कदम रखें और वे इलैक्ट्रिकल व एलेक्ट्रोनिक वस्तुएं भी बनाएं तो लाखों इंजीनियर्स को भी रोजगार मिले. बाबा रामदेव और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक-दूसरे के 'सप्लीमेंटरी' ही लगते है. नोटबंदी भी बाबा की ही एक मांग थी. यह अलग बात है कि वह एक तरह से अपने महान लक्ष्य में फेल हो गई. भ्रष्टाचार तो हटा ही नहीं, और उस पर २००० रुपए का और बडा नोट मोदीजी ने छाप दिया.
 
इस दौरान दो विरोधाभासी खबरें आई हैं. पहली खबर है कि 'देश की प्रतिव्यक्ति आय या परकैपिटा' इन्कम ९ हजार रुपए कम हो सकती है. यह आय १.५२ लाख रुपए से १.४३ लाख रुपए तक चीजें आ सकती है. मतलब २० रुपए कम रोज की आय में. २० रुपए में वैसे तो आज सब्जी भी एक वक्त भी नहीं आती, लेकिन साल में ९ हजार रुपए या महीने में ७५० रुपए की कभी तो मायने रखती ही है, साफ बात है कि 'घर का बजट' फिर से डांवाडोल हो जाएगा. लेकिन लोग जी लेते हैं, जैसे लॉकडाउन के दौरान करीब ८० करोड से ज्यादा गरीब जी गए, यह इस मानव जीवन के सबसे बडे चमत्कार में से एक है. साढे १४ करोड प्रवासी मजदूर से पैदल-भूखे-प्यासे अपने गांव-घर के लिए चल पडे. करोडों लोगों को मालिकों ने काम से हटा दिया. पेट में दाना नहीं, जेब में पैसा नहीं. गर्भवती पत्नियां, भूखे-प्यासे बच्चे. मनुष्यता का ... देशभर महामार्गों पर नजर आया. क्रूर सरकारें, क्रूर मालिक और उस पर भी आग उगलता सूरज... फिर भी ये जिद्दी करोडों लोग मरे नहीं.
 
...और कोरोना! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'गांव के लोगों ने महानगरों- शहरों को जीना सिखाया.' कितने क्रूर वचन हैं. उनके. अरे, प्रधानमंत्री जी... आपका तो रोज मैन्यू तय होता है, इन्हें कोरोना कहां से ले जाता... इनके भीतर जाकर तो कोरोना तक 'भूख' से मर गया होगा. जिस भीषण भूख व बीमारियों में ये जीते हैं, उसमें कोरोना की क्या मजाल और सच तो यह है कि टेस्ट ही नहीं हुआ तो पता कैसे चले कि कोरोना हुआ भी है?
 
दूसरी खबर है कि देश में बेरोजगारी की दर घटी है. हमारे यहां के सबसे बडे थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी 'CMSE' के अनुसार बेरोजगारी दर १७.५% से घटकर ८.५% तक रह गई है. ग्रामीण बेरोजगारी दर तो प्री-लॉकडाउन वीक के ८.३% से भी घटकर ७.३% तक गिर गई है. सेंटर के अनुसार इसमें मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मई २०२० में ५६५० लाख कार्य दिवस या वर्किंग डेज का निर्माण हुआ है. इस दौरान गरीब कल्याण योजना जो ५० हजार करोड रुपए की है. इसने भी बहुत मदद की. अब मुद्रा बैंक जैसी योजनाओं का क्या हाथ रहा? यह तो यह थिंक टैंक व सरकार ही जाने. वर्तमान में चीनी माल के बहिष्कार से मुद्रा बैंक, स्टार्ट अप और स्किल्ड इंडिया आदि कांसेप्ट की 'बहार' आ जानी चाहिए. लेकिन ऐसा दिखाई नहीं देता. सरकारें तो लोकल लेवल पर छोटे-छोटे उद्योग व्यवसायों के कलस्टर भी बना सकती थीं, वैसा दिखाई तो नहीं दे दे रहा है. अभी इन सबके लिए बहुत अवसर है, क्योंकि चीनी निवेश वाले उद्योग-व्यवसाय भी बंद हैं. चीन पर भी कोरोना इफेक्ट पडने से वहां से भारत एक्सपोर्ट भी प्रभावित हुआ है. इसका लाभ भारतीय उद्योग-व्यापार जगत् को मिलना ही चाहिए.
 
एक और खबर है लेकिन - नेशनल और वह है हमारे सांसदों को लेकर. सुप्रिया सुले, श्रीरंग बारणे, गीरीश बापट व डॉ. अमोल कोल्हे चारों सासदोें ने दिल्ली व संसद दोनों में अपने व्यक्तित्व की गहरी छाप छोडी है, और अच्छा कामकाज किया है.
 
सुप्रिया सुले और श्रीरंग बारणे तो पहले से ही 'शानदार सांसद' रहे हैं. गीरीश बापट की तेज सक्रियता से भी सब वाकिफ है, मगर डॉ. कोल्हे ने भी दिल्ली में 'पुणेकर' की 'अस्सल छाप' छोडी है. ८० दिनों के अपने अब तक के कामकाज में उन्होंने सरकार को घाट पर खडा कर दिया. रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर सुले, बापट व कोल्हे तीनों ने सवाल उठाए. बहु प्रतिक्षित पुणे - नाशिक रेलवे का मुद्दा बारणे व कोल्हे ने उठाकर लोगों के मन के प्रश्न को सामने रखा! पुणे-लोणावला फोर लेन, रोजगार, हाई-वे, पानी और वनौषधि संबंधी समस्याएं व मुद्दे इन सांसदों ने उठाए. जनता को अभी कई उम्मीदें इनसे हैं. अंत में कोरोना की दवा वाले बाबा रामदेव और कोरोना मार्केट की जय! गरीब की इन्कम पर क्या राष्ट्रीय बहस! गरीब इतने जिद्दी होते हैं. कि जीवन के प्रति वे बिना भोजन-पानी जी गए, बिना दवा के क्या मरेंगे?
- आर.के.श्री. मनवेंद्र