युद्ध-उन्माद फैलाने वाले राजनेताओं से मुक्ति पाओ!

30 Jun 2020 14:34:36
India - War_1  
 
५५ लाख करोड रुपए यह है अमेरिका का वर्ष २०२०-२१ हेतु रक्षा बजट. यह खबर सुनकर कौन दंग नहीं रह जाएगा? यह रकम भारत के कुल केंद्रीय बजट का लगभग दो-गुना है. हमारे रक्षा बजट ४.७१ लाख करोड रुपए से ११ गुना से अधिक. इतना पैसा? चीन का रक्षा बजट १३ लाख करोड रुपए के बराबर. हमारे रक्षा बजट से करीब तीन गुना. अमेरिका के पास एक ऐसा लडाकू विमान है, जिसकी हर विमान की कीमत १५ हजार करोड रुपए है, ऐसे २० विमान अमेरिका की वायु सेना में हैं. सारी दुनिया का रक्षा बजट वर्ष २०१९ लगभग १३७ लाख करोड के बराबर था. हर साल इस ७% से ज्यादा की वृद्धि हो रही है. अब सोचिए, इतना धन रक्षा बजट हेतु आवंटित करने के बाद 'नंगा नहाए क्या निचोडे क्या?' की स्थिति नहीं होगी तो क्या होगी? यही तो कारण है कि दुनियाभर में ७४ करोड लोग बेहद....बेहद गरीब हैं. उनके पास नमक-तेल-लकडी के लिए पैसे नहीं हैं. रक्षा बजट या युद्ध की बात क्या करें? अभी टी.वी. मीडिया ने तो जैसे यह संकल्प ही कर लिया है कि भारत-चीन के बीच युद्ध कराके ही रहेगी? भारत में युद्ध फैलाने का प्रयास राष्ट्रवाद के नाम पर किया जा रहा है. यदि हमारी सेना युद्ध चाहती तो गलवान पहाडी पर सिर्फ धक्का-मुक्की नहीं करती. गोलियां चलाती, मगर उसने गोलियां नहीं चलाईं और सिर्फ पत्थर-डंडे से ही चीनी सेना का आमना-सामना किया. इससे हमें सीखना होगा कि सेनाएं जितना युद्ध करती हैं, उससे ज्यादा तो मीडिया करवा देती है. कुछ चैनल्स तो युद्ध का उन्माद ही फैला रहे हैं. हमें युद्ध क्यों चाहिए? मनुष्य को युद्ध क्यों चाहिए? क्या युद्ध से समस्याएं हल हुई हैं? क्या युद्ध में कोई जीता भी है? युद्ध में सभी हारते हैं. दोनों पक्ष हारते हैं, और चीन से युद्ध में भीषण विनाश होगा. यह बात सबको पता है, यानी युद्ध को जितना टाला जाए, उतना ही बेहतर होगा. गलवान पहाडी या घाटी में युद्ध को टालकर हमारी सेना ने एक बहुत बडा संदेश सारी दुनिया को दिया है. वह संदेश यही है कि कृपया राजनैतिक सत्ताधारी व राष्ट्रवादी वर्ग भी युद्ध को टालने के प्रयास करें. हमारी सेना से न तो कोई ज्यादा राष्ट्रवादी है, न ही राष्ट्रभक्त. जहां तक सरकार का सवाल है, आज उसके साथ इस मामले में चंद विपक्षियों को छोडकर पूरा भारत उसके साथ है. मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है न :
 
नहीं कभी हम विपदाओं को
स्वयं बुलाने जाते हैं.....
किंतु, यदि वे आ जाएं तो
कभी नहीं घबराते हैं.
 
भारत अब ऐसा देश तो रहा नहीं, कि चीन या कोई भी देश चुनौती दे सके. अब भारत एक अत्यंत शक्तिशाली देश है, और अब वह चीन से घबराता नहीं है. सन १९६२ में भी भारत घबराया नहीं था. उसने चीन से दो-दो हाथ किए थे, वह तो हम नए-नए आजाद हुए थे और हमारी सेना चीन के मुकाबल छोटी थी. फिर भी हमारी सेना ने आगे बढकर सामना किया और भले ही हम हारे मगर दुनिया ने भारतीय सेना का महान पराक्रम भी देखा. अब हम चीन से लडकर जीत भी सकते हैं, यह हमारा आत्मविश्वास है, लेकिन हम भारतीय मूल रूप से युद्ध नहीं चाहते. रिटायर्ड जनरल बी.के. सिंह ने बताया है कि भारतीय सेना समझौते का पालन कराने चीनी तंबू को हटवाने के लिए गए थे. मगर चीनी सेना जिद पर अडी रही, इसके कारण बिना गोली चलाए हमारी सेना ने विरोध किया और पत्थर-डंडों से लडाई हुई. इसमें हमारे २० जवान शहिद हो गए. व उनके ४५ जवान मारे गए. गलवान घाटी सहित ४३ हजार स्कवे. किलोमीटर क्षेत्र चीन ने हमारा बलपूर्वक अपने कब्जे में रखा हुआ है. अब इस कब्जे को हटाना जरूरी है. भारत को चाहिए कि वह तिब्बत के लोकतांत्रिक आंदोलन को समर्थन दे ताकि अन्य देश यह समर्थन देना शुरू करें. हांगकांग के साथ ही वियतनाम की सुरक्षा व लोकतंत्र की रक्षा हेतु भी भारत सहायता दे. यदि युद्ध हुआ तो बांग्लादेश की तरह तिब्बत की आजादी की घोषणा करे. चीन धोखेबाज है, यह बात कौन नहीं जानता. आगे भी उसने धोखेबाजी की कितनी साजिशें रची होंगी, यह तो चीन का भगवान जाने, क्योंकि दूसरों को धोखा देते-देते चीन ने कब खुद को धोखा देना सीख लिया है? यह वह स्वयं नहीं जानता? यदि जानता तो क्यों भारत पर हमलावर होता?
 
जब भी एक जवान मरता है, उसके साथ लगभग उसका परिवार मर सा जाता है. आंसू बरसों नहीं थमते हैं, बच्चों को चूल्हा नहीं जलने से भूखे रहना पडता है. एक शहीद जवान की अन्त्येष्टी में मैंने देखा कि एक छोटा सा मासूम बच्चा भी किसी भैया-मामा-चाचू की गोद में चढा अपने दिवंगत.... शहीद पिता के शव को सैल्यूट दे रहा था. कितना भीषण दृश्य था. कल हो सकता है कि यह बच्चा भी सेना में जाए और इसी तरह बलिदान हो जाए. उसका भी कोई मासूम इस तरह से सैल्यूट दे. कब ये कत्लो-..., यह खून-खराबा, यह युद्ध.... ये जंग रूकेंगे? कब दुनिया के किसी बच्चे को इस तरह अपने शहीद पिता को सैल्यूट देने से बचाए जाने में सफलता मिल सकेगी? जरा देखिए भारत के पास १२.५ लाख पैदल सैनिक या थल सेना है. अमेरिका के पास १४ लाख व चीन के पास २५ लाख व पाकिस्तान के पास ६.५ लाख सैनिकों की आर्मी है. पूरी दुनिया में एक करोड से ज्यादा सैनिक हैं, यानी करोडों मासूम बच्चों का वे ही सहारा हैं, वे नहीं रहेंगे तो हम इन बच्चों को उसका पिता कहां से दे सकेंगे? जब वे अंजान-मासूम 'पापा... पापा...डैडी....बाबू...पुकारेंगे तो कौन आकर उन्हें अपनी बांहों में उठाएगा?
 
मनुष्य हिंसक है. उसका स्वभाव ही हिंसक है. इसके विपरीत जाने के लिए उसे अपने इस हिंसक स्वभाव को जीतना पडता है. इससे मुक्त होना पडता है. यही व्यक्तिगत हिंसा तो धीरे-धीरे सामूहिक हिंसा के रूप में एकत्र होकर जंग या युद्ध... या फिर दंगे... हिंसक गुटीय संघर्षों में बदलते हैं. यही कारण है कि अमेरिका में एक करोड, यूरोप में डेढ करोड व भारत में ५५ लाख औसतन अपराध हरसाल होते हैं.. हिंसा चाहे घरेलू हो या फिर समाज में या सीमा पर हिंसा हर हाल में मानव-विरोधी है. चीन ने कोरोना के रूप में एक घरेलू हिंसा फैलाई. फिर जब इस हिंसा की प्रति हिंसा फैलने लगी है, तो इसे ही वह जंग में बदलकर मानवता को अब इस तरह से जख्मी करने पर आमादा है.
 
पूरी दुनिया में 'विश्वयुद्ध' का आभास पैदा किया जा रहा है. वर्ल्ड वार का एहसास कि दुनिया एक और विश्वयुद्ध की कगार पर है, एक तरह का उन्माद.... जो हर युद्ध के पहले ही मनुष्य की मानसिकता पर कब्जा कर लेता है. इससे पूरी दुनिया को बचना है. ताकि युद्ध टाले जा सके. दरअसल सेना से भी ज्यादा युद्ध के उन्मादी राजनेता होते हैं, दुनिया के तमाम युद्धों के पीछे राजनेताओं का ही हाथ है. कारण कितने भी मामूली हों. इन क्रूर-युद्धोन्मादी राजनेताओं से दुनिया को बचाने की जरूरत पहले है.
- आर.के.श्री. मानवेंद्र
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