सेक्शन १३८ में प्रस्तावित संशोधन से आरोपियों को ही रियायत मिलने की आशंका

AajKaAanad    01-Jul-2020
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सीनियर एड्वोकेट बी.एस. भोगल ने दै. मआज का आनंदफ से विशेष बातचीत में कहा
 
बोले- यदि कानून की धाक न हो तो लेन-देन करना ही कठिन हो जाएगा
 
निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट से्नशन १३८ एवं १३३ (१) में बदलाव का सुझाव केंद्र सरकार ने दिया है, मगर संशोधन के साथ जो पक्षकार पीड़ित हैं. उन्हें ज्यादा रियायतें मिलें. साथ ही इस कानून के जरिए पक्षकारों को जो अधिकार दिए गए थे, उन्हें कायम रखना जरूरी है. यह राय सीनियर वकील एड्. बी.एस. भोगल ने व्यक्त की. उन्होंने कहा कि ऐसे संशोधन से कानून तैयार करने के मूल कारण को ध्नका नहीं पहुंचना चाहिए. इस कानून की धाक कायम रहने के साथ मचेकफ को लेकर अर्थव्यवस्था में जो विश्वसनीयता है, वह बरकरार रहनी चाहिए. एड्. बी.एस. भोगल ने मआज का आनंदफ के प्रतिनिधि स्वप्निल बापट से विस्तार से इस विषय पर बात की. पेश हैं. उस विशेष मुलाकात के मुख्य अंश:
 
प्रश्न : से्नशन १३८ में की गई कानूनी व्यवस्था का क्या महत्व है तथा उसमें बदलाव से क्या परिणाम अपेक्षित है?
 
उत्तर : से्नशन १३८ निगोशिएबल इन्स्ट्रूमेंट ए्नट कॉमर्शियल ट्रांजे्नशन्स को पॉवरफुल बनाने तथा व्यापारी कम्युनिटी में विश्वास बनाए रखने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. व्यापारियों एवं अन्य लोगों के बीच होने वाले व्यवहार, पैसों के लेन-देन, माल की सप्लाई, घर किराए पर देने, पोस्ट डेटेड चेक की विश्वसनीयता बनाए रखने में यह से्नशन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. चेक के जरिए होने वाले व्यवसाय व व्यवहार को सुरक्षित माना जाता है. से्नशन १३८ के जरिए चेक को भी एक तरह की सामाजिक प्रतिष्ठा मिली है. इस बात को हमेशा ध्यान में रखना जरूरी है.
 
प्रश्न : दो साल पहले भी इस कानून में कुछ संशोधन किया गया था?

उत्तर : निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स ए्नट में २०१८ में संशोधन किया गया था. उसमें किया गया से्नशन १४३ (ए) और १४८ संशोधन महत्वपूर्ण है. तब तक इस अधिनियम को अधिकाधिक मजबूत बनाने का प्रयास किया गया था. इसके चलते अब जो संशोधन सुझाए गए हैं., वे इस अधिनियम के मूल उद्देश्य को ध्नका पहुंचाते हैं.. चेक एक प्रकार की स्नियोरिटी है. यह कॉमर्शियल ट्रांजे्नशन्स को विश्वसनीय बनाता है. चेक गारंटी की तरह होता है. लोगों को विश्वास रहता है कि चेक पास नहीं हुआ तो वे चेक जारी करने वाले व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज करा सकते हैं.. संशोधन के जरिए इस गारंटी को ध्नका न पहुंचे, यह देखना बहुत जरूरी है.
 
प्रश्न : फिलहाल लॉकडाउन की वजह से दुकानें व व्यापार बंद हैं.. ऐसी स्थिति में चेक भरना या उसकी वसूली संभव नहीं है. यदि इस स्थिति में अपराध दर्ज कराया जाए तो क्या होगा?

उत्तर : कोरोना की वजह से पैदा हुई स्थिति में कुछ अत्यावश्यक सेवाओं के अलावा अन्य सभी ट्रांजे्नशन बंद हैं.. जो कार्य शुरू हैं. वे भी पूरी क्षमता के साथ नहीं हो रहे हैं.. अब अनलॉक किया जा रहा है, मगर कोरोना तुरंत समाप्त नहीं होगा. ऐसी स्थिति में यदि चेक बाउंस होता है तो हम समझ सकते हैं. कि आपदा परिस्थिति है. उस पर विचार किया जा सकता है, मगर मुझे लगता है कि यह रियायत स्थायी रूप से न दी जाए. इसके लिए डीक्रिमिलाइजेशन शब्द सही है, मगर उसका दुरुपयोग नहीं हो सके, यह व्यवस्था भी जरूरी है. इसके चलते से्नशन १३८ में संशोधन कुछ निर्धारित अवधि तक ही सीमित होने चाहिए.
 
प्रश्न : मईज ऑफ डूइंग बिजनेसफ के लिए भी कुछ बदलाव को सरकार जरूरी मान रही है. क्या इसके लिए भी संशोधन जरूरी है?

उत्तर : केंद्र सरकार की मआत्मनिर्भरफ पॉलिसी के अनुसार मडीक्रिमिलाइजेशन ऑफ क्रिमिनल ए्नटफ का मुद्दा है. इसमें सिर्फ सेक्शन १३८ ही नहीं ऐसे करीब १९ अधिनियमों का समावेश है, जिनमें संशोधन प्रस्तावित हैं.. व्यवसाय में यदि कोई लाइबिलिटी हो तो उसे सिविल कोट में रिकवर किया जा सकता है. इस संशोधन को मईज ऑफ डूइंग बिजनेसफ तथा वर्क लोड कम करने की दृष्टि से देखा जा सकता है, क्योंकि २१३ लॉ कमीशन की रिपोट में कहा गया है कि २०% लिटिगेशन सिङ्र्क चेक बाउंस केसेस से संबंधित होता है. इसलिए मुझे लगता है कि संशोधन के पीछे अच्छा उद्देश्य है, फिर भी में इससे सहमत नहींहूं, क्योंकि से्नशन १३८ का मूल उद्देश्य सिङ्र्क अपने पैसे वापस प्राप्त करना ही है. हम आसानी से अपने पैसे जल्द से वापस प्राप्त कर सकें, यही इस कानून का मूल उद्देश्य है. अगर ये मामले सिविल कोट में चलाए जाएं तो उसमें काफी विलंब होने तथा शिकायतकर्ता को नुकसान पहुंचने की आशंका है.
 
प्रश्न : क्रिमिनल कोट एवं सिविल कोट में चलने वाले मुकदमों में क्या फर्क होता है?

उत्तर : मेरा अनुभव कहता है कि सिविल मैटर लंबे समय तक चलता है. उसके जरिए पैसे प्राप्त कर सकना सरल नहीं होता. यह एक लंबी प्रक्रिया होती है. पैसे रिकवर करने के लिए ऑडर २१ के अनुसार प्रक्रिया तो लंबे समय तक चलती ही है, निर्णय के बाद भी अपने अधिकार के पैसे प्राप्त करने में ३-४ साल तक का समय लग जाता है. इसकी तुलना में यदि क्रिमिनल कोट में केस चलता है तो पैसों की वसूली बहुत कम समय में हो सकती है, क्योंकि क्रिमिनल कोट की एक धाक होती है.
 
प्रश्न : आप कहते हैं. कि कानून की धाक बनी रहे, इसे कृपया स्पष्ट करें?

उत्तर : मेरी राय में से्नशन १३८ के मडीक्रिमिलाइजेशनफ की वजह से इस कानून का डर कम हो जाएगा. इसकी गंभीरता बहुत कम हो जाएगी. साथ ही मुझे यह भी लगता है कि यह कानून विरोधाभासी है. एक तरफ तो सरकार कहती है कि बिजनेस ट्रांजे्नशन ऑनर होने चाहिए यानी चेक पास होने चाहिए. मगर यदि इसकी धाक नहीं रही तो लोगों व व्यवसायियों के लिए व्यवहार करना कठिन हो जाएगा. एक बात हमेशा ध्यान रखें कि आम आदमी क्रिमिनल केस से डरता है, क्योंकि क्रिमिनल केस अन्य कई बातों को भी प्रभावित करते हैं.. इसके चलते चेक जारी करने वाले लोग पूरा प्रयास करते हैं. कि वह बाउंस न हो.
 
प्रश्न : चेक पास न हो तो भी चलेगा, ऐसी प्रवृत्ति बढने से क्या व्यापार प्रभावित हो सकता है?

उत्तर : चेक अर्थव्यवस्था की रीढ माना जाता है. चेक एक तरह की गारंटी होता है. आम नागरिक भी चेक पर विश्वास करते हैं.. बिजनेस हाउसेस, प्राइवेट लेंडर्स, ब।लशपीं;क, एमएसएमई आदि के अधिकांश ट्रांजे्नशन चेक के जरिए ही होते हैं.. कुछ लोग कर्ज की अदायगी हेतु पोस्ट डेटेड चेक देते हैं., मगर उसमें से यदि क्रिमिनल की व्यवस्था हटा दी जाए तो देनदार की लाइबिलिटी ही समाप्त हो जाने की आशंका पैदा हो जाएगी. साथ ही यह भी हो सकता है कि कुछ व्यवसायी चेक के स्थान पर पूर्ण राशि अग्रिम लेने के बाद ही माल सप्लाई करेंगे या लेन-देन नहीं करेंगे, क्योंकि पोस्ट डेटेड चेक से उनका विश्वास समाप्त हो जाएगा. पोस्ट-डेटेड चेक भविष्य के लेनदेन को आसान बनाते हैं.. व्यापारियों या खरीदारों को चेक की वजह से क्रेडिट दिया जाता है. ज्यादातर लेन-देन क्रेडिट आधारित होते हैं.. लेकिन, अगर आरटीजीएस, आईएमपीएस की तरह ऑनलाइन भुगतान करना चाहे तो उसमें क्रेडिट की कोई छूट नहीं है. इससे व्यापार प्रभावित हो सकता है. इस दृष्टि में यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि चेक व्यापार की रीढ है. इसलिए इसका महत्व बनाए रखा जाना चाहिए.
 
प्रश्न : से्नशन १३८ का डीक्रिमिलाइजेशन करने के बाद और कौन-से बदलाव जरूरी होंगे?

उत्तर : मुझे लगता है कि ऐसे मामलों में कोट फी कम करनी चाहिए. से्नशन १३८ में एक और विशेष बात यह है कि केस फाइल करने हेतु पहले सिङ्र्क २ रुपए कोट फी लगती थी. क्योंकि वह क्रिमिनल मैटर होता है. उसमें संशोधन कर कोट फी बढाकर पहले १० रुपए, फिर २०० रुपए तथा बाद में चेक में दर्ज राशि की २% की गई, जो अधिकतम १,५०,००० रुपए है. यह बहुत बडी राशि है. एक तरफ तो सरकार रेवेन्यू पर विचार कर रही है, वहीं दूसरी तरफ कानून में संशोधन कर यह मुद्दा सिविल में शामिल कर रही है. मुझे लगता है कि यदि यह मैटर क्रिमिनल में शामिल नहीं हो तो कोट फी की दर पहले की तरह सिङ्र्क २ रुपए की जानी चाहिए. चेक की राशि का २% हिस्सा तो बिल्कुल नहीं.
 
प्रश्न : यदि सरकार के मूल उद्देश्य को दृष्टि में रखा जाए तो किस तरह से डीक्रिमिलाइजेशन किया जा सकता है?

उत्तर : कई बार लगता है कि चेक बाउंस के मामले में आरोपियों को ही ज्यादा रियायतें मिलती हैं.. उनके लिए बहुत सारे सेफगाड्र्स हैं.. यदि फाइनल हियरिंग से पहले वे पूरे पैसे जमा करा दें तो भी केस समाप्त हो जाता है. मुझे लगता है कि फिर थोडी रियायत पीिडतों को भी मिलनी चाहिए. इसके लिए मडीक्रिमिलाइजेशनफ न करें तथा यदि बहुत आवश्यक हो तो ही सीमित समय के लिए कुछ व्यवस्था या बदलाव किए जाएं. कोरोना की पृष्ठभूमि पर मइन्सॉल्वेंसी एंड ब।लशपीं;क्रप्सी ए्नटफ के से्नशन ५ एवं ७ में (कोरोना का कहर जारी रहने तक) कुछ निर्धारित अवधि तक स्थति दी गई है, वैसी ही से्नशन १३८ में दी जाए, ऐसा मुझे लगता है. संशोधन में यदि अवधि निर्धारित न की जाए तो यह गैरकानूनी काम करने वालों को रियायत देने जैसी बात होगी तथा वे इसका दुरुपयोग कर सकते हैं.. इसलिए मुझे लगता है कि बिजनेस वाइबेलिटी तथा चेक के महत्व को दृष्टि में रखते हुए इसे डीक्रिमिलाइज न किया जाए.
 
प्रश्न : आप कहते हैं. कि यह आरोपियों को ही अधिक रियायत देने जैसा होगा. यदि आरोपियों को रियायत न देनी हो तथा शिकायतकर्ता को राहत देनी हो तो क्या बदलाव करने चाहिए?

उत्तर : सिविल कोट में कामकाज हेतु मसमरी सूटफ में मनोटिस फॉर एपियरेंसफ की सुविधा दी जाती है. उसके चलते दस दिनों में कोट में उपस्थित रहना आवश्यक होता है. मसमन्स फॉर जजमेंटफ जारी करने के बाद दस दिनों में कोट में उपस्थित रहना जरूरी है, मगर कोट में मैटर को लेकर दलील देने का अधिकार नहीं मिलता. उसके लिए अलग से आवेदन देना पडता है. फिर मेरिट के आधार पर कोट ५०% या उससे ज्यादा राशि जमा कराने का आदेश दे तथा उसके बाद ही कोट में दलील पेश करने का अधिकार मिले. साथ ही मप्रोसीजर अंडर ऑडर ३७ ऑफ सिविल प्रोसीजर कोटफ जैसे मामलों में फॉलो जरूरी है. इससे कोट में अनावश्यक डिफेंस पेश नहीं किए जा सकेंगे. कोट ही निर्णय लेगी कि दलील पेश करने की अनुमति दी जाए या नहीं. सुप्रीम कोट में जैसे स्पेशल लीव पिटीशन यानी अपील करने की अनुमति दी जाए या नहीं. अपील करने हेतु मचेकफ में दर्ज राशि का ५०% हिस्सा कोट में जमा कराया जाना चाहिए. सुप्रीम कोट में जैसे लीव पिटीशन यानी अधिकार है या नहीं, यह निर्धारित करने बाद ही आगे की प्रक्रिया की जाती है, वैसी ही व्यवस्था इस विषय में भी होनी चाहिए. ऐसे मामले में, पार्टियों को कोड ऑफ सिव्हील प्रोसिजर १९०८ के आदेश ३७ के अनुसार दीवानी न्यायालय में समरी सूट दाखल करना चाहिए. इस दावे का निर्णय थोडे परिश्रम से चार महिनो मे भी हो सकता है.
 
प्रश्न : आप इस परिस्थिती में पक्षकारों के हित में उन्हें क्या सुझाव देंगे?

उत्तर : निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में तीन तरह के इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं.. एक है मबिल ऑफ एक्सचेंजफ, दूसरा है मप्रॉमिसरी नोटफ और तीसरा है मचेकफ. इन तीन इंस्ट्रूमेंट्स के सहारे लगभग सारा व्यापार होता रहता है. सेक्शन १३८ चेक से संबंधित है. लेकिन अगर नये सुधार के तहत यदि धारा १३८ में पहले जैसी शक्ति नहीं रहती है, तो में व्यापारी वर्ग को दो बातें सुझाऊंगा. एक सुझाव यह है कि वे चेक के साथ साथ अन्य दो इंस्ट्रूमेंट्स को कोलेट्रल सिक्योरिटी के उपयोग मे बढाने के बारे में सोचें. और पैसे वसुल न होने पर दीवानी समरी दावा दाखल करे. दूसरा यह कि धारा १३८ के साथ इंडियन पीनल कोड कलम ४२० के अनुसार कोट में μफौजदारी फिर्याद दाखिल करे. पार्टियों या चेकधारकों को फर्जी चेक जारी करके, चेक जारी करने के बाद खाते को बंद करके, चेक को धोखा देने के उद्देश्य से या फिर एकाउंट में पैसा न होने के बावजूद उपयोग कर कोई अगर चेक का गलत इस्तेमाल करता हैं., तो यह घोखाधडी का केस बनता है. इसलिए पक्षकार अपने पैसे वसूलने के लिए धारा १३८ के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा ४२० के अनुसार सीधे अदालत में शिकायत दर्ज कर सकते है. धारा ४२० का दायरा धारा १३८ से अधिक है. इसमें अपराधी को सात साल की सजा का भी प्रावधान है. इसके अलावा, ऐसी शिकायत से अपराधी डर जाता है और उस शिकायत के लिए केवल पांच रुपये की कोट फी देनी पडती है. यह एक तरह से डब्बल बेनिफीट है.
 
पता : एड्. बी.एस. भोगल सेकंड फ्लोर, लुणावत प्लाझा, शिवाजी पुतले के सामने, शिवाजीनगर, पुणे ४११००५, फोन : (०२०)२५५३३१६९