११२ साल पहले हुए विस्फोट से कांप उठी थी धरती : भाग १

AajKaAanad    14-Jul-2020
Total Views |
 
आ_1  H x W: 0 x
 
धमाके के राज से अभी तक नहीं हटा पर्दा
 
ये वाकया ११२ साल पुराना है. रूस के साइबेरिया इलाके में एक बहुत ही भयानक विस्फोट हुआ था. ये धमाका पोडकामेन्नया तुंगुस्का नदी के पास हुआ था. इस ब्लास्ट से आग का जो गोला उठा उसके बारे में कहा जाता है कि ये ५० से १०० मीटर चौडा था. इसने इलाके के टैगा जंगलों के करीब २ हजार वर्ग मीटर इलाके को पल भर में राख कर दिया था. धमाके की वजह से ८ करोड पेड जल गए थे. साइबेरिया में ११२ साल पहले हुए इस धमाके में इतनी ताकत थी कि धरती कांप उठी थी. जहां धमाका हुआ वहां से करीब ६० किलोमीटर दूर स्थित कस्बे के घरों की खिडकियां टूट गई थीं. वहां के लोगों तक को इस धमाके से निकली गर्मी महसूस हुई थी. कुछ लोग तो उछलकर दूर जा गिरे थे.
 
सैकडों रेंडियर कंकाल में तब्दील
 
किस्मत से जिस इलाके में ये भयंकर धमाका हुआ, वहां पर आबादी बेहद कम या न के बराबर थी. आधिकारिक रूप से इस धमाके में सिर्फ एक गडेरिए के मारे जाने की तस्दीक की गई थी. वो धमाके की वजह से एक पेड से जा टकराया था और उसी में फंसकर रह गया था. इस ब्लास्ट की वजह से सैकडों रेंडियर कंकाल में तब्दील हो गए थे. उस धमाके के गवाह रहे एक शख्स ने बताया था कि, मजंगल के ऊपर का आसमान मानो दो हिस्सों में बंट गया था.
 
ऐसा लग रहा था कि आकाश में आग लग गई है. ऐसा लगा कि जमीन से कोई चीज टकराई है. इसके बाद पत्थरों की बारिश और गोलियां चलने की आवाजें आई थीं.
 
धमाके के राज से पर्दा नहीं हटा : दुनिया इसे तुंगुस्का विस्फोट के नाम से जानती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस धमाके से इतनी ऊर्जा पैदा हुई थी कि ये हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से १८५ गुना ज्यादा थी. कई वैज्ञानिक तो ये मानते हैं. कि धमाका इससे भी ज्यादा ताकतवर था. इस धमाके से जमीन के अंदर जो हलचल मची थी, उसे हजारों किलोम मीटर दूर ब्रिटेन तक में दर्ज किया गया था. आज ११२ साल बाद भी इस धमाके के राज से पूरी तरह से पर्दा नहीं हट सका है. आज भी वैज्ञानिक अपने-अपने हिसाब से इस धमाके की वजह पर अटकलें ही लगा रहे हैं.. बहुत से लोगों को लगता है कि उस दिन तुंगुस्का में कोई उल्कापिंड या धूमकेतु धरती से टकराया था. ये धमाका उसी का नतीजा था. हालांकि इस टक्कर के कोई बडे सबूत इलाके में नहीं मिलते हैं.्. बाहरी चट्टान के सुराग भी वहां नहीं मिले. असल में साइबेरिया का तुंगुस्का इलाका बेहद दुर्गम है. वहां की आबो-हवा भी भी अजीबो-गरीब है. यहां सर्दियां बेहद भयानक और लंबी होती हैं.्. गर्मी का मौसम बहुत कम वक्त तके लिए आता है. इस दौरान जमीन दलदली हो जाती है. इसी वजह से वहां पहुंचना बहुत मुश्किल होता है.
 
२० साल बाद भी धमाके के निशान मिले : धमाका होने के कई साल बाद तक वहां इसकी पडताल के लिए कोई नहीं गया. उस दौर में रूस में सियासी उथल-पुथल चल रही थी. इसलिए धमाके को किसी ने गंभीरता से लिया भी नहीं. (क्रमशः)