स्मगलराें के मुख्य टारगेट बन रहे कॉलेज के युवा

    01-Dec-2021
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कॉलेज छात्र व आईटी प्रोफेशनल्स गांजा और मेफेड्रोन के बड़ी संख्या में शिकार हो रहे
 
पुणे, 30 नवंबर (आज का आनंद न्यूज नेटवर्क)
 
शांत और संस्कृति से समृद्ध पुणे शहर में नशीले पदार्थों की चोरी- छुपे लेकिन धड़ल्ले से स्मगलिंग जारी है लेकिन पुलिस इसे नजरअंदाज करते हुए शांत बैठी है. पिछले तीन-चार वर्षों के दौरान कोई भी बड़ी कार्रवाई करना पुलिस के लिए संभव नहीं हुआ है. इस स्मगलिंग से निबटना आवश्‍यक बन गया है. फिलहाल गांजा और मेफेड्रोन (एमडी) का चलन जोरों पर है और कॉलेज के छात्र व आईटी प्रोफेशनल्स इसके बड़ी संख्या में शिकार बनते हुए नजर आ रहे हैं. इस स्मगलिंग की नकेल कसनी हो तो पुलिस को इच्छाशक्ति दिखानी होगी. करीब 1990 के दशक में मुंबई की आपराधिक गैंग का प्रवेश पुणे में हुआ.
 
इन गैंग्स के अपराधों के साथ ही नशीले पदार्थों की स्मगलिंग भी पुणे में शुरू हुई. मुंबई के अपराधियों द्वारा पलायन करने के बाद यह संख्या कम हो गई. लेकिन इन नायजेरियन अपराधियों ने इसमें अपने लिए अवसर ढूंढ़ लिया. नायजेरियन युवा इस स्मगलिंग में बड़े पैमाने पर सक्रिय नजर आते हैं. दक्षिण अफ्रीका, यूरोप और एशिया जैसे गोल्डन कॉरिडोर से कोकेन और ब्राऊन शुगर जैसे महंगे नशीले पदार्थों की स्मगलिंग की जाती है.
 
इस नायजेरियन रैकेट पर न स्थानीय पुलिस की नजर होती है न स्पेशल ब्रांच की. महाराष्ट्र में मुंबई के बाद पुणे में सबसे ज्यादा नशीले पदार्थों की स्मगलिंग की जाती है. मध्य प्रदेश और गोवा से यह जहर पूरे राज्य में भेजा जाता है. शहर में कुछ नामी और हाई-फाई कॉलेजों में पढ़ने के लिए आए हुए अमीरों की संतानों को ड्रग डीलर्स फांसते हैं. इन डीलरों ने कॉलेजों में अपना अलग नेटवर्क खड़ा किया है. उनके नेटवर्क से इन अमीर छात्रों तक नशे की चीजें पहुंचाई जाती हैं. इसके साथ ही कोरेगांव पार्क, मुंढवा, वानवड़ी, लश्‍कर, येरवड़ा, विमाननगर, बाणेर, हिंजवड़ी व पाषाण आदि हाई-फाई इलाकों में अपने ग्राहकों के पास कोकेन, ब्राउन शुगर, अफू व चरस जैसी नशीली सामग्रियां पहुंचाई जाती हैं.
 
इसमें अब एमडी यानी मेफेड्रोन भी जुड़ गया है. अत्यंत गोपनीय ढंग से जारी ड्रग डीलिंग पर नकेल कसने में पुलिस असफल रही है. विभिन्न पार्टियों के बहाने रेव पार्टियों, हुक्का व शराब की पार्टियों का आयोजन किया जाता है. सोशल नेटवर्किंग साइट्स तथा वाट्सएप के जरिये युवाओं तक इन नशे की सामग्रियों को पहुंचाना और भी आसान होता जा रहा है. इसके साथ ही पढ़ाई के लिए बाहर रहने वाले युवाओं पर उनके अभिभावकों का ध्यान नहीं होता. अपने बेटे-बेटियां कहां जाती हैं? क्या करती हैं? इस पर ध्यान देने के लिए अभिभावकों के पास समय नहीं है. इसलिए डीलरों को ऐसे शिकार आसानी से मिलते हैं. नशीले पदार्थों के सेवन में सबसे ज्यादा संख्या कॉलेज के युवाओं की ही है. गरीब युवाओं को पैसे का लालच देकर ड्रग डीलिंग में उतारे जाने के भी उदाहरण सामने आए हैं.
 
स्कूली बच्चों में बढ़ रहा है ड्रग्स का चलन:
 

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स्कूली बच्चों में वाइटनर र लिक्विड के सेवन का चलन तेजी से बढ़ रहा है. उनका बचपन और युवावस्था इससे कुचले जा रहे हैं. इन चीजों को रूमाल में रखकर उसे लगातार सूंघते रहने से उन्हें नशा होता है. इसलिए स्कूलों में बच्चों के बार-बार ब्लड टेस्ट तथा काउंसिलिंग की भी आवश्‍यकता है. इसके साथ ही स्टिकर नामक एक नशीला पदार्थ मिलता है जिसे जीभ पर रखने से नशा होता है. कुछ टैब्लेट्स भी बाजार में उपलब्ध हैं. गोवा, नेपाल और पंजाब के जरिये भी नशीले पदार्थ पुणे में पहुंचाए जाते हैं. इसके लिए रेलवे और निजी तथा सरकारी बसों का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है. इन तीनों वाहनों की जांच न होने का स्मगलर फायदा उठाते हैं. इस स्मगलिंग के लिए महिलाओं का भी इस्तेमाल किए जाने की घटनाएं सामने आई हैं.
 
मेफेड्रोन बना फायदे का सौदा :
 
 
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मेफेड्रोन (एमडी) स्मगलरों के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ है. एमडी के सेवन की एक बार लत पड़ जाने पर वह आमतौर पर छूटती नहीं है. खासकर युवतियों को सॉफ्ट ड्रिंक के जरिये दो-तीन बार एमडी दिया गया तो वे उसके अधीन हो जाती हैं. उनकी नशे की भूख मिटाने के लिए उन्हें गलत धंधों में उतारा जाता है. कहा जाता है कि एमडी के सेवन से यौन क्षमता बढ़ती है इस कारण भी उसकी मांग बढ़ी है. फिलहाल नशीले पदार्थों में सबसे ज्यादा मांग एमडी की ही है. शक्कर आकार में सफेद रंग के क्रिस्टल्स के रूप में एमडी की पावडर ड्रिंक अथवा शराब के जरिये लेने का चलन बढ़ा है. फिलहाल 6000 रुपये प्रति 10 ग्राम की दर से एमडी की बिक्री की जा रही है. अगर आप समझते हैं कि झोपड़पट्टी के बच्चों में गांजा और चरस जैसे नशीले पदार्थों का इस्तेमाल ज्यादा होता है, तो जरा ठहरिए! आर्थिक रूप से संपन्न घरों के 15 से 26 वर्ष उम्र के बच्चों में गांजा, चरस, ब्राउन शुगर और शराब जैसे विभिन्न प्रकार के नशे का अनुपात सबसे ज्यादा होने का वास्तव सामने आया है.
 
अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ी
 

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युवाओं का रूझान नशे की ओर बढ़ रहा है. गांजा का सेवन काफी बढ़ा है. सरकारी योजनाएं बहुत हैं लेकिन उन पर अमल होने का सवाल खड़ा है. नशे की लत में 14 से 26 उम्र के बच्चों की संख्या चिंता करने लायक है. नशे की लत के चलते बच्चों में निराशा, स्वास्थ्य की समस्याएं, चिड़चिड़ापन और आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही है.
 
- अजय दुधाने, निदेशक, आनंदवन नशा मुक्ति केंद्र
 
नशीले पदार्थों की स्मगलिंग रोकेंगे
 
नशीले पदार्थों की स्मगलिंग रोकने के लिए उपाय किए जा रहे हैं. कॉलेजों के युवा, स्कूली बच्चे, सोसायटियों, और कंपनियों में जन-जागरण के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उसके दुष्परिणाम समझाए जाते हैं. खबरियों के द्वारा जानकारी मिलते ही कार्रवाई की जाती है. स्मगलिंग करने वाले संदिग्धों पर नजर रखी जाती है. इसके साथ ही नशे में फंस चुके लोगों को नशा मुक्ति केंद्र में रखा जाता है.
- विनायक गायकवाड़, सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर, नशीले पदार्थ विरोधी स्क्वॉड