बारूद के ढेर पर बैठ राेजी-राेटी चुनते हैं बीकानेर के दाे दर्जन गांव के लाेग

    17-Feb-2021
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जहां बम फटने से अपने अंग खाे रहे हैं ग्रामीण: जिंदगी बहुत ही खतरें में गुजर रही है
 
 
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  • 2500 परिवाराें की राेजी है सेना का बारूद, हाथ-पैर गवां चुके 500 ग्रामीण
 
34 गांव खाली हुए, तब बनी महाजन रेंज
 
भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 100-200 किलाेमीटर दूर सेना के अभ्यास के लिए महाजन फील्ड फायरिंग रेंज 1984 में बनाई गई. लूणकरणसर तहसील के 34 गांव खाली कराए गए थे. यहां रहने वाले ग्रामीणाें काे दूसरे स्थानाें पर जमीन दी गई. 1987 से रेंज में अभ्यास शुरू हाे गया. विदेशी सेनाओं के साथ युद्धाभ्यास हाेने के कारण रेंज का अंतर्राष्ट्रीय महत्व हाे गया है. वर्तमान में अमेरिकी और भारतीय सेना मिलकर यहां युद्धाभ्यास कर रही हैं. इससे पहले रूस, फ्रांस सहित कई देशाें की सेनाएं यहां अभ्यास कर चुकी हैं.
 
 
राजस्थान में बीकानेर की महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में सेना का बारूद लूणकरणसर और छत्तरगढ़ के दाे दर्जन से अधिक गांवाें के करीब 2500 परिवाराें के लिए राेजी राेटी का जरिया बना हुआ है. अपनी जान की परवाह किए बिना ग्रामीण ताेप से निकले हुए गाेले, मिसाइल, लैंड माइन, बुलेट्स आदि के स्क्रैप चुनने का काम करते हैं. इस काम में कई बार ग्रामीणाें की जान तक चली जाती है. करीब 500 लाेग हैं, जाे स्क्रैप जुटाने के दाैरान बम पटने से अपने अंग खाे चुके हैं. किसी का एक पैर नहीं है, ताे किसी के हाथ.
 
 
स्क्रैप बेचकर गुजारा करने वाले इन गरीब ग्रामीणाें काे दाे व्नत की राेटी अब विकलांग पेंशन और पशु चराने से मिल रही है. जब इन गांवाें के लाेगाें से बात की ताे चाैंकाने वाले हालात सामने आए. पुलिस के रिकाॅर्ड में 1987 से लेकर अब तक केवल 33 ग्रामीणाें की माैत ही दर्ज है. गाेपालसर निवासी शेराराम और रतिराम भी बम फटने से मारा गया था. ग्रामीणाें का कहना है कि इनके जैसे काफी लाेग हैं, जिनके नाम पुलिस रिकाॅर्ड में दर्ज ही नहीं हाे सके. परिजनाें काे या ताे उनकी लाशें नहीं मिली या पुलिस काे बिना बताए ही अंतिम संस्कार करवा दिया गया. हादसाें में 35 सैनिकाें की भी जान जा चुकी है.